मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता: 11 साल में खोए दोनों बेटे, अब मां-बाप का कोई सहारा नहीं, याद किया तो छलक आए आंसू

मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता: 11 साल में खोए दोनों बेटे, अब मां-बाप का कोई सहारा नहीं, याद किया तो छलक आए आंसू



नैपाल सिंह के बेटों की फाइल फोटो
– फोटो : संवाद

विस्तार


शोले फिल्म में बुजुर्ग कलाकार एके हंगल का डायलॉग, जानते हो दुनिया का सबसे बड़ा बोझ क्या होता है? …बाप के कंधों पर बेटे का जनाजा…इससे भारी बोझ कोई नहीं है। 60 वर्षीय नैपाल सिंह का दर्द, फिल्म के इस डायलॉग से भी कहीं ज्यादा है। नैपाल सिंह ने एक नहीं अपने दो जवान बेटों के जनाजों का बोझ अपने कंधों पर उठाया है। उन्होंने 11 साल में अपने दो जवान बेटे खो दिए।

मंडी समिति के सामने गली में रहने वाले नैपाल सिंह सिक्योरिटी गार्ड कंपनी संचालित करते हैं। उनके दो बेटे धीरेंद्र और परिवंदर थे। 2011 में मानसिक तनाव के कारण बड़े बेटे धीरेंद्र सिंह ने महज 19 साल की उम्र में आत्महत्या कर ली। इस दुख से उबरने में परिवार को कई साल लग गए।

जैसे तैसे बड़े बेटे की मौत का दर्द भुला कर जिंदगी पटरी पर लौटी ही थी, लेकिन 11 साल बाद 22 वर्षीय छोटे बेटे परविंदर सिंह उर्फ बॉबी ठाकुर ने भी आत्महत्या कर ली। उसकी शादी को महज आठ माह हुए थे। इन दोनों के तनाव का कारण क्या था, मरते-मरते भी किसी ने नहीं बताया।

अब बूढ़े पिता नैपाल सिंह और उनकी पत्नी का कोई सहारा नहीं है।  दोनों को मलाल है कि अगर बेटों ने आत्मघाती कदम उठाने से पहले हमसे बात की होती तो कुछ भी करते लेकिन उन्हें मरने न देते।

हंसमुख था बॉबी…कहता था भैया जैसी गलती नहीं करूंगा

बेटों के बारे में बताते-बताते नैपाल सिंह का गला रुंध गया और जुबान लड़खड़ाने लगी। कहते हैं कि छोटा बेटा परविंदर उर्फ बॉबी ठाकुर बहुत हंसमुख था। कभी किसी बात पर वह उदास दिखता था तो हमारी जान निकल जाती थी।

उसकी मां उसे समझातीं तो वह हंसने लगता था। कहता था कि मां आप घबराओ मत, जो गलती भैया ने की थी, वो मैं कभी नहीं कर सकता। इसके बावजूद उसने ऐसा कदम उठाया, जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी।

संजो कर रखें हैं बेटों के कपड़े और गिटार

नैपाल सिंह ने अपने घर की तीसरी मंजिल पर छोटे बेटे के कमरे का दरवाजा खोला तो उनकी आंखें डबडबा गईं। कमरे में बॉबी के होम थियेटर के स्पीकर, बॉडी बिल्डिंग के उसके सार्टिफिकेट, तस्वीरें लगी हुई थीं। अलमारी में दोनों बेटों के कपड़े आज भी सही से रखे हुए हैं।

अलमारी के नीचे के खाने में रखा गिटार देखकर पिता ने दुख से सिर पकड़ लिया। बोले कि छोटा बेटा बहुत जिद करके यह गिटार लाया था। खुद सीखकर अच्छा बजाने लगा था, ये गिटार भी उसकी अंगुलियों का इंतजार करता है।

काश… बेटों ने अपनी परेशानी बताई होती

नैपाल सिंह और उनकी पत्नी आत्महत्या शब्द सुनकर भी डर से जाते हैं। जिस कारण से उन्होंने अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी पूंजी खो दी, उसका महज बातचीत से हल निकल सकता था। दोनों को इस बात का दुख है कि बेटों ने उन्हें अपनी परेशानी के बारे में बताया तक नहीं। अगर बात करते तो शायद आत्महत्या न करते।

पति-पत्नी लोगों से हाथ जोड़कर अपील करते हैं कि परेशानी कैसी भी हो, बातचीत से उसे हल किया जा सकता है। अपने माता-पिता, करीबियों, दोस्तों से अपने दुख जरूर साझा करें, जिससे कोई मां-बाप ढलती उम्र में गम में न डूबें, अपनी किस्मत को न कोसें।



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