: नितिन मुकेश ने भरे दिल से सुनाया पापा के आखिरी शो का किस्सा, ये रहीं आखिरी पंक्तियां

: नितिन मुकेश ने भरे दिल से सुनाया पापा के आखिरी शो का किस्सा, ये रहीं आखिरी पंक्तियां



हिंदी सिनेमा के पार्श्वगायकों का जब जब जिक्र होता है, अपनी अनोखी आवाज के बूते देश दुनिया के करोडों लोगों को दीवाना बनाने वाले गायक मुकेश का जिक्र सबसे पहली बातचीत में आता है। मुकेश के बारे में इंटरनेट पर ढेरों जानकारियों, ढेरों किस्से मौजूद हैं, लेकिन जैसा कि हमारी हर बार कोशिश रहती हैं, हम इन किस्सों की सच्चाई जानने के लिए इन सितारों से या उनके परिजनों से मुलाकात करके असल बात सामने लाते रहते हैं। मुकेश को लेकर सबसे लोकप्रिय किस्सा ये है कि उनका निधन अमेरिका के एक शो में ‘एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल’ गाना गाते हुआ। मुकेश के बेटे मशहूर गायक नितिन मुकेश ने ‘अमर उजाला’ से एक एक्सक्लूसिव बातचीत में न सिर्फ अपने पिता के निधन से ठीक पहले के लम्हों का साझा किया, बल्कि और भी तमाम दिलचस्प जानकारियां दीं। आगे की कहानी, खुद नितिन मुकशे की जुबानी…



पापा की गाई आखिरी पंक्तियां

पापा ने अपने जीवन में आखिरी बार कोई गीत गाया तो ये टोरंटो के शो  में गाईं थी। उस दिन ये तय हुआ कि मैं और पापा ये गाना साथ गाएं। वह गाना शुरू करते थे और मैं दूसरे अंतरे से उनका साथ देता था। तो उनकी लाइन थी,

अपनी नजर में आज कल, दिन भी अंधेरी रात है

साया ही अपने साथ था, साया ही अपने साथ है

फिर वो मुखड़ा गाते थे,

जाने कहां गए वो दिनकहते थे तेरी राह में

नजरों को हम बिछाएंगे

चाहे कहीं भी तुम रहोचाहेंगे तुमको उम्र भर

तुमको ना भूल पाएंगे

जाने कहां गए वो दिन …

फिर म्यूजिक बजता और फिर मेरी लाइन आती..

इस दिल के आशियाने में बस उनके ख़याल रह गये

तोड़ के दिल वो चल दिहम फिर अकेले रह ग

सोचिए कि भगवान ने मेरे मुख से, मेरे कंठ से क्या लाइनें कहलवाईं। विधि में जो लिखा हो वह ईश्वर को ही पता है कि कल का दिन ये इंसान देखेगा कि नहीं। लेकिन किसी से ये कहलवा देना! जब वह नहीं रहे तो मेरा ध्यान सबसे पहले इसी तरफ गया। आखिरी पंक्तिया मैंने पापा के साथ गाईं, तोड़ के दिल वो चल दिए, हम फिर अकेले रह गए…


पापा की पहली स्मृतियां

जब मैं बच्चा तो मुझे तो ख्याल भी नहीं आता था कि मैं इतने बड़े महान पिता का बेटा हूं। और, वह इसलिए कि उन्हें खुद भी महसूस ही नहीं होता था कि मैं इतनी बड़ी हस्ती हूं। वह बहुत ही सादा मिजाज के आदमी थे। जैसे हनुमानजी को उनकी शक्ति के बारे में याद दिलाना पड़ा था, वैसे ही हमें पापा को याद दिलाना पड़ता था कि आप इतने बड़े स्टार या इतने बड़े गायक हो। वह अक्सर बस की लाइन में खड़े हो जाते थे। टैक्सी में ही कहीं भी चले जाते थे। हम कुछ इस बारे में कहते तो वह बस एक उंगली दिखाते कि बेटा आज तो कह दिया अब फिर कभी न कहना। मैं जैसा हूं, वैसा खुश हूं। मुझमें औरों से अलग कोई बात नहीं है।


किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार

मैं नौ साल का था जब ‘अनाड़ी’ फिल्म आई थी। ये गीत अगर लिखा गया किसी के लिए तो वह थे पापा, ‘किसी की मुस्कुराहटों में हो निसार, किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार.. ’वो दुनिया जहान का दर्द अपने दिल में समेट लेते थे। और, ‘किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार… ’, तो वो दुनिया जहान को अपना प्यार बांटते थे। इसीलिए लगता है कि ये गीत उनके लिए ही लिखा गया था। इसी फिल्म के गाने ‘सब कुछ सीखा हमने न सीखी होशियारी’ के लिए उन्हें पहला फिल्मफेयर अवार्ड मिला था।


अपने ही गानों से मुकाबला

1972 के फिल्मफेयर पुरस्कारों में फिल्म ‘मेरा नाम जोकर का’ का गाना ‘जाने कहां गए वो दिन’, फिल्म ‘आनंद’ का गाना ‘कहीं दूर जब दिन ढल जाए’ और फिल्म ‘बेईमान’ का गाना ‘जै बोलो बेईमान की’ मुकाबले में थे। पुरस्कार फिल्म ‘बेईमान’ के गाने को मिला। तीनों गाने उनके लिए तो तीन बच्चे ही थे लेकिन ‘मेरा नाम जोकर’ का गीत ‘जाने कहां गए वो दिन’..इस सबमें मेरा सबसे खास है।




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