विश्व वृद्धजन दिवस: बेटे ने छोड़ा तो पोता-पोती बने दादा-दादी का सहारा, काशी के मुमुक्ष भवन में हैं कई कहानियां

विश्व वृद्धजन दिवस: बेटे ने छोड़ा तो पोता-पोती बने दादा-दादी का सहारा, काशी के मुमुक्ष भवन में हैं कई कहानियां



बेटे ने छोड़ा तो पोता-पोती बने दादी-दादी का सहारा
– फोटो : सोशल मीडिया

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झुर्रियों वाले चेहरे पर मुस्कान खिलखिला उठी है। बूढ़ी आंखों में फिर जीवन चमकने लगा है। हो भी क्यों ना, जिन अपनों की वजह से वो अकेलापन झेल रहे थे, उन्हें फिर से अपनों का सहारा मिला है। उम्र के एक पड़ाव पर जिन्हें उनकी ही औलादों ने अकेला छोड़ दिया था, उन बुजुर्गों को अपनों ने ही फिर से अपनाया। उनके पोते और पोतियों ने उनके कांपते हाथों को फिर से थामा है। कभी गम तो कभी खुशी से भरे उन वृद्धों की जिंदगानी से हम आपको रूबरू करा रहे हैं जिन्हें पहले तो विपरीत परिस्थितियों में विश्वनाथ कॉरिडोर के मुमुक्षु भवन में रहना पड़ा। उन्हें यहां उनके अपने बेटे छोड़ गए थे लेकिन पोते पोतियों ने उन्हें फिर से अपनाया और खुशियों का आशियाना दिया…।

बेटे ने छोड़ा तो पोती बनी दादी का सहारा

दिल्ली निवासी एक पुत्र अपनी वृद्ध मां को करीब तीन महीने पहले विश्वनाथ कॉरिडोर में बने मुमुक्षु भवन में छोड़ गया। बेटा मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी करता था। लेकिन, जिस मां ने जन्म उसे दिया, वो उन्हें ही संभाल नहीं पाया। उनके सिर पर छत नहीं दे सका। ये बात जब यूएसए में उसकी पोती को पता चली तो वो फौरन देश लौटी। काशी आकर अपने दादी को साथ लेकर सीधे यूएसए चली गई। पोती की शादी हो चुकी है। वो अपने पति के साथ यूएसए में रहती है। पोती जब अपने दादी को लेकर मुमुक्षु भवन पहुंची और उन्हें गले लगाया तो वहां रह रहे सभी वृद्ध भावुक हो उठे थे।

 



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