ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगेः गजब का है यह याराना, 51 साल से है दोस्ताना

ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगेः गजब का है यह याराना, 51 साल से है दोस्ताना


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मित्रता दिवस पर अपनी दोस्ती की गोल्डन जुबली दो यारों अजय पटेल और अजय बिसारिया ने मनाई। दोनों का कार्य क्षेत्र अलग, विचारों में मतभेद भी, लेकिन उनमें कोई मनभेद नहीं है। इसलिए ये याराना 51 साल से बदस्तूर चला आ रहा है। 

1972 में नौरंगीलाल राजकीय इंटर कॉलेज में कक्षा छह में अजय पटेल और अजय बिसारिया ने दाखिला लिया। दोनों की यहीं से दोस्ती शुरू हुई। दोस्ती ऐसी हो गई कि दोनों एक-दूसरे परिवार में बेटे माने जाने लगे। दोनों के घूमने-फिरने पर परिवार को एतराज भी नहीं होता था। 12वीं तक एक साथ पढ़ाई करने के बाद पटेल बीटेक करने मद्रास चले गए, जबकि बिसारिया ने बीए में दाखिला ले लिया, लेकिन दोनों में दोस्ती प्रगाढ़ होती चली गई। कुछ समय के बाद बिसारिया एएमयू में बतौर हिंदी विभाग के शिक्षक हो गए, जबकि पटेल एक सफल उद्यमी बन गए। वो रे इंटरनेशनल के निदेशक भी हैं। वर्ष 2008 में पटेल को जब स्टेंट पड़ा तो केवल बिसारिया ने देखभाल की, जब छह महीने के बाद बिसारिया को स्टेंट पड़ा, तो पटेल ने देखभाल की। दोनों की दोस्ती आज भी कायम है। पूर्व विधायक इंद्रपाल सिंह के बेटे अजय पटेल ने बताया कि अजय बिसारिया उनके दोस्त नहीं, बल्कि पथ प्रदर्शक हैं। अजय बिसारिया ने बताया कि अजय पटेल ने संघर्ष करके एक सफल उद्यमी बने हैं। उनमें जुझारुपन और बेबाकी है। उन्होंने कहा कि मित्रता कायम होने का फॉर्मूला उसका इतिहास है। अगर मित्रता का इतिहास याद रहा, तो मित्रता टूटेगी नहीं।

50वीं दोस्ती सालगिरह में की बड़ी दावत

प्रमोद कुमार गुप्ता और प्रदीप कुमार अग्रवाल न केवल शुरू से साथ पढ़े, बल्कि उच्च शिक्षा साथ ली। प्रदीप अग्रवाल सरकारी सेवा में मुंबई चले गए। प्रमोद गुप्ता अलीगढ़ में ही अपना व्यवसाय शुरू कर दिया। दोनों दूर रहे, लेकिन दोस्ती में दूरी नहीं रही। सामाजिक कार्यक्रम हो या वैवाहिक कार्यक्रम। सभी जगह दोनों एक जैसे ही कपड़े और जूते पहनकर जाते। लोगों की खुशी का ठिकाना उस समय नहीं रहा, जब इन दोनों ने मिलकर अपनी 50वीं दोस्ती की सालगिरह में 500 लोगों को दावत दी। दोनों परिवारों में भी आपसी संबंध है। 

तरक्की से नाम में बदलाव 

प्रदीप कुमार गुप्ता और राजीव अग्रवाल की दोस्ती उस समय से है, जब न तो प्रदीप, प्रदीप के गुप्त थे और न ही राजीव, राजीव अग्रवाल प्लस प्वाइंट थे। बचपन से साथ पढ़े। गुमनामी के अंधेरे में थे। राजीव अग्रवाल के घर के बाहर एक टटिया पड़ी हुई थी।टटिया के अंदर बैठकर हम सारे दोस्त, हाथ से हवा भरने वाले स्टोव से चाय बनाकर पीते थे। दोनों को ही शुरू के व्यापारिक दिनों में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन दोनों ने ही हिम्मत नहीं हारी। राजीव अग्रवाल को अपनी पहचान, अपनी फर्म और उत्पाद का नाम प्लस प्वाइंट रखने से मिली, जबकि प्रदीप कुमार का शौक लेखन और सामाजिक कार्यों की ओर बढ़ा। 



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