केरल के देवस्वओम मंत्री के राधाकृष्णन सबरीमाला भक्त की सेवा करते।
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राज्य के देवस्वओम मंत्री के. राधाकृष्णन के साथ कथित तौर पर मंदिर में हुए भेदभाव पर अब पुजारियों के संगठन ने सफाई दी है। उसका कहना है कि देवस्वओम के साथ कोई भेदभाव नहीं किया गया था। यह केवल एक गलतफहमी है और मदिरों में किसी व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं किया जाता है।
अखिल केरल थंथरी समाजम की राज्य समिति ने कहा कि मंदिर में एक रिवाज है, जो पुजारी ‘देव पूजा’ करते हैं वे किसी को नहीं छूते हैं। उन्होंने कहा कि इससे जाति का कोई लेना देना नहीं है। चाहे कोई ब्राह्मण हो या गैर-ब्राह्मण देव पूजा जब तक नहीं हो जाती पुजारी किसी को भी नहीं छूते हैं।
संगठन ने कहा कि यह मामला आठ महीने पहले ही खत्म हो चुका है। इसे एक बार फिर से उठाने के पीछे कोई साजिश लगती है। कोई बेमतलब विवाद खड़ा करना चाहता है। समाजम ने बताया कि पूजा कर रहे मेलशांति यानी मुख्य पुजारी को अंतिम समय में आकर दीपक जलाने के लिए कहा गया था क्योंकि मंदिर थंथरी (पुजारी) अनुपस्थित थे।
पुजारियों के संगठन ने कहा कि दीप जलाने के बाद वह पूजा पूरी करने के लिए वापस गए थे, लेकिन इस पूरी घटना को मंत्री ने छुआछूत समझ लिया था और उन्होंने मौके पर ही अपनी नाराजगी जाहिर की थी। संगठन ने सवाल किया कि आठ महीने पहले खत्म हुई घटना को अब विवाद में बदलने के पीछे क्या कोई गलत इरादा है?
यह है मामला
बता दें, केरल के देवस्वओम मंत्री के. राधाकृष्णन ने आरोप लगाया था कि पुजारियों ने मंदिर में मुख्य दीप प्रज्ज्वलित करने से रोक दिया था, क्योंकि वे एक दलित समुदाय से आते हैं। इस घटना पर अनुसूचित जाति समुदाय से संबंध रखने वाले राधाकृष्णन ने कहा था कि मंदिर के दो पुजारियों ने उन्हें वह ‘लौ’ सौंपने से इन्कार कर दिया, जो वे उद्घाटन के अवसर पर कार्यक्रम स्थल पर मुख्य दीप प्रज्ज्वलित करने के लिए लाए थे। मंत्री ने आरोप लगाया था कि इसके बजाय पुजारियों ने खुद मुख्य दीप प्रज्ज्वलित किया और उसके बाद ‘लौ’ को जमीन पर रख दिया, ताकि वह उठाकर दीप जला दें।
सत्तारूढ़ मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की केंद्रीय समिति के सदस्य राधाकृष्णन ने एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए यह बात कही थी। उन्होंने कहा था कि उन्होंने सोचा कि यह एक परंपरा का हिस्सा है और इससे छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए। हालांकि मंत्री ने मंदिर के नाम का खुलासा नहीं किया था।