सांकेतिक तस्वीर
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एक देश एक चुनाव से संबंधित विधेयक संविधान संशोधन विधेयक होगा। ऐसे में इसे पारित कराने के लिए सरकार को दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत की जरूरत होगी। ऐसे में सरकार को खासतौर पर राज्यसभा में विधेयक के समर्थन के लिए नए साथियों की तलाश करनी होगी, क्योंकि भाजपा को अपने दम पर सामान्य बहुमत भी यहां हासिल नहीं है। अबतक जरूरी विधेयकों पर सरकार को बीजेडी, वाईएसआरसीपी, टीडीपी जैसे दलों का साथ मिलता रहा है। इस मुद्दे पर सिर्फ संविधान में संशोधन ही काफी नहीं होगा, राज्यों की मंजूरी भी चाहिए होगी।
देश में एक साथ चुनाव कराने की बहस पुरानी है। राष्ट्रपति बनने के बाद कोविंद ने इसका समर्थन किया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बहस को नए सिरे से शुरू किया है। उन्होंने राज्यसभा में अपने भाषण के अलावा भाजपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति में भी अलग-अलग चुनाव होने के कारण विकास कार्यों पर पड़ने वाले प्रतिकूल असर का हवाला देते हुए एक साथ चुनाव की हिमायत की थी। इस बीच, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने शुक्रवार को पूर्व राष्ट्रपति कोविंद से दिल्ली में उनके घर पर मुलाकात कर एक राष्ट्र एक चुनाव की व्यवहार्यता पर चर्चा की।
संसदीय समिति कर चुकी है जांच: एक संसदीय समिति पहले ही चुनाव आयोग समेत विभिन्न हितधारकों के परामर्श कर इस मुद्दे पर विचार कर चुकी है। समिति ने इस संबंध में कुछ सिफारिशें की हैं। अब एक साथ चुनाव के लिए ‘व्यावहारिक रोडमैप और रूपरेखा’ तैयार करने के लिए मामला विधि आयोग को भेजा गया है।
संविधान संशोधन की जरूरत क्यों?
संविधान का अनुच्छेद 83 कहता है कि लोकसभा और विधानसभा का कार्यकाल पांच साल का होगा। ऐसे में पहली बार एक साथ चुनाव कराने के लिए इस अनुच्छेद में संशोधन जरूरी है।
- अनुच्छेद 83(2) में कहा गया है कि विधानसभा का कार्यकाल एक बार में एक साल ही बढ़ाया जा सकता है।
- अनुच्छेद 85 में राष्ट्रपति को समय से पहले लोकसभा भंग करने का अधिकार दिया गया है।
- अनुच्छेद 172 में विधानसभा का कार्यकाल पांच वर्ष निश्चित किया गया है।
- अनुच्छेद 174 के तहत राष्ट्रपति को लोकसभा और राज्यपाल को विधानसभा भंग करने का अधिकार दिया गया है।
- अनुच्छेद 356 में राज्यपाल की सिफारिश पर राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किए जाने का प्रावधान है। एक देश एक चुनाव के लिए संविधान के इन सभी अनुच्छेदों में संशोधन करना होगा।
कई चुनौतियां भी : कृष्णमूर्ति
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएस कृष्णमूर्ति ने कहा कि लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव एक साथ कराना जरूरी है। इसके कई फायदे हैं जैसे चुनाव खर्च कम होगा, समय भी बचेगा। प्रचार वगैरह में इतना समय बर्बाद नहीं होगा। लेकिन इसमें कई चुनौतियों का सामना करना होगा। ये इतना आसान नहीं होगा। उन्होंने कहा, इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि राज्य चुनाव और संसदीय चुनाव एक साथ होने पर भी मतदाता अलग-अलग तरीके से मतदान करते हैं। एक साथ चुनाव कराने के लिए राजनीतिक सहमति के चुनौतीपूर्ण होने के सवाल पर कृष्णमूर्ति ने कहा, बिल्कुल। यह चुनौतीपूर्ण होगा, इसमें कोई संदेह नहीं है।
ये चुनौतियां भी होंगी
कृष्णमूर्ति ने कहा, एक साथ चुनाव कराने में कई चुनौतियां सामने आएंगी। इसमें बहुत अधिक वित्तीय व्यय, पर्याप्त सशस्त्र बल और जनशक्ति की आवश्यकता होगी, लेकिन ये ऐसे मुद्दे हैं जिन पर काबू पाया जा सकता है। सांविधानिक मुद्दा सबसे बड़ी चुनौती है।
संघीय ढांचे के लिए एक साथ चुनाव खतरा…
विपक्षी नेताओं ने शुक्रवार को ‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ की संभावना का अध्ययन करने के लिए समिति गठित करने के केंद्र सरकार के कदम की आलोचना की और आरोप लगाया कि यह देश के संघीय ढांचे के लिए खतरा पैदा करेगा। विपक्ष ने कहा, इंडिया गठबंधन ने सत्तारूढ़ भाजपा को परेशान कर दिया है, जिसके कारण सरकार को विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ कराने की संभावना तलाशने के लिए मजबूर होना पड़ा।
सीपीआई नेता डी राजा ने कहा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा भारत को लोकतंत्र की जननी होने की बात करते हैं, लेकिन सरकार ने अन्य राजनीतिक दलों से चर्चा किए बिना एकतरफा फैसला लिया है। यह देश के संघीय ढांचे के लिए खतरा है। कांग्रेस नेता कमलनाथ ने कहा, केंद्र सिर्फ संविधान में संशोधन नहीं कर सकता, उन्हें राज्यों की मंजूरी भी चाहिए।