पुलिस स्मृति दिवस के मौके पर वीर जवानों को याद किया गया। जिन्होंने देश की हिफाजत करते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी। इन वीर शहीदों के परिवार के मन में एक ओर जहां पिता, बेटे, पति, भाई की देश के लिए शहादत पर गर्व है तो वहीं दूसरी ओर उन्हें हमेशा के लिए खो देने का दर्द भी है। इन परिवारों ने अपनों की कुछ निशानियों को आज भी सहेजे हुए रखा है। इन निशानियों में ही गर्व और दर्द दोनों छिपे हैं। किसी घर में उनकी वर्दी रखी है तो किसी घर में उनकी शहादत के बाद सम्मान में दिए गए मेडल और स्मृतिचिन्ह हैं। कहीं पिता और भाई शहीद हुए तो बेटी ने वर्दी पहनकर देश की सुरक्षा के लिए शपथ ले ली तो किसी शहीद के बेटे ने पिता के अधूरे सपनों को पूरा करने का बीड़ा उठा लिया है। जबकि कुछ परिवारों को इस बात का भी दुख है कि शहादत के वक्त जो वादे किए गए थे। वो आज तक पूरे नहीं हो सके हैं।
बदमाशों से मुठभेड़ में जान गंवाई थी सिपाही हरेंद्र सिंह सिरोही ने
संभल के चंदौसी में बदमाशों से मुठभेड़ में जान गंवाने वाले सिपाही हरेंद्र सिंह सिरौही के परिवार का दर्द छलक आया। उन्होंने बताया कि चार साल बाद भी उनके नाम पर गांव में शहीद स्मारक द्वार नहीं बना। वह कई बार पुलिस अफसरों और मुख्यमंत्री को प्रार्थना पत्र दे चुके हैं। बिजनौर के चंदूपुरा निवासी हरेंद्र सिंह सिरौही यूपी पुलिस में सिपाही थे। उनका परिवार सिविल लाइंस के आशियाना कॉलोनी में रहता है। परिवार में पत्नी मधु देवी, बेटा अतुल सिंह सिरौही, बहू सरिता सिंह और एक पोता है। अतुल ने बताया कि पिता संभल रिजर्व पुलिस लाइन में तैनात थे।
17 जुलाई 2019 जिला कारागार से 24 बंदियों को लेकर चंदौसी कोर्ट में गए थे। वहां से लौटते समय तीन बंदी पुलिस टीम पर हमला कर भाग गए थे। जिसमें अतुल के पिता और एक अन्य पुलिस कर्मी ब्रजपाल की जान चली गई थी। बेटे ने बताया कि उन्हें अपने पिता की शहादत पर गर्व है लेकिन उनके खोने का गम जीवन भर रहेगा। अब वह खुद ही पुलिस विभाग में भर्ती हो चुके हैं और अपनी सेवाएं दे रहे हैं। उन्हें इस बात पर दुख है कि सरकार ने उस वक्त पिता के नाम पर गांव में शहीद द्वार और उनकी मूर्ति लगवाने की बात कही थी लेकिन अब तक कुछ नहीं बन पाया है।
आतंकी हमले से शहीद हो गए थे मेवाराम मिश्रा
पति मेवाराम मिश्रा आतंकी हमले में शहीद हुए और बेटे विनोद मिश्रा की बदमाशों से मुठभेड़ में जान चली गई। बावजूद इसके मोहिनी मिश्रा ने हिम्मत नहीं हारी। इसके बाद भी उन्होंने अपनी बेटी सुनीता मिश्रा को पुलिस विभाग में भर्ती कराया। अब सुनीता मिश्रा इंस्पेक्टर हैं और हाथरस की चंदपा कोतवाली की प्रभारी हैं। सुनीता मिश्रा ने बताया कि उनके पिता मेवाराम मिश्रा मूलरूप से शाहजहांपुर जनपद के मीरानपुर कटरा थानाक्षेत्र के खिरिया सकटू गांव थे। वह उत्तर प्रदेश पुलिस में दरोगा के पद पर तैनात थे। उनकी तैनाती अमरोहा के धनौरा में थी।
9 अक्तूबर 1991 में खालिस्तानी आतंकी संगठन ने पुलिस टीम पर हमला कर दिया था। जिसमें मेरे पिता समेत पांच पुलिस की शहीद हो गए थे। पिता के शहीद होने के बाद भाई विनोद मिश्रा एसआई के पर पर भर्ती हो गए थे। भाई की तैनाती कटघर थाने की लाजपत नगर पुलिस चौकी पर थी। 1997 में भाई विनोद मिश्रा ने मुठभेड़ में दो बदमाश ढेर कर दिए थे जबकि तीसरे बदमाश ने उन्हें गोली मार दी थी। भाई भी शहीद हुआ तो मां ने मुझे पुलिस में भर्ती होने का निर्णय लिया। पति और एक इकलौते बेटे को खोने वाली मां का साहस देखकर मुझे हिम्मत मिली। 1999 में मैं एसआई के पद पर भर्ती हो गई थी। मैं मुरादाबाद में डिलारी थाने की प्रभारी बनी। इसके बाद रामपुर, अलीगढ़ में भी तैनाती रही। वर्तमान में हाथरस की चंदपा कोतवाली की प्रभारी हूं।