Nari Shakti Vandan: K Kavitha
– फोटो : Amar Ujala
विस्तार
पीएम नरेंद्र मोदी की सरकार ने संसद के पटल पर नारी शक्ति वंदन विधेयक पेश कर दिया है। इसके कानून बनने के साथ ही लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 15 सालों के लिए 33 फीसदी आरक्षण दिए जाने का रास्ता साफ हो जाएगा। लोकसभा में सरकार के पास बहुमत है, और राज्य सभा में विपक्षी दलों के समर्थन से इसके कानून बनने का रास्ता लगभग साफ हो चुका है। लेकिन यह जानना महत्त्वपूर्ण हो सकता है कि विपक्ष की ओर से किसने सबसे पहले इस विधेयक का समर्थन करने की आवाज उठाई?
दरअसल, दक्षिण भारत के राज्य तेलंगाना में सत्तारूढ़ पार्टी भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) ने विपक्ष की ओर से सबसे पहले महिला आरक्षण का समर्थन करने की बात कही थी। जिस समय संसद का विशेष सत्र बुलाने की सुगबुगाहट शुरू हुई थी, उसी समय से यह अटकलें लगाई जा रही थीं कि सरकार विशेष सत्र में महिला आरक्षण का विधेयक ला सकती है। उस समय बड़े-बड़े दल इसी उधेड़बुन में लगे थे कि उस समय उनका क्या स्टैंड रहना चाहिए।
लेकिन बीआरएस की नेता के. कविता ने इस मामले में आगे बढ़कर नेतृत्व किया और 5 सितंबर 2023 को एक पत्र लिखते हुए उन्होंने विपक्ष के सभी दलों से महिला आरक्षण कानून का समर्थन करने की अपील की। उन्होंने प्रधानमंत्री से भी अपील की कि वे विशेष सत्र में महिला आरक्षण का कानून लाने की पहल करें और यह आश्वासन भी दिया कि उनकी पार्टी इस कानून के लिए सदन में उनकी सरकार का साथ देगी।
संसद में नारी शक्ति वंदन विधेयक पेश करने का स्वागत करते हुए के. कविता ने कहा है कि इससे लोकतंत्र में महिलाओं का अधिकार सुनिश्चित होगा। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी हमेशा महिलाओं का अधिकार और सम्मान उन्हें दिलाने के लिए लड़ाई लड़ती रहेगी। उन्होंने इसे एक एतिहासिक कदम बताते हुए कहा कि इससे समाज में महिलाओं की भूमिका ज्यादा प्रभावी होगी।
केसीआर ने भी लिखा पत्र
पिछले सप्ताह ही 15 सितंबर को तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर नई संसद में महिला आरक्षण लाने की मांग की। इस अवसर पर उन्होंने कहा था कि देश की आजादी के 75 साल के बाद भी संसद-विधानसभाओं में महिलाओं की भागीदारी पर्याप्त रूप से नहीं बढ़ सकी है। नई संसद में एतिहासिक पहल करते हुए सरकार को महिलाओं को उनका अधिकार देने की कोशिश करनी चाहिए। अंततः उनकी बात सही साबित हुई और मोदी सरकार ने सदन में महिला आरक्षण पेश कर दिया। इसी साल के अंत में तेलंगाना में भी विधानसभा के चुनाव होने हैं। बीआरएस को उसके इस स्टैंड का लाभ मिल सकता है।
अन्य दलों ने भी किया समर्थन
बीआरएस के समर्थन के बाद दूसरे दलों को भी इस बात की चिंता हुई कि यदि वे महिला आरक्षण का समर्थन नहीं करते हैं, तो आगामी चुनावों में उन्हें इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है। इसके बाद एक के बाद एक कई विपक्षी दलों ने महिला आरक्षण बिल लाने की बात का समर्थन किया। सबसे बड़े विपक्षी दल कांग्रेस ने भी स्पष्ट कर दिया है कि वह महिला आरक्षण बिल के साथ है।
हालांकि, कुछ स्थानीय पार्टियों ने अभी तक इस बिल पर अपना स्टैंड साफ नहीं किया है। 1996 से लेकर 2010 तक जब-जब यह बिल संसद के पटल पर लाया गया, इन दलों के द्वारा इसका विरोध किया गया। उनका कहना था कि अनुसूचित जाति-जनजाति की महिलाओं के लिए अलग से आरक्षण मिलना चाहिए। नए बिल में एससी-एसटी वर्गों के लिए आरक्षित सीटों में ही महिलाओं के लिए आरक्षण दे दिया गया है।7a अब ऐसे में उनका क्या रुख रहता है, यह देखने वाली बात होगी।