दादाजी ने एक ही बात सिखाई, ये कभी मत सोचना कि तुम एक स्टार के बेटे हो

दादाजी ने एक ही बात सिखाई, ये कभी मत सोचना कि तुम एक स्टार के बेटे हो


हिंदी सिनेमा में राजश्री प्रोडक्शंस की पहचान एक ऐसी फिल्म निर्माण कंपनी के रूप में रही है जिसकी फिल्में दर्शक बिना किसी सोच विचार के पूरे परिवार के साथ बैठकर देख सकते हैं। कंपनी को फिल्में बनाने और वितरित करते 76 साल हो चुके हैं और पहली बार इस कंपनी की किसी फिल्म में एक साथ तीन स्टार किड्स लॉन्च होने जा रहे हैं। बॉक्स ऑफिस पर अपनी फिल्म ‘गदर 2’ की कामयाबी का जश्न अपने पिता धर्मेंद्र के साथ अमेरिका में मना रहे सनी देओल के दूसरे बेटे राजवीर देओल इसी राजश्री प्रोडक्शंस की नई फिल्म ‘दोनों’ से हिंदी सिनेमा में कदम रख रहे हैं। उनके साथ अभिनेत्री पूनम ढिल्लों की बेटी पलोमा और निर्देशख सूरज बड़जात्या के बेटे अवनीश भी अपने करियर की शुरुआत कर रहे हैं। राजवीर से ‘अमर उजाला’ की एक खास बातचीत…



फिल्म ‘दोनों’ में आपका चयन कैसे हुआ? 

मुझे पता चला था कि सूरज बड़जात्या जी के बेटे अवनीश एक कहानी पर काम कर रहे हैं और नए लोगों के साथ फिल्म बनाना चाह रहे हैं। मैंने कास्टिंग डायरेक्टर के जरिये अवनीश बड़जात्या से संपर्क किया। उन्होंने मुझे कहानी सुनाई जो मुझे बहुत पसंद आई। इस फिल्म के लिए मेरा तीन बार ऑडिशन हुआ और फिर मेरा चयन हो गया। इसके बाद ही ये बात मैंने अपने डैड (सनी देओल) और दादा जी (धर्मेंद्र) को बताई।


आप के दादा धर्मेंद्र ने राजश्री की फिल्म ‘जीवन मृत्यु’ में काम किया है। उन्होंने कोई गुरुमंत्र जैसा कुछ दिया?

उन्होंने कहा, ‘सिर्फ अपने काम पर ध्यान देना। तुम्हें अपने पिता और चाचा से हटकर एक अलग पहचान बनानी है। कभी यह मत सोचना कि वह तुम्हारी मदद करेंगे। फिल्मी माहौल के प्रभाव में कभी मत आना। चुपचाप अपना काम करते रहो। दिमाग में यह बात बिलकुल भी मत लाना कि तुम्हारे दादा, डैडी, चाचा और भाई पहले से फिल्मों में हैं तो इसका फायदा मिलेगा। तुम्हें खुद अपनी एक अलग पहचान अपने बलबूते पर बनानी हैं, एक आम इंसान की तरह। तुम्हारे मन में यह बिलकुल भी ख्याल नहीं आना चाहिए कि तुम स्टार के बेटे हो।’

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आपके पिता, दोनों चाचा बॉबी देओल, अभय देओल और भाई करण देओल की लांचिंग देओल परिवार ने की। आपकी क्यों नहीं?

मुझे बचपन में वीडियो गेम खेलने का बहुत शौक था। डैड सोच रहे थे कि बड़े होने के बाद मेरी लांचिंग ऐसी फिल्म से हो, जिसकी कहानी की पृष्ठभूमि वीडियो गेम पर आधारित हो लेकिन तब मेरा इरादा एक्टिंग का नहीं था। कभी डैड की फिल्में देख फौज में जाने का ख्याल आता तो कभी बास्केटबॉल खिलाड़ी बनने की सोचता। कॉलेज में आया और थियेटर करने लगा तो मेरी दिलचस्पी अभिनय की तरफ हुई। कॉलेज के बाद इंग्लैंड गया और अभिनय की वर्कशॉप की। वापस आया तो अवनीश की फिल्म मिल गई।

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आप अपने पिता की फिल्म ‘पल पल दिल के पास’ में बतौर सहायक निर्देशक भी काम कर चुके हैं, फिल्मी परिवारो के बच्चे अभिनय में आने से पहले निर्देशन की बारीकियां क्यों देखते हैं?

मैं इस बात में यकीन नहीं करता कि सहायक निर्देशक के तौर पर जुड़कर एक अभिनेता को कुछ सीखने को मिलता है। हां, फिल्म मेकिंग की बाकी चीजों के बारे में जानकारी मिल जाती है। डैड जब मेरे बड़े भाई करण देओल को लेकर फिल्म ‘पल पल दिल के पास’ की तैयारी कर रहे थे। तो सहायक निर्देशक के तौर पर बस इसलिए जुड़ा कि घर की फिल्म है और मुझे भी साथ में काम करना चाहिए। इस फिल्म के बाद मैंने पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट के कलाकारों के साथ वर्कशॉप्स भी कीं।

 

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