इस पेड़ पर सिक्का क्यों चिपकाते हैं लोग
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देश का इकलौता शहर जहां अकाल मृत्यु और अतृप्त आत्माओं की शांति के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध होता है। पीपल के पेड़ पर सिक्का रखकर पितरों का उधार चुकाया जाता है। पिशाचमोचन कुंड के पीपल के पेड़ से भी कई मान्यताएं जुड़ी हैं। पूर्णिमा के श्राद्ध के साथ ही 29 सितंबर से पितरों के श्राद्ध का पक्ष आरंभ हो जाएगा। पितृ पक्ष पर तर्पण के लिए आने वालों का सिलसिला शुरू हो चुका है।
पिशाचमोचन कुंड पर कर्मकांड के अजीबो गरीब विधान श्रद्धालुओं के लिए आश्चर्य से कम नहीं हैं। पिशाचमोचन कुंड का पीपल पेड़ मान्यता का साक्षी है। पेड़ में ठोंके गए असंख्य सिक्के और कील किसी न किसी अतृप्त आत्मा का ठिकाना है। पीपल के पेड़ पर मृत व्यक्ति की तस्वीर और उनके किसी न किसी प्रतीक चिह्न को भी लगाया जाता है। अकाल मृत्यु से मरने वालों के लिए पिशाचमोचन पर ही मुक्ति का द्वार खुलता है। यहां देश-विदेश से लोग अपने पितरों का तर्पण करने के लिए आते हैं, ताकि पितर सभी बाधाओं से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर सकें और यजमान भी पितृ ऋण से मुक्त हो सकें।
तीर्थ पुरोहित दीपक पांडेय ने बताया कि पेड़ में सिक्के या कील गाड़ने का विधान 12 महीने का होता है, लेकिन पितृ पक्ष के 15 दिन बेहद खास माने जाते हैं। ये पक्ष पितृ लोक में रहने वाले पितरों और प्रेत योनियों में भटकती आत्माओं का मुक्ति द्वार माना गया है। गया में पितरों का श्राद्ध होता है। लेकिन, पिशाचमोचन में पितरों के अलावा घात प्रतिघात और अकाल मृत्यु में मारे गए ज्ञात अज्ञात आत्माओं के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध होता है। इस पक्ष में किया गया श्राद्ध आत्माओं को मोक्ष दिलाता है।