पीसीएस अफसर अरविंद कुमार त्रिपाठी (लाल घेरे में) से हाथापाई करते हमलावर।
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एलडीए का प्रवर्तन दस्ता ऐशबाग इंडस्ट्रियल एरिया में इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट की जमीन खाली कराने पहुंचा, तो कब्जेदार एवं उसके परिजनों ने हमला बोल दिया। पुलिस की मौजूदगी में हमलावर दस्ते के अधिकारी एवं इंजीनियरों से भिड़ गए। करीब 20 मिनट तक धक्का-मुक्की, खींचातानी चलती रही। इसमें पीसीएस अफसर अरविंद कुमार त्रिपाठी सहित कई कर्मचारी चोटिल हुए। सूचना पर एसीपी के साथ ही और पुलिस फोर्स के पहुंचने पर कब्जेदार पीछे हटे। इस दरम्यान पंजाब लॉन के मालिक मुकेश शुक्ला व अन्य से करीब दो लाख वर्ग फीट जमीन अवैध कब्जे से मुक्त कराई गई। इसकी कीमत लगभग 500 करोड़ रुपये बताई जा रही है।
एलडीए उपाध्यक्ष डॉ. इंद्रमणि त्रिपाठी ने बताया कि नजूल अधिकारी अरविंद कुमार त्रिपाठी के नेतृत्व में टीम ने शनिवार सुबह अवैध कब्जों और अतिक्रमण को हटाने का अभियान शुरू किया था। इसी दौरान अवैध कब्जा करके बनाए गए पंजाब लॉन के मालिक मुकेश शुक्ला, इनके परिजनों व सहयोगियों ने प्राधिकरण की टीम पर हमला कर दिया। इन सबने कार्रवाई में बाधा डालने का प्रयास किया। भारी विरोध के बावजूद एलडीए के दस्ते ने कार्रवाई जारी रखी और पंजाब लॉन के साथ ही कार वर्कशॉप, पेंट कंपनी के गोदाम, फैक्टरी समेत 12 अवैध निर्माणों को पूरी तरह ध्वस्त करके जमीन को खाली करा लिया।
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इंप्रूवमेंट ट्रस्ट है क्या…
वर्ष 1915 में बाढ़ की विभीषिका झेलने के बाद ब्रिटिश अधिकारियों ने शहरी विकास और नगर नियोजन को प्राथमिकता देना शुरू किया। इस काम के लिए 1920 में इंप्रूवमेंट ट्रस्ट की स्थापना की गई। नाका, राजेंद्रनगर, महानगर, निरालानगर, न्यू हैदराबाद, सिविल लाइंस जैसी 24 से अधिक कॉलोनियां इंप्रूवमेंट ट्रस्ट ने विकसित कीं। वर्ष 1958 में इसे लखनऊ नगर पालिका के भवन अनुभाग में निहित कर दिया गया। वहीं, 1974 में शहर के विस्तारित इलाकों को शामिल करते हुए विकास को प्राथमिकता देने के लिए अलग से लखनऊ विकास प्राधिकरण का गठन किया गया। इसके बाद इंप्रूवमेंट ट्रस्ट की संपत्तियां एलडीए के स्वामित्व व प्रबंधन में आ गईं।
12 साल पहले खत्म हो चुकी थी लीज
उपाध्यक्ष डॉ. त्रिपाठी ने बताया कि एक सितंबर 1921 को लखनऊ इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट ने ऐशबाग इंडस्ट्रियल एरिया योजना के भूखंड संख्या-1 का पट्टा 90 वर्षों की अवधि के लिए गुरुबख्श सिंह को औद्योगिक प्रयोजन के लिए दिया था। इसकी पट्टा अवधि वर्ष 2011 में समाप्त हो गई थी। कुछ लोग इस भूखंड के अलग-अलग हिस्से में अवैध कब्जा करके व्यावसायिक उपयोग कर रहे थे। जमीन को कब्जामुक्त कराने के आदेश दिए गए थे।