चंद्रयान-3 लॉन्च।
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भारत का चंद्रयान अपनी पिछली गलतियों से सीखकर आगे की राह पर निकल पड़ा है। कई बदलाव और सुधार के बाद इसकी सफलता को लेकर वैज्ञानिक इस बार अधिक आश्वस्त हैं। इस उड़ान पर पूरी दुनिया की नजर है। कामयाबी की एक नई इबारत लिखने की ओर यह पहला कदम है, असली परीक्षा शेष है। चंद्रमा पर कठिन हालात से अभी गुजरना बाकी है।
चांद की सतह पर जाकर अध्ययन करेंगे
चंद्रयान-3 कई मायनों में खास है। यह 7 पेलोड के साथ लॉन्च किया गया है। इनमें से 4 पेलोड लैंडर विक्रम के साथ जुड़े हैं। 2 रोवर प्रज्ञान के साथ और 1 प्रॉपल्शन मॉड्यूल से जु़ड़ा है। लैंडर और रोवर से जुड़े 6 पेलोड चांद की सतह पर जाकर अध्ययन करेंगे। वहीं, प्रॉपल्शन मॉड्यूल के साथ भेजा गया पेलोड चंद्रमा की कक्षा से पृथ्वी का अध्ययन करेगा। सब कुछ योजना के मुताबिक हुआ, तो 3.84 लाख किमी की यात्रा के बाद 23 अगस्त को शाम करीब पौने छह बजे चंद्रयान-3 का विक्रम लैंडर चांद की सतह को छू लेगा। 615 करोड़ रुपये की लागत के इस अभियान की कामयाबी के साथ ही भारत चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग मे सक्षम चौथा देश बन जाएगा। वर्तमान में अमेरिका, रूस और चीन यह उपलब्धि हासिल कर चुके हैं।
चंद्रयान-2 के विपरीत इस बार लैंडिंग की निगरानी इसरो खुद कर रहा है। चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर की लैंडिंग को नासा के मैड्रिड स्टेशन से ट्रैक किया गया था। लेकिन, इस बार लॉन्चिंग से लेकर लैंडिंग तक की निगरानी बंगलूरू स्थित इसरो टेलीमेट्री ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क स्टेशन (आईसट्रैक) के जरिये की जा रही है। हालांकि, इस बीच रॉकेट और चंद्रयान के अलग होने के चरण को ब्रुनेई व बियाक से ट्रैक किया गया।
भारत का सबसे शक्तिशाली रॉकेट है एलवीएम-3
43.5 मीटर लंबे और करीब 640 टन वजनी एलवीएम-3 रॉकेट को इसरो का बाहुबली (फैटबॉय) कहा जाता है। चंद्रयान-3 को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में छोड़ने के साथ ही यह सभी अभियानों में सफल साबित हुआ है। यह भारत का सबसे ताकतवर रॉकेट है। यह करीब 10 टन के पेलोड पृथ्वी की निचली कक्षाओं (200 किमी की ऊंचाई) तक ले जा सकता है और करीब 4 टन के पेलोड उच्च कक्षा या जियो ट्रांसफर ऑर्बिट तक ले जाने में सक्षम है। यह थ्री स्टेज रॉकेट है। इसमें दो ठोस ईंधन बूस्टर और एक तरल ईंधन बूस्टर लगा है।
खूबियों के सात चांद…पेलोड
- रेडियो एनाटॉमी ऑफ मून बाउंड हायपरसेंसटिव आयनोस्फियर एंड एटामोस्फियर (रंभा) : चांद की सतह के निकट प्लाज्मा के घनत्व व समय के साथ परिवर्तन को मापेगा।
- चंद्र सरफेस थर्मो फिजिकल एक्सपेरिमेंट (चास्टे) : चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्रों के निकट वहां की सतह के तापीय गुणों का अध्ययन करेगा।
- इंस्ट्रूमेंट फॉर लूनर सीस्मिक एक्टिविटी (आईएलएसए) : चंद्रमा के क्रस्ट व मैंटल की संरचना को चित्रित करेगा।
- लेजर रिट्रोरिफ्लेक्टर ऐरे (एलआरए) : चंद्रमा की गतिकीय प्रणाली समझाएगा।
- लेजर इंड्यूश्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप (एलआईबीएस) : चांद की सतह पर मौजूद तत्वों का गुणात्मक और मात्रात्मक विश्लेषण किया जाएगा।
- अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (एपीएक्सएस) : लैंडिंग साइट के आसपास चंद्रमा की धूल और चट्टानों की मौलिक संरचना का पता लगाएगा।
- स्पेक्ट्रो पोलरिमीट्री ऑफ हैबिटेबल प्लेनेट अर्थ (शेप) : चंद्रमा की कक्षा में रहकर परावर्तित प्रकाश से पृथ्वी जैसे रहने योग्य ग्रहों की खोज में मदद करेगा।
कामयाबी में अहम साबित होंगे 10 चरण
उड़ान के ठीक 16:15 मिनट बाद रॉकेट एमएलवी-3 179 किमी की ऊंचाई पर चंद्रयान-3 अंतरिक्ष में अलग हो गया। चंद्रयान पृथ्वी की परिक्रमा शुरू कर चुका है। इस दौरान यह 170 किमी की पेरिजी (पृथ्वी की कक्षा में निकटतम स्थिति) और 36,500 किमी की अपोजी (पृथ्वी की कक्षा में दूरस्थ स्थिति) के साथ अंडाकार चक्र में 5-5 बार पृथ्वी की परिक्रमा करेगा। गुरुत्वाकर्षण की मदद से चंद्रमा की कक्षा तक पहुंचने के लिए गति हासिल करने को पृथ्वी के चारों ओर 5-6 चक्कर लगाएगा। चंद्र स्थानांतरण (लूनर ट्रांसफर) शुरू होगा। इस चरण में चंद्रयान-3 पृथ्वी भूस्थैतिक कक्षा से बाहर निकलकर चंद्रमा की ओर बढ़ेगा।
- इसरो के वैज्ञानिक चंद्रयान-3 को चंद्रमा की कक्षा में स्थापित करेंगे।
- चंद्रयान धीरे-धीरे चंद्रमा की कक्षा में नीचे उतरेगा।
- प्रॉपल्शन मॉड्यूल और लैंडर विक्रम एक-दूसरे से अलग हो जाएंगे।
- लैंडर की गति को कम करने के लिए डी-बूस्ट किया जाएगा।
- लैंडर की सभी प्रणालियों की जांच होगी।
- लैंडर को चंद्रमा की 100 किमी की कक्षा में लाया जाएगा।
- रोवर और लैंडर से जुड़े पेलोड के सामान्य संचालन के साथ यह पूरा होगा।
- प्रॉपल्शन मॉड्यूल को वापस चंद्रमा के 100 किमी की कक्षा में लाया जाएगा।