सुप्रीम कोर्ट
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सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को 2002 गुजरात दंगे के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में 11 दोषियों की समयपूर्व रिहाई को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की। सुनवाई के दौरान शीर्ष कोर्ट ने पूछा कि क्या दोषियों को माफी मांगने का मौलिक अधिकार है?
न्यायाधीश बीवी नागरत्ना और उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने 11 दोषियों में से एक की ओर से पेश वकील से सवाल किया कि इस मामले में क्या दोषियों का माफी मांगने का अधिकार मौलिक अधिकार है। क्या कोई याचिका संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर की जाएगी। गौरतलब है कि अनुच्छेद 32 नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होने पर सीधे सुप्रीम कोर्ट जाने के अधिकार से संबंधित है।
इस पर वकील ने जवाब देते हुए कहा कि नहीं, यह दोषियों का मौलिक अधिकार नहीं है। पीड़ित और अन्य को भी अनुच्छेद 32 के तहत याचिका दायर करके सीधे शीर्ष अदालत में जाने का अधिकार नहीं है। क्योंकि उनके किसी भी मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं किया गया है। वकील ने दलील देते हुए कहा कि पीड़ितों के पास छूट दिए जाने को चुनौती देने के अन्य वैधानिक अधिकार हैं।
वहीं, एक अन्य वरिष्ठ वकील ने कहा कि सक्षम प्राधिकारी द्वारा दी गई छूट संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालयों के समक्ष न्यायिक समीक्षा के लिए खुली है।
बता दें कि दोषियों की ओर से दलीलों की प्रक्रिया बुधवार को पूरी हो गईं। अब अदालत इस मामले में चार अक्तूबर को इस मामले में सुनवाई करेगी। उस दिन दोपहर दो बजे बिलकिस बानो के वकील और अन्य की जवाबी दलीलें सुनी जाएंगी।
इससे पहले, पिछली सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि कुछ दोषी ऐसे हैं जिन्हें अधिक विशेषाधिकार मिले हुए हैं। जस्टिस बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने दोषी रमेश रूपाभाई चंदना की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा से कहा कि हम छूट की अवधारणा को समझते हैं। यह सर्वमान्य है, लेकिन यहां पीड़ित और अन्य वर्तमान मामले में इस पर सवाल उठा रहे हैं।
पीठ ने कहा कि आमतौर पर राज्यों की ओर से इस तरह की छूट से इनकार किए जाने के खिलाफ मामले दायर किए जाते हैं। वहीं, लूथरा ने कहा कि कानूनी स्थिति और नीति वही बनी हुई है। उन्होंने कहा कि आजीवन कारावास की सजा के दोषियों का पुनर्वास और सुधार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक स्थापित स्थिति है।
वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने 17 अगस्त को गुजरात सरकार से कहा था कि राज्य सरकारों को दोषियों को सजा में छूट देने में चयनात्मक रवैया नहीं अपनाना चाहिए। प्रत्येक कैदी को सुधार तथा समाज के साथ फिर से जुड़ने का अवसर दिया जाना चाहिए। गुजरात सरकार ने मामले के सभी 11 दोषियों की समय-पूर्व रिहाई के अपने फैसले का बचाव किया था।