राजा महेंद्र प्रताप सिंह
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बात स्वतंत्रता आंदोलन की चल रही हो और मुरसान नरेश राजा महेंद्र प्रताप का जिक्र न हो, ऐसा कैसे हो सकता है। राजा महेंद्र प्रताप ने अपने जीवन के कई कीमती वर्ष विदेशों में रहकर देश की आजादी का माहौल बनाने में बिता दिए। अफगानिस्तान में उन्होंने हिंद सरकार की स्थापना की और इसके पहले राष्ट्रपति बने।
राजा महेंद्र प्रताप का जन्म एक दिसंबर 1886 में मुरसान के राजा घनश्याम सिंह के यहां हुआ था। वह उनकी तीसरी संतान थे। उनको हाथरस के राजा हरनारायण सिंह ने बतौर दत्तक पुत्र गोद लिया। उनकी प्रारंभिक शिक्षा हाथरस में ही हुई और आगे की पढ़ाई के लिए वह अलीगढ़ पहुंचे। अलीगढ़ से ही उन्होंने हाईस्कूल पास किया। इसके बाद बीए की प्रथम वर्ष की शिक्षा मोहम्मदन ओरिएंटल कॉलेज में प्राप्त की, लेकिन देश की आजादी की जंग के चलते आगे की पढ़ाई नहीं कर सके। वर्ष 1902 में उनका विवाह महाराजा जींद की छोटी बहन बलवीर कौर से हुआ। इसके बाद वह देश की आजादी के लिए लड़ी जा रही जंग में कूद पड़े।
1906 में कांग्रेस के कोलकाता सम्मेलन में वह शामिल हुए। स्वदेशी पहने एवं उसे अपनाने का नारा सर्वप्रथम राजा महेंद्रप्रताप ने ही दिया था। उनके आह्वान पर कोलकाता में विदेशी वस्तुओं की होली जलाई गई और स्वदेशी स्वाधीनता की शपथ ली गई। 1914 में राजा महेंद्रप्रताप सिंह ने देहरादून में राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन से मुलाकात की और विदेशों में रहकर देश की आजादी की जमीन तैयार करने निश्चय किया।
इसी वर्ष 17 अगस्त को वह अपनी रानी को रोते-बिलखते छोड़कर चल दिए। रानी ने जब पूछा कि अब कब मिलोगे तो उत्तर था कि जब अफगान सेनाएं साथ होंगी। वह बिना पासपोर्ट के ही इटालियन जहाज से लंदन के लिए रवाना हो गए। वहां से स्विट्जरलैंड और इटली होते हुए जर्मनी पहुंचे। वहां पर उनकी मुलाकात कैसर से हुई। यहां अन्य देशभक्तों से मुलाकात के बाद वह दो अक्तूबर, 1915 को अफगानिस्तान पहुंच गए। वहां के बादशाह ने उनका शाही मेहमान के रूप में स्वागत किया।