सनातन का अनूठा संगम: संसार में सिर्फ यहां भगवान बुद्ध के साथ पूजे जाते हैं त्रिदेव, जानिए कहां है ये मंदिर

सनातन का अनूठा संगम: संसार में सिर्फ यहां भगवान बुद्ध के साथ पूजे जाते हैं त्रिदेव, जानिए कहां है ये मंदिर


कुशीनगर भगवान बुद्ध का महापरिनिर्वाण स्थल है और बौद्ध समुदाय के लोगों की आस्था का अहम स्थल है। यह स्थल सिर्फ बौद्ध संस्कृति व सभ्यता के लिए ही नहीं, बल्कि सनातन संस्कृति की पहचान के लिए भी ख्याति प्राप्त है। यहां सिर्फ बौद्ध मंदिर ही नहीं बल्कि शिव व श्रीराम जानकी मंदिर भी आकर्षण का केंद्र हैं, लेकिन इनमें थाई मंदिर सनातन संस्कृति व सभ्यता को समेट हुए है।



वहीं थाई वास्तुकला व नक्काशीदारी का अद्भुत व विलक्षण नमूना भी है। यहां तथागत बुद्ध के साथ त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु व महेश) पूजे जाते हैं। अनीश्वरवादी बुद्ध के साथ सनातन धर्म के त्रिदेव की पूजा कहीं और नहीं होती है। यहां दो संस्कृतियों के मेल का अनूठा संगम पिछले कई सालों से झलकता है। बौद्ध और सनातन संस्कृति के मिलाप के इस अनूठे संगम में वाट थाई मंदिर परिसर में तथागत भगवान बुद्ध के साथ ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश की मूर्तियां स्थापित हैं। इसके अलावा मंदिर में शिव-पार्वती, भगवान गणेश, कार्तिकेय व त्रिशूल के अलावा हाथ में चक्र लिए भगवान विष्णु, लक्ष्मी, ब्रह्म व मां सरस्वती के भित्ति चित्र आकर्षण के केंद्र हैं। वहीं गरुड़ पक्षी को भी मंदिर में प्रमुख स्थान दिया गया है।


1994 में आरंभ हुआ निर्माण कार्य

1994 में वाट थाई कुशीनारा छर्लमराज मंदिर का निर्माण बुद्धिस्टों के दिन से आरंभ हुआ था। यह बौद्ध विहार वाट थाई बोधगया और रॉयल थाई दूतावास ,नई दिल्ली के संरक्षण में है। 2000 में बुद्ध मंदिर यानी उपोस्थ बनकर तैयार हो गया। जिसमें बौद्ध अनुयायियों ने पूजा अर्चना शुरू कर दी।


थाईलैंड की प्रिंसेज महाचक्री सिरिंधोर्न ने रखी थी चैत्य की आधारशिला

थाईलैंड की प्रिंसेज महाचक्री सिरिंधोर्न ने भगवान बुद्ध की अस्थियों को सुरक्षित रखने के लिए वर्ष 2001 में कुशीनगर पहुंचकर आधारशिला रखी थी। फिर पांच वर्ष बाद जब चैत्य का निर्माण कार्य पूरा हो गया तो 2005 में राजपरिवार के प्रतिनिधि के तौर पर लोकार्पण किया था। उन्हें 2004 में इंदिर गांधी शांति पुरस्कार से पुरस्कृत किया जा चुका है।


हर रोज होती है विशेष-पूजा अर्चना

मंदिर में भगवान बुद्ध के साथ त्रिदेव की प्रतिदिन विशेष-पूर्जा अर्चना की जाती है। यह परंपरा 20 साल से चली आ रही है। बौद्ध अनुयायी व भिक्षु दीपक, अगरबत्ती व कैडिल जलाकर विश्व शांति की कामना व कल्याण के लिए प्रार्थना करते हैं। पूजा के दौरान ‘धम्मं शरणं गच्छामि, संघं शरणं गच्छामि’ व ‘बुद्धं शरणं गच्छामि’ गुंजायमान होता है। यहां नंदी, गणेश समेत अन्य देवों की भी पूजा होती है।




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