खबरों के खिलाड़ी।
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विस्तार
सपा प्रमुख अखिलेश यादव पिछले दिनों कांग्रेस से इतने नाराज हो गए कि उसे ‘धोखेबाज’ तक कह डाला। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि विधानसभा चुनावों में कांग्रेस और सपा की तल्खी से भाजपा विरोधी विपक्षी गठबंधन के भविष्य पर क्या असर पड़ेगा? क्या लोकसभा चुनाव तक इंडिया गठबंधन एकजुट रह पाएगा? ‘खबरों के खिलाड़ी’ की इस कड़ी में इसी मुद्दे पर विश्लेषकों ने चर्चा की। चर्चा के लिए हमारे साथ मौजूद थे वरिष्ठ पत्रकार रामकृपाल सिंह, विनोद अग्निहोत्री, अवधेश कुमार, प्रेम कुमार और राखी बख्शी।
मध्य प्रदेश की लड़ाई क्या उत्तर प्रदेश की राजनीति पर असर डालेगी, क्या यह लोकसभा चुनाव के लिए परेशानी की शुरुआत है?
राखी बख्शी
अगर आप सोच रहे थे कि ये दल बहुत गर्मजोशी से एकसाथ आ जाएंगे तो जमीन पर ऐसा नहीं दिख रहा है। जिनकी अपनी सीटों पर क्षेत्रीय ताकत है, उसे वो कैसे जाने दे सकते हैं? आगे क्या होगा, यह देखना होगा, लेकिन अभी तो यह परेशानी की शुरुआत दिखाई दे रही है।
प्रेम कुमार
जो बात अखिलेश यादव ने कही है, अजय राय ने उसका जवाब दिया। यह संवाद व्यक्तिगत स्तर पर चला गया। यह अप्रिय स्थिति है, लेकिन मूल बात यह है कि क्या अखिलेश को लगता है कि उनके साथ धोखा हुआ है? अगर वो इस बात को समझ रहे हैं तो उन्हें इंडिया गंठबंधन को छोड़ देने का एलान कर देना चाहिए था, लेकिन वे ऐसा नहीं कह रहे हैं। जहां तक इंडिया गठबंधन की बात है तो वह एक ‘थ्योरी ऑफ कंपल्शन’ के कारण बना है। अधिकतम नतीजे मिलें, यह लड़ाई उसके लिए है। इस देश में विपक्ष का जन्म ही कांग्रेस के खिलाफ हुआ है, लेकिन अब स्थिति बदल गई है। अब गैर कांग्रेसवाद बहुत पीछे चला गया है। अब लड़ाई गैर भाजपावाद की है।
अवधेश कुमार
अगर यह मजबूरी और विवशताओं पर टिका हुआ गठबंधन है तो उसे गठबंधन नहीं कहते हैं। मजबूरियों का साथ कभी भी स्थाई नहीं होता है। इसमें तीन बातें निहित हैं। मध्य प्रदेश में भले ही समाजवादी सत्ता में नहीं रहे, लेकिन उनकी एक ताकत वहां रही है। कांग्रेस को यह समझना चाहिए। इन विधानसभा चुनावों से एक संदेश जाना चाहिए था। इस पर मुझे एक कविता याद आती है… इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो! जमीन है न बोलती न आसमान बोलता, जहान देखकर मुझे नहीं जबान खोलता, नहीं जगह कहीं जहां न अजनबी गिना गया, कहां-कहां न फिर चुका दिमाग-दिल टटोलता, कहां मनुष्य है कि जो उमीद छोड़कर जिया, इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो।
इस तरह के टकराव को आम वोटर कैसे देखेगा?
विनोद अग्निहोत्री
इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल बताता है कि सबकुछ ठीक नहीं है। दरअसल, कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के संबंध हमेशा से ऐसे ही खट्टे मीठे रहे हैं। उसका कारण यह है कि इन सभी क्षेत्रीय दलों ने कांग्रेस की ही जमीन ली है। 1993 में जब मुलायम सिंह को सरकार बनाने के लिए सीटें कम पड़ रहीं थीं, तब कांग्रेस ने समर्थन दिया था। उसी तरह सपा ने केंद्र में कांग्रेस को समर्थन दिया। दोनों एक दूसरे को स्पेस नहीं देना चाहते हैं। कांग्रेस के लोग मानते हैं कि अगर हमने मध्यप्रदेश में छह सीटें दे दीं और उनमें से तीन सपा जीत गई तो वो तीन कहां जाएंगे, यह कोई नहीं कह सकता है। इंडिया गठबंधन एक नेता के इर्दगिर्द हुआ गठबंधन नहीं है बल्कि यह नेताओं के बीच हुआ गठबंधन है। यह अविश्वास हमेशा बना रहेगा, लेकिन भाषा की मर्यादा दोनों ओर से बनी रहनी चाहिए। इस देश में लोग बहुत जल्द भूलते हैं। इस देश की राजनीति में न स्थाई दोस्ती होती है, न स्थाई दुश्मनी होती है। विधानसभा चुनाव हो जाने दीजिए, नतीजे आ जाने दीजिए, उसके बाद फिर ये सभी साथ दिखाई देंगे।
जब अभी से यह लड़ाई दिख रही है तो क्या आगे यह लड़ाई नहीं दिखेगी? कांग्रेस की विश्वसनीयता का क्या?
रामकृपाल सिंह
मुझे गठबंधन में वो एकता अभी तक दिखी ही नहीं है। अगर किसी को कोई अच्छा लगता है तो उसके अच्छा लगने के 10 कारण होंगे। कहने का मतलब यह है कि गठबंधन की कौन सी न्यूनतम शर्त यह गठबंधन पूरा करता है? मुझे तो एक भी नहीं दिखाई देती। 1975 के दौर में हमने एकता देखी थी। वैसी कोई एकता अभी दिखाई नहीं देती है। जो बैठकें हो रही हैं, उससे ज्यादा तो शादियों में ये नेता मिलते हैं। रहीम ने कहा है कि कहु रहीम कैसे निभै, बेर केर को संग। वे डोलत रस आपने, उनके फाटत अंग॥
कहने का मतलब है कि बेर और केर एक साथ हैं, जब भी हवा चलेगी तो डालियां लहराएंगी तो केले का पत्ता ही फटेगा। आप यूं देखिए कि कौन है, जो अपनी जमीन छोड़ना चाहता है। ऐसा कोई नहीं दिख रहा है। गैर कांग्रेसवाद से उपजी हुईं क्षेत्रीय पार्टियां कभी भी कांग्रेस को स्पेस नहीं देंगी। मैं हमेशा मानता हूं कि देश की जनता कमोबेश पूर्ण बहुमत देती है। कम से कम केंद्र में तो यह बात मानकर चलिए। यह मेरी राय नहीं, बल्कि तथ्य है। 1952 से अब तक समाजवाद के लिए सबसे बड़ा जो अवसर था, वह 1950 के दशक का था। लेकिन 50 साल में वामपंथ और समाजवाद की विफलता की वजह से दक्षिणपंथी विचारधारा का पूरी दुनिया में विस्तार हुआ। कांग्रेस जानती है कि जनता को यह पता है कि देश का प्रधानमंत्री अगर भाजपा या कांग्रेस से होगा तो ही पांच साल की सरकार बनेगी। कांग्रेस जानती है कि वह तीन अंकों में नहीं गई तो उसके लिए नेतृत्व करना मुश्किल होगा।