मुरादाबाद दंगे के दौरान हालात
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मुरादाबाद में 13 अगस्त 1980 की तारीख इतिहास में कालिख की तरह चस्पा है। इस दिन ईद की नमाज के दौरान हुए विवाद ने दंगे का रूप ले लिया था। इसमें 83 लोग मारे गए थे। दंगे में अपनों को खोने वाले परिवार 43 साल बाद भी दर्द नहीं भूल पाएं हैं। लूटपाट, आगजनी में लोगों के कारोबार तबाह हो गए थे।
मुरादाबाद में दंगे से एक दिन पहले ही साजिश के तहत दो एफआईआर दर्ज कराई गई थीं। पहली एफआईआर थाना मुगलपुरा में हामिद हुसैन की ओर लिखाई गई थी जबकि दूसरी एफआईआर कटघर में काजी फजुलुर्रहमान की ओर से दर्ज कराई गई थी। जिसमें गाली-गलौज और जान से मारने की धमकी देने के आरोप लगाए गए थे।
जांच में दोनों केस झूठे पाए गए थे। सामने आया था कि शहर में दंगा भड़काने वाले वाल्मीकि समाज और पंजाबी समाज को बदनाम करना चाहते थे। पुलिस अधिकारियों के अनुसार नागफनी, मुगलपुरा और कोतवाली में दंगों का रिकॉर्ड नहीं है।
आशंका है कि हिंसा में सभी दस्तावेज जला दिए गए हों। सूत्रों के अनुसार रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद अभियोजन विभाग के अधिकारी दर्ज मुकदमों की समीक्षा कर सकते हैं। इसके लिए सभी मुकदमों और दस्तावेजों को खंगाला जाएगा।
क्षेत्र में नहीं लगी पीएसी की ड्यूटी
मुरादाबाद में 1980 के दंगे के बाद मुस्लिम समाज ने पीएसी पर आरोप लगाए थे। इसके बाद 1980 से लेकर 2011 तक मुरादाबाद में मुस्लिम बहुल क्षेत्र में पीएसी की डयूटी पर पाबंदी लगा दी गई थी 2011 में कांवड़ यात्रा के दौरान बवाल हुआ था।
इसके बाद शहर के छह थाना क्षेत्र में कर्फ्यू लगा दिया गया था। इस दौरान पीएसी जवानों की ड्यूटी लगाई गई थी। इसके बाद पीएसी की ड्यूटी से पाबंदी करा दी गई थी। हालांकि जांच रिपोर्ट में पुलिस और पीएसी को क्लीनचिट दे दी गई थी।