Nawab Majju Khan Smriti Dwar
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शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा.. कवि ने वतन पर कुर्बान होने वाले आजादी के मतवालों का देश के प्रति जुनून और जज्बे को देखकर यह पंक्तियां लिखी होंगी। मगर शहर के लोगों ने एक शहीद का नाम ही कूड़े के ढेर पर डाल दिया। हम बात कर रहे हैं महानगर के आजादी के पहरुए नवाब मज्जू अली की।
शहीद नवाब मज्जू खां की मजार के निकट उनके नाम के लगाए गए स्मृति द्वार का बोर्ड पिछले कई दिनों से नाले के पास पड़ा है। शिकायत के बाद भी इसे न तो हटाया गया न ही दोबारा लगाया गया। मोहल्ला गलशहीद चौराहा के निकट स्थित नवाब मज्जू खां की मजार के पास उनके नाम का स्मृति द्वार बनाया गया है।
मोहर्रम के दौरान ताजियों के जुलूस को मार्ग से निकलने के लिए हर साल नगर निगम प्रशासन गेट के ऊपर लगे बोर्ड को उतार लेता है और उसे दीवार के पास रख देता था। मोहर्रम के बाद उसे यथा स्थान लगा देता था। लेकिन इस बार ऐसा नहीं किया गया। बोर्ड को उतारने के बाद पास के एक गंदे नाले के पास उसे रख दिया गया।
नवाब मज्जू खां कमेटी के अध्यक्ष वकी को सोमवार कुछ लोगों ने इसकी जानकारी दी। जिसके बाद वह मौके पर पहुंचे। उन्होंने बताया कि उन्होंने मौके से ही नगर आयुक्त संजय चौहान को फोन किया, लेकिन उनका फोन नहीं उठा। जिसके बाद व्हाट्सएप पर इसकी सूचना नगर आयुक्त और महापौर विनोद अग्रवाल को दे दी है।
इसके बाद भी शाम तक गेट ठीक नहीं किया गया। जिसके विरोध में उनकी अगुवाई में कार्यकर्ताओं ने विरोध प्रदर्शन किया। उन्होंने बताया कि कुछ साथियों की मदद से नाले से बोर्ड को हटाने की कोशिश भी की गई, लेकिन काफी भारी होने और कई दिन से पानी में जमीन पर पड़ा होने के कारण जंग खाया बोर्ड टूटने लगा।
इससे उसे मजबूरी में वहां छोड़ना पड़ा। वकी रशीद ने नगर निगम प्रशासन से बोर्ड को ससम्मान उठवा कर यथा स्थान रखवाने की मांग की है। इस मौके पर मोहिद फरगानी, जकी राइनी, फहीम बेग, एहतिशाम आदि मौजूद रहे।
1857 की क्रांति में नवाब मज्जू खां ने अग्रेजों के दांत किए खट्टे
1857 की क्रांति में मुरादाबाद के शहीदे आजम वीर शहीद नवाब मज्जू खां का नाम भी इतिहास के पन्नों में दर्ज है। इस लड़ाई में न सिर्फ उन्होंने हिस्सा लेकर अग्रेजों के दांत खट्टे किए बल्कि उनकी फ़ौज को नैनीताल तक खदेड़ कर आए थे। शहर के दीवान का बाजार निवासी मजीदउद्दीन उर्फ नवाब मज्जू खां मुगलों के आखिरी शासक बहादुर शाह जफर के सिपहसालार भी थे।
इतिहासकार डॉ. अजय अनुपम के अनुसार अंग्रेजी फौज को उन्होंने कई बार शिकस्त दी, लेकिन 1858 में रामपुर के नवाब ने अग्रेजों से मिलकर मुरादाबाद पर हमला बोल दिया था। जिसमें नवाब मज्जू खां ने अपनी फौज के साथ डटकर मुकाबला किया। लेकिन धोखे से उन्हें गोली मार कर शहीद कर दिया गया था।
उनकी मौत के बाद अंग्रेज पश्चिम इलाके में अपना खौफ बनाए रखने के लिए उनके मृत शरीर को हाथी के पैर से कुचलवाया गया। फिर हाथी की पूंछ से बांध कर घसीटा गया। इसके बाद भी दिल नहीं भरा तो उन्हें चूने की भट्टी में डाल कर शव के चिथड़े उड़ा दिए।
इसके बाद अंग्रेजों ने उनकी फौज समेत हजारों आम लोगों को गलशहीद स्थित इमली के पेड़ पर लटका कर मौत की नींद सुला दिया। गलशहीद के कब्रिस्तान में गोरों की बर्बरता की गवाही का ये इमली का पेड़ आज भी मौजूद है।