खबरों के खिलाड़ी
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मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा की पहली सूची सबसे पहले आ गई, वहीं कांग्रेस पिछड़ती दिखी। बाद में कांग्रेस ने मध्यप्रदेश में बढ़त बना ली और एक सीट छोड़कर सारे उम्मीदवार घोषित कर दिए। अब नजर राजस्थान पर है। सभी चुनावी राज्यों में मुफ्त की योजनाओं का मुद्दा हावी है, वहीं चेहरे भी चर्चा में हैं। भाजपा बड़े चेहरों को विधानसभा चुनाव लड़वा रही है। वह अब ‘गैलेक्सी ऑफ लीडरशिप’ चाहती है, लेकिन यह अचानक हुआ है। पहले भाजपा इस बारे में बात नहीं करती थी। वहीं, राज्यों में नेतृत्व को लेकर कांग्रेस में तस्वीर साफ है। इन्हीं मुद्दों पर बात करने के लिए ‘खबरों के खिलाड़ी’ की इस कड़ी में हमारे साथ चर्चा के लिए रामकृपाल सिंह, विनोद अग्निहोत्री, अवधेश कुमार, प्रेम कुमार और राखी बख्शी मौजूद रहे। पढ़ें, इस चर्चा के अहम बिंदु…
राजस्थान में अन्य राज्यों की तुलना में काफी कम उम्मीदवार तय हुए हैं? वहां क्या समीकरण बन रहे हैं?
रामकृपाल सिंह: भाजपा को सबसे ज्यादा उम्मीद राजस्थान से ही नजर आ रही है। 2013 में जब वहां विधानसभा चुनाव हुए थे, तब देश में अन्ना हजारे के आंदोलन का असर था। तब राजस्थान में कांग्रेस चुनाव हार गई, वहीं मध्यप्रदेश में भाजपा जीत गई। हो सकता है कि इस बार दोनों दलों के बीच कड़ा मुकाबला हो। 2012-13 में जो कमजोर हालत यूपीए की थी, केंद्र में वैसी सत्ता विरोधी लहर अभी 2023 में भाजपा को लेकर नहीं है। इसलिए भाजपा की राह कुछ आसान नजर आती है, बाकी नतीजों से तस्वीर साफ होगी।
2014 में जब भाजपा जीती तो महाराष्ट्र, हरियाणा, उत्तर प्रदेश में भाजपा की तरफ से कोई चेहरा नहीं था। सभी दलों की अपनी-अपनी रणनीति होती है। यह कुल्हड़ और कंबल जैसा मामला है। जहां कंबल की जरूरत है, वहां कूलर काम नहीं आ सकता। हालात इस तरह बदले हैं कि अब राज्य की राजनीति में भी केंद्र की योजनाएं हावी हैं। जमीनी स्तर पर यह बदलाव तो आया है। रोटी, कपड़ा, मकान के बहाने केंद्र सरकार की राज्यों के मुद्दों में एंट्री हुई है।
क्या मुद्दे आपको नजर आ रहे हैं?
राखी बख्शी: युवाओं का मतदान प्रतिशत इस बार बढ़ेगा। कोरोना के दौर के बाद आम मुद्दे लोगों के जनजीवन से जुड़ गए हैं। युवाओं की महत्वाकांक्षाएं और उनसे जुड़े मुद्दे अब प्रभावी हैं। विकास का मुद्दा प्रासंगिक बना हुआ है। राजनीतिक दल अपनी खामियों को जल्दी से दूर करते नजर आते हैं।
भाजपा ने बड़े चेहरों को मैदान में उतार दिया?
अवधेश कुमार: कांग्रेस दो बार से केंद्र की सत्ता से गायब है। चुनाव को कांग्रेस जितना आसान बता रही है, उतना है नहीं। मध्यप्रदेश के चुनाव में भाजपा को वोट तो ज्यादा मिले, लेकिन सीटें कम मिलीं। छत्तीसगढ़ में ही भाजपा पूरी तरह हारी थी। भाजपा इस बार जो प्रयोग कर रही है, उसे दीर्घकालिक राजनीतिक सुधारों की दृष्टि से देखना चाहिए। इस देश में एक नेतृत्व पर निर्भरता के कारण ही संतोष या असंतोष पैदा होता है। मोदी जी खुद ही चाहते हैं कि एक नेता पर निर्भरता न रहे। भाजपा ‘गैलेक्सी ऑफ लीडर्स’ चाहती है। केंद्र का नेता राज्य में भी जा सकता है। पहले जो भेद था, वो इसे खत्म करना चाहते हैं।
मध्यप्रदेश में उम्मीदवारों के एलान में क्या कांग्रेस अब भाजपा से आगे निकल गई है?
प्रेम कुमार: कांग्रेस ने पहले पितृ पक्ष का इंतजार जरूरी समझा था। यहां कूलर और कंबल की बात हुई, राजस्थान में कूलर के बजाय कमल का इस्तेमाल हो रहा है। इस बार मोदी मैजिक चलता नहीं दिख रहा। हर वोट मोदी को जाएगा, यह बात नहीं कही जा रही। भाजपा की सियासत इस विधानसभा चुनाव में ऐसी हो गई है कि जो होना हो, वह हो जाए, हमें तो 2024 पर फोकस करना है। राजस्थान में तो वसुंधरा राजे की नहीं चल रही। जेपी नड्डा कह रहे हैं कि हम सबको समझा देंगे। वहां भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व सोया हुआ दिख रहा है।
क्या पांचों राज्यों में मुफ्त की योजनाओं का मुद्दा हावी रहेगा? चेहरे कितने हावी हैं?
विनोद अग्निहोत्री: हर पार्टी को अपनी रणनीति बनाने का अधिकार है। चाहे तो कंबल बांटे या कूलर बांटे। जब प्रधानमंत्री मोदी गुजरात में थे, तब तो उन्होंने ‘गैलेक्सी ऑफ लीडर्स’ की थ्योरी पर ध्यान नहीं दिया था। जब आप क्षत्रप पर होते हैं, तब आप वैसे बात करते हैं। जब आप सर्वेसर्वा हो जाते हैं तो सुर बदल जाते हैं। वसुंधरा राजे, शिवराज सिंह चौहान, रमन सिंह जैसे नेता अटलजी और आडवाणीजी के दौर के नेता हैं। मोदी जी के दौर में दो ही क्षत्रप हुए हैं- योगी आदित्यनाथ और हेमंत बिस्व शर्मा। देवेंद्र फडणवीस को इस श्रेणी में नहीं रख सकते क्योंकि वे सीएम रहकर बाद में डिप्टी सीएम बन गए। क्या मोदी जी कभी गुजरात में डिप्टी सीएम बन सकते थे? जो क्षत्रप बन जाता है, वह बड़े सपने देखता है। जो भाजपा पहले करती थी, अब वह कांग्रेस करने लगी है। अब कांग्रेस के नेता तय हैं, भाजपा में स्थिति साफ नहीं है।
मुफ्त की योजनाएं क्या हैं? कभी वह सशक्तीकरण कहलाता है, कभी आप उसे फ्रीबीज़ कहने लग जाते हैं। कोरोना के समय से जारी मुफ्त राशन अगर अब तक दिया जा रहा है, तो वह क्या है। 200 यूनिट मुफ्त बिजली या लाड़ली योजना को क्या कहेंगे? एक दल के लिए यह सशक्तीकरण, दूसरे दल के लिए फ्रीबीज़ हैं।