सवालों के घेरे में स्वास्थ्य महकमा
– जब 50 बेड का एमसीएच विंग है तो 29 बेड ही क्यों लगे? जबकि हर साल प्रति बेड के हिसाब से शासन बजट देता है।
– जब 12 बेडों पर ही मरीज भर्ती किए जाने थे तो 50 बेड के लिहाज से सामान, फर्नीचर, मशीनें, बेड सहित अन्य संसाधन क्यों मंगाए गए?
– एमसीएच विंग में इमरजेंसी सेवा का संचालन क्यों नहीं?, जबकि एक साथ सात डॉक्टरों व 11 पैरामेडिकल स्टाफ की तैनाती की गई है।
– कई वार्डों का ताला तक नहीं खुला। जाहिर है, यहां किसी अधिकारी ने अब तक दौरा नहीं किया।
– एमसीएच विंग में जांच की सुविधाएं क्यों नहीं दी जा रहीं?
बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के लिए खुला विंग
शहर की गर्भवती महिलाओं और नवजात बच्चों को एक ही छत के नीचे ओपीडी, जांच, भर्ती सहित अन्य सुविधाएं मिले, इसलिए जिला अस्पताल परिसर में ही 50 बेड का एमसीएच विंग खोला गया। वरुणापार के सारनाथ, आशापुर, पहड़िया, घौसाबाद, सिंधौरा, हुकुलगंज, भोजुबीर, चौबेपुर आदि इलाकों से गर्भवती महिलाएं इलाज कराने आती हैं।
पांच वार्डों में बेड नहीं, 14 बेकार पड़े
एमसीएच विंग के तृतीय तल पर छह-छह बेड के आठ वार्ड बनाए गए हैं। पंखा व एसी लगे हैं। दरवाजों पर वार्ड की सूचना भी चस्पा है, लेकिन पांच वार्ड में एक भी वेड नहीं है। वार्ड धूल से पटे पड़े हैं। तीन वार्ड में 14 बेड पड़े हैं, लेकिन इनका इस्तेमाल अभी तक नहीं किया गया है। महंगे उपकरण खरीदकर डंप कर दिए गए हैं। इनका इस्तेमाल तक नहीं हो पा रहा है। चार मंजिला भवन है। पहले से चौथे तल तक धूल ही धूल दिखी है। सफाई व्यवस्था बेहद खराब है।
नहीं चलती इमरजेंसी, एक स्टाफ नर्स व स्वीपर चलाती व्यवस्था
बुधवार की सुबह एमसीएच विंग में इमरजेंसी नहीं चलती मिली। सुबह 7 बजे पहुंचने पर पता चला कि इमरजेंसी कक्ष नहीं है। इमरजेंसी के लिए कोई डॉक्टर भी नहीं है। बस एक स्वीपर मिली। पूछने पर स्वीपर ने बताया कि कोई डॉक्टर नहीं है। एक स्टाफ नर्स हैं। वही देखेंगी। स्वीपर ही मरीजों को चादर व अन्य सामान दे रही थी।
एमसीएच विंग के देखभाल की जिम्मेदारी दीनदयाल अस्पताल के प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक के पास है। इमरजेंसी सेवा न चलने, ओपीडी में डॉक्टरों के देरी से पहुंचने का मामला गंभीर है। लापरवाही पर डॉक्टरों, कर्मचारियों के साथ ही प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक से जवाब मांगा जाएगा। – डॉ. संदीप चौधरी, सीएमओ