विकास दुबे फाइल फोटो
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गैंगस्टर मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट में दोषी अभियुक्तों की ओर से अधिवक्ताओं ने बचाव में कई तर्क पेश किए थे, सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट की कई विधि व्यवस्थाओं का भी हवाला दिया गया लेकिन कोर्ट ने उन सभी तर्कों को कसौटी पर खरा नहीं पाया। विधि व्यवस्थाएं भी मामले से अलग होने के कारण अभियुक्तों को बचाने में मददगार साबित नहीं हो सकीं। कोर्ट ने इन चार बिंदुओं पर दोषियों को खरा न पाने के कारण सजा सुनाई।
बिंदु 1-घटनास्थल पर मौजूदगी जरूरी नहीं
कुछ अभियुक्तों के अधिवक्ताओं का कहना था कि घटना के समय अभियुक्त मौके पर नहीं थे इसलिए उन्हें गैंग का सदस्य नहीं माना जा सकता। न्यायालय ने माना कि अपराध करते समय गैंग के हर सदस्य का घटनास्थल पर मौजूद रहना जरूरी नहीं है। अपराध में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भी सहायता की जा सकती है। गैंग के सदस्य के मौके पर न होने के आधार पर अपराध में उसकी भूमिका को नकारा नहीं जा सकता।
बिंदु 2-दर्ज मुकदमों की संख्या महत्वपूर्ण नहीं
कुछ अभियुक्तों के अधिवक्ताओं का कहना था कि अभियुक्तों के खिलाफ बिकरू की घटना से संबंधित केवल एक ही मुकदमा चौबेपुर थाने में दर्ज है और उनके नाम भी अन्य अभियुक्तों के बताने के आधार पर सामने आए हैं। न्यायालय ने माना कि गैंगचार्ट में अभियुक्तों के खिलाफ दर्ज मुकदमों की संख्या महत्वपूर्ण नहीं है।
गैंगचार्ट में दर्ज मुकदमे का उद्देश्य केवल यह दिखाना होता है कि गैंग के सदस्यों द्वारा कौन-कौन से अपराध किए गए हैं। कभी-कभी यह भी हो सकता है कि गैंग के सदस्यों द्वारा किए गए अपराध सामने न आए हों क्योंकि सक्रिय गैंग के सदस्यों के खिलाफ आम आदमी मुकदमा दर्ज कराने का साहस नहीं जुटा पाता।