राजा भैया (फाइल फोटो)
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सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को 2013 में पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) जिया उल हक की हुई नृशंस हत्या में कुंडा से विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया की भूमिका की सीबीआई जांच को हरी झंडी दे दी है। शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को दरकिनार कर दिया, जिसमें राजा भैया सहित पांच लोगों के खिलाफ सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट को खारिज करने के ट्रायल कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी। 2014 में ट्रायल कोर्ट ने क्लोजर रिपोर्ट खारिज करते हुए सीबीआई को जांच आगे बढ़ाने के लिए कहा था।
जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने हक की पत्नी परवीन आजाद द्वारा दाखिल याचिका पर ट्रायल कोर्ट के फैसले को बहाल कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा, आगे की जांच का निर्देश देने में मजिस्ट्रेट की ओर से कोई त्रुटि प्रतीत नहीं होती है। हमारे विचार में हाईकोर्ट ने पुन: जांच और आगे की जांच के बीच एक अति तकनीकी दृष्टिकोण अपनाया। हाईकोर्ट ने माना था कि विशेष सीबीआई अदालत का जुलाई 2014 का आदेश ’पुनः जांच’ के समान है।
2013 में ड्यूटी के दौरान की गई थी हत्या
हक की दो मार्च, 2013 को ड्यूटी के दौरान हत्या कर दी गई थी। वह कुंडा के बल्लीपुर गांव में ग्राम प्रधान नन्हे यादव की हत्या के बाद मौके पर पहुंचे थे। शव को गांव लाने पर बड़ी संख्या में लोग जमा हो गए। राजा भैया के साथी बताए जाने वाले एक व्यक्ति ने इस भीड़ में पुलिस अधिकारी हक को गोली मार दी, जिससे उनकी मौत हो गई।
राजा भैया समेत पांच लोगों की भूमिका की जांच के दिए थे आदेश
निचली अदालत के आदेश में सीबीआई को उस समय राज्य सरकार में मंत्री राजा भैया, कुंडा नगर पंचायत के तत्कालीन अध्यक्ष गुलशन यादव सहित पांच लोगों की भूमिका की जांच करने के लिए कहा गया था। घटना के तुरंत बाद मारे गए अधिकारी की विधवा परवीन आजाद ने पुलिस को दी अपनी शिकायत में इन लोगों का नाम लिया था।
शीर्ष अदालत के समक्ष अपनी याचिका में आजाद ने सीबीआई पर मामले में राजा भैया की भूमिका की ओर इशारा करने वाले महत्वपूर्ण तथ्यों की अनदेखी करने का आरोप लगाया था। उन्होंने सवाल किया था कि पुलिस टीम ने उनके पति को अलग-थलग कैसे छोड़ दिया क्योंकि किसी अन्य पुलिसकर्मी को कोई चोट नहीं आई।