लंबी सुनवाई के दौरान कोर्ट ने एएसजे राजू से कड़े सवाल किए। आइये जानते हैं ये सवाल क्या थे?
हम सवाल पूछते हैं, हम जवाब चाहते हैं
पीठ ने सुनवाई की शुरुआत में कहा, ‘शराब नीति मामले में आप को ‘आरोपी’ बनाने से सबंधित ईडी से पूछा गया सवाल सिर्फ कानूनी था, किसी राजनीतिक दल को फंसाने के लिए नहीं था। पीठ ने कहा, सवाल यही था कि ए और बी को आरोपी बनाया है और सी को फायदा पहुंचा है, तो उसे आरोपी क्यों नहीं बनाया? हम सवाल पूछते हैं, हम जवाब चाहते हैं। हम मीडिया से प्रभावित नहीं होते।
दरअसल, सिसोदिया के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि मीडिया में हेडलाइन है कि कोर्ट ने ईडी ने पूछा, ‘पार्टी को आरोपी क्यों नहीं बनाया गया’। सवाल को मीडिया ने ऐसे चित्रित किया, जैसे कि अदालत ऐसा चाहती है।
दिनेश अरोड़ा के बयान के अलावा कोई अन्य सबूत है?
पीठ ने एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू से कहा, ‘आपको कड़ी (चेन) स्थापित करनी होगी। पैसा शराब लॉबी से व्यक्ति तक पहुंचना चाहिए। हम सहमत हैं कि कड़ियां जोड़ना मुश्किल है क्योंकि सबकुछ गुप्त रूप से किया गया….पर यहीं आपकी क्षमता की बात आती है। क्या दिनेश अरोड़ा के बयान के अलावा कोई अन्य सबूत है?’
पैसे शराब से जुड़े लोगों ने दिए यह जरूरी नहीं
पीठ ने पूछा, ‘क्या मनी लॉन्ड्रिंग की आय को सिसोदिया से जोड़ने का कोई संकेत है। आप तथ्यात्मक और कानूनी रूप से सिसोदिया की ओर से मनी लॉन्ड्रिंग को कैसे स्थापित करेंगे? उन्हें पता हो सकता है कि इसका इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन वह कभी भी भौतिक कब्जे में नहीं आया।’
पीठ ने यह भी पूछा, ‘उसने दो आंकड़े 100 करोड़ और 30 करोड़ रुपये की बात की है। सवाल यह है कि उन्हें (आरोपी) यह भुगतान किसने किया क्योंकि पैसे देने वाले बहुत से लोग हो सकते हैं, जो जरूरी नहीं कि शराब से जुड़े हों।’
क्या ‘नीतिगत निर्णय’ चुनौती के अधीन है?
न्यायमूर्ति खन्ना ने पूछा कि क्या 2021-22 के लिए दिल्ली सरकार की उत्पाद शुल्क नीति चुनौती के अधीन है। इस पर एएसजी राजू ने कहा कि एजेंसियां नीतिगत फैसले को चुनौती नहीं दे रही हैं। इसके बाद जस्टिस खन्ना ने पूछा, ‘लेकिन आप कहते हैं कि नीतिगत फैसला व्यक्तिगत लाभ के लिए था। तो क्या इसका मतलब यह नहीं होगा कि आप नीतिगत निर्णय को चुनौती दे रहे हैं?’
एएसजी ने जवाब में कहा कि नीति इस तरीके से तैयार की गई थी जिससे कुछ थोक विक्रेताओं को फायदा हुआ और इसमें सिसोदिया की भी भूमिका थी। उन्होंने कहा कि यह नीति पुरानी उत्पाद शुल्क नीति को बदलने के लिए एक मुखौटे के रूप में तैयार की गई थी, जिसे दिल्ली सरकार का समर्थन नहीं था। राजू ने कहा, ‘पुरानी बदलने के लिए रवि धवन विशेषज्ञ समिति से रिपोर्ट मांगी गई थी। हालांकि, जब वह रिपोर्ट प्रतिकूल आई तो सिसोदिया नाखुश हो गए और नीति के खिलाफ आपत्तियां और सुझाव आमंत्रित किए गए। उन आपत्तियों में हम याचिकाकर्ता की भूमिका देखते हैं।’
क्या लोगों से किसी नीति का समर्थन करने के लिए कहना गलत है?
एएसजी राजू ने अपनी दलील में आगे कहा कि नई उत्पाद शुल्क नीति तैयार करने के लिए हितधारकों की सार्वजनिक राय को छुपाया गया और हेरफेर किया गया। इस पर न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा- ‘मिस्टर राजू, इस पर विश्वास करना बहुत मुश्किल है… एक नीति बनाई गई है। कुछ राजनीतिक व्यक्ति सोचते हैं कि यह नीति इस तरह होनी चाहिए। वे बयान देते हैं। वे फीडबैक लेते हैं। वे लोगों से नीति का समर्थन करने के लिए कह रहे हैं – क्या यह गलत है?’
एएसजी राजू ने कहा कि वास्तविक सुझाव कोई समस्या नहीं है, लेकिन एक जैसे शब्दों वाले ईमेल से पता चलता है कि यह कॉपी-पेस्ट का काम था। एएसजी ने तब कहा कि सिसोदिया कुछ पार्टियों के लिए मुफीद उत्पाद शुल्क नीति तैयार कर रहे थे। राजू ने कहा कि सिसौदिया ने पूर्व उत्पाद शुल्क आयुक्त राहुल सिंह से कैबिनेट नोट का मसौदा तैयार करने को कहा था। हालांकि, चूंकि यह नोट उनके विचार के मुताबिक नहीं था कि नीति कैसे तैयार की जानी है, एक नया नोट तैयार किया गया और कैबिनेट के सामने रखा गया। इसके साथ ही पुराने नोट को नष्ट कर दिया गया।
इस दलील पर न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा- ‘राजू, कभी-कभी नौकरशाह कुछ बनाते हैं। कभी-कभी राजनीतिक कार्यकारी कह सकते हैं कि कृपया इसे इस तरह से तैयार करें। राजनीतिक कार्यकारी ने एक नोट भेजा है जिसमें कहा गया है कि यह वैसा नहीं है जैसा हम चाहते थे…।’
एएसजी राजू ने इस पर जवाब दिया कि तथ्य यह है कि नोट को नष्ट कर दिया गया था। यह स्पष्ट करता है कि इसमें कुछ ऐसा था जिसे वे देखना नहीं चाहते थे।
क्या यह बयान कि विजय नायर सिसौदिया के लिए काम कर रहे थे, महज एक राय नहीं है?
सुनवाई के दौरान एएसजी ने कहा कि एक सरकारी गवाह के बयान के अनुसार, विजय नायर सिसोदिया की ओर से काम कर रहे थे। इस पर जस्टिस खन्ना ने कहा- ‘यह किसका बयान है? यह उनकी राय है।’
एएसजी राजू ने तर्क दिया, ‘नायर को सीएम के बंगले के बगल में एक बंगला दिया गया था और वह सीएम के कार्यालय से काम करते थे। वह कोई ऐसा व्यक्ति है जो आम आदमी पार्टी से जुड़ा हुआ है।’
रिश्वत कैसे दी गई?
इसके बाद न्यायमूर्ति खन्ना ने पुछा कि रिश्वत कैसे दी गई। जांच एजेंसियों ने आरोप लगाया था कि सिसोदिया ने 100 करोड़ रुपये की रिश्वत के बदले दक्षिण के कुछ नेताओं को शराब के लाइसेंस दिए। जस्टिस खन्ना ने पूछा, ‘आप कैसे कहते हैं कि रिश्वत दी गई थी? यह पूरी तरह से सरकारी गवाह के बयानों के आधार पर है।’ हालांकि, एएसजी राजू ने इसका नकारात्मक जवाब दिया।