बीएचयू ट्रामा सेंटर में बच्ची प्रिया का इलाज करने वाली टीम
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बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) ने दस साल की प्रिया से रिश्ता जोड़ा और 547 दिन के इलाज पर 60 लाख रुपये खर्च कर दिए। बिहार के रोहतास जिले के सेमारी गांव की प्रिया फरवरी 2022 में बीएचयू के ट्रॉमा सेंटर आई थी। डॉक्टरों ने उसे वेंटीलेटर पर रखा और इलाज शुरू कर दिया। प्रिया के बचने की उम्मीद बेहद कम थी। लिहाजा, विश्वविद्यालय प्रशासन से बच्ची के निशुल्क इलाज व उसके परिजनों के भोजन की अनुमति ली गई। सतत इलाज चलता रहा। अब प्रिया स्वस्थ है। बोलने लगी। एक महीने बाद डॉक्टर उसे डिस्चार्ज भी कर सकते हैं।
बिहार के छोटे से गांव में चाय बेचकर दो बच्चों और पत्नी का भरण पोषण करने वाले मुन्ना बिटिया को नया जीवन मिलने से खुश हैं। मुन्ना और पत्नी डॉक्टरों, पैरामेडिकल स्टाफ को जब भी देखते हैं, उनके आंख भर आती हैं। मुन्ना के अनुसार, डेढ़ साल से ट्रॉमा सेंटर में हैं, लेकिन कभी लगा नहीं। बड़े साहब (ट्रॉमा सेंटर प्रभारी डॉ सौरभ सिंह) से लेकर जो भी डॉक्टर, स्वास्थ्य कर्मी आते हैं, वह प्रिया को दुलारते हैं। ऐसा लगता है कि उनके परिवार की बच्ची भर्ती है। मेरी जेब में फूटी कौड़ी नहीं थी, लेकिन पैसे की वजह से इलाज कभी नहीं रुका।
एक दिन का औसत खर्च दस हजार रुपये
बीएचयू के ट्रॉमा सेंटर प्रभारी प्रो. सौरभ सिंह के मुताबिक, वेंटीलेटर पर रहने वाले मरीज के इलाज का एक दिन का खर्च (बेड, जांच, इलाज आदि) औसतन दस हजार रुपये आता है। प्रिया 18 महीने यानी 547 दिन तक वेंटीलेटर पर रही है। इस हिसाब से उसके इलाज में करीब 55 लाख रुपये खर्च हुए हैं। छह लाख रुपये प्रिया के माता-पिता व उसके परिजनों के रहने, खाने पर किए गए हैं।