भाई के ठुकराने के बाद युनूस खान को अस्पताल से वृद्धाश्रम भेजा गया
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बुरे वक्त में अपने भी बेगाने हो जाते हैं। ये लाइन युनूस खान के जीवन पर चरितार्थ होती दिख रही है। कानपुर निवासी युनूस खान (60) दो सप्ताह तक जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष करता रहा। इसके बाद न्यूरोसर्जन डॉ. निमित गुप्ता एवं और सद्भावना समिति ने बिना मजहब और पराया देखे उसकी जान बचाई। होश आने पर उसके बताए भाई से संपर्क किया। सगे भाई ने यूनुस को अपनाने से इंकार कर दिया। एक सप्ताह बाद अस्पताल से यूनस को वृद्धाश्रम भेज दिया गया।
24 अगस्त को यूनुस खान शिकोहाबाद के रेलवे स्टेशन पर अज्ञातवस्था में जीआरपी को मिला था। यूनुस के सिर में चोट थी और बेहोश था। जीआरपी ने मेडिकल कॉलेज में युनूस को अज्ञात मरीज के रूप में भर्ती करा दिया। किंतु मेडिकल कॉलेज में युनूस को उपचार नहीं मिला।
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सद्भावना समिति के प्रशांत गुप्ता ने मरीज को बुरी हालत में देखा। वह न्यूरोसर्जन डॉ. निमित गुप्ता और संस्था अध्यक्ष पीके जिंदल से मिले। उन्होंने मरीज को तुरंत आईसीयू में भर्ती किया और निशुल्क उपचार शुरू कर दिया। सात दिन बाद मरीज को होश आया। जब उससे पूछताछ की गई तो नाम मरीज ने अपना नाम कानपुर निवासी यूनुस बताया।
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जब चिकित्सक ने ग्वालटोली कानपुर में पुलिस के माध्यम से यूनुस के भाई यूसूफ खान से वार्ता हुई और भाई को घर ले जाने के लिए कहा। भाई ने युनूस को घर ले जाने से इंकार कर दिया। समिति सदस्य और अस्पताल का स्टाफ देखे मरीज की दिन रात सेवा में लगे रहे। भाई का इंतजार करते-करते युनूस की हर उम्मीद टूट गई। 15 दिन बाद मंगलवार को युनूस को वृद्धाश्रम में भेज दिया गया।