दर्द एक जैसा, कहानी अलग-अलग: जिनसे थी सहारे की आस, वही छोड़ गए उदास; रुला देगी बेघर बुजुर्गों की आपबीती

दर्द एक जैसा, कहानी अलग-अलग: जिनसे थी सहारे की आस, वही छोड़ गए उदास; रुला देगी बेघर बुजुर्गों की आपबीती



वृद्धाश्रम में रहती हैं राजेरानी
– फोटो : अमर उजाला

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पितृ पक्ष चल रहा है। बरेली शहर के लोग वृद्धाश्रम में रह रहे बुजुर्गों को खाने-पीने की वस्तुएं दान कर रहे हैं। पूर्वजों के नाम पर दान हो रहा है। यहां रह रहे बुजुर्ग इन लोगों में अपनों को तलाशते रहते हैं। उनका कहना है कि जिनसे सहारे की आस थी, वह ही उदास छोड़ गए। वह आंखों में आंसू लिए चेहरे पर मुस्कान बिखेरते रहते हैं। जरा देर उनके पास बैठकर बात करिए तो उनका दर्द आंखों से छलक आता है। 

काशीराम वृद्धाश्रम में रह रहे बुजुर्गों ने बताया कि घर में जब बच्चा पैदा हुआ था तो पूरे मोहल्ले में खुशी मनाई थी। उन्हें बस इतनी सी ही आस रहती है कि बेटा बड़ा होकर उनके बुढ़ापे का सहारा बनेगा।  विडंबना है कि बच्चों के लिए तमाम कुर्बानियां देने और दुख सहने के बाद भी कई मां-बाप को बुढ़ापे में अपनी संतान से दुत्कार ही नसीब होती है। दुखद ये होता है कि जिसे वो अपनी जिंदगी में सबसे ज्यादा चाहते हैं, वहीं उन्हें वृद्धाश्रम की चौखट पर छोड़ देते हैं।  

पति की मौत के बाद बेटे ने भी फेरा मुंह 

बहेड़ी की केतकी देवी को उनके बेटे ने 80 साल की उम्र में घर से निकाल दिया, लेकिन मां का दिल है वह आज भी बेटे को दोष नहीं देती हैं। वह कहती हैं कि उनकी किस्मत की खराब है। पति श्याम चरण की मौत के बाद बेटे ने पहले गांव का मकान बेचा और करीब सौ बीघा जमीन अपने नाम करा ली। उसके बाद घर से निकाल दिया। वृद्धाश्रम में करीब नौ साल से हैं। बेटा नौ साल पहले एक बार आया था। वह कहती हैं कि अब घर में जाने की इच्छा नहीं है।  



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