हिंदी सिनेमा के मौजूदा दौर के संगीत में तमाम प्रयोगों के बावजूद ग्रामीण और कस्बाई भारत में आज भी बीती सदी के आखिरी दो दशकों के गाने सबसे ज्यादा बजते हैं। और, इन गानों में जो महिला स्वर अधिकतर सुनाई देता है, वह हैं अनुराधा पौडवाल। मौजूदा दौर की वह इकलौती गायिका हैं जिन्होंने मुकेश, मोहम्मद रफी और किशोर कुमार के साथ गाया है। गायक कुमार शानू को फिल्मों में ब्रेक भी अनुराधा पौडवाल ने ही दिलाया था। गायकी की गोल्डन जुबली मना रहीं अनुराधा पौडवाल से ‘अमर उजाला’ के सलाहकार संपादक पंकज शुक्ल की एक एक्सक्लूसिव मुलाकात।
साल 1973 में आपका पहला स्वर जो दर्शकों ने सुना फिल्म ‘अभिमान’ में वह थी एक एक शिव स्तुति और अब आप गायन के 50वें साल में हैं। पहला ब्रेक कैसे मिला याद है आपको?
ये ईश्वर का आशीर्वाद है। ऐसा कभी मैंने सोचा नहीं था कि मैं फिल्म इंडस्ट्री में आऊंगी। मैं पचास साल पहले की बात कर रही हूं जब फिल्म इंडस्ट्री को एक अलग नजरिए से देखा जाता था। मेरे पिताजी बहुत पढ़े लिखे थे लेकिन वह कहते थे कि अच्छे घर की लड़कियां फिल्मों में नहीं जाती हैं। फिर मेरी शादी हुई। मेरे पति अरुणजी (पौडवाल) संगीतकार एस डी बर्मन के सहायक। उन्होंने यह शिव स्तुति बैक ग्राउंड म्यूजिक के लिए घर पर ही मेरी आवाज में सिर्फ संदर्भ के लिए रिकॉर्ड कर ली थी। बर्मन दा को पता नहीं था कि मैं गाती हूं। उन्होंने श्लोक सुना तो उनका छूटते ही सवाल था, गाया किसने है? तुरंत फाइनल रिकॉर्डिंग का बुलावा आ गया। एक घंटे के अंदर मैं रसोई से निकलकर स्टूडियो के अंदर माइक्रोफोन के सामने खड़ी थी।
और, ऐसा भी किस्सा है कि आपने एक दिन में 10 भजन रिकॉर्ड कर दिए थे?
नवरात्रि के तीन दिन पहले मैं और अरुणजी दिल्ली गए हुए थे। गुलशनजी ने मुझसे पूछा कि मेरे पास 10 गानों का साउंड ट्रैक तैयार है। ये माता की भेंटें अगर मैं आपको दूं तो क्या आप एक दिन में गा देंगी। मैंने कहा कोशिश करती हूं। तो इधर एक एक गाना रिकॉर्ड हो रहा था। साथ साथ में उसका लूप बनकर मिक्सिंग हो रही थी। कैसेट के कवर छप रहे थे। नोएडा में शाम तक मैं ये भजन गाती रही और उनका साथ ही साथ पोस्ट प्रोडक्शन चलता रहा। उनके पास ऐसी मशीन थी जो एक बार में एक लाख कैसेट बनाती थे। छह बजे मैंने रिकॉर्डिंग खत्म की और सात बजे गुलशनजी ने मेरे हाथ में कैसेट थमा दी। मुझे ऐसा लगा कि जैसे किसी साधु ने झोले से भभूत निकालकर मेरे हाथ पर रख दी हो। सारे कैसेट हाथ के हाथ वहीं फैक्ट्री गेट पर बिक गए।
और, ‘लाल दुपट्टा मलमल का’ और ‘फिर लहराया लाल दुपट्टा’ का भी अपना अलग ही इतिहास है?
इसकी भी एक कहानी है। गुलशनजी की माता का निधन हो गया था। वह ‘ममता का मंदिर’ नामक फिल्म बनाना चाह रहे थे। उन्होंने कुछ बड़े संगीतकारों से बात की। एक संगीतकार ने कहा कि कुछ गाने तैयार हैं, आप स्टूडियो आकर सुन लीजिए। उनको ये बात अखर गई कि पैसा मैं लगा रहा हूं और बात ये ऐसे कर रहे हैं। डबल मीनिग गानों का दौर था और जो पहला गाना गुलशनजी को सुनाया गया वह था, ‘रात भर पंखा देती रही तेरी मां, मेरे पैर दबाती रही तेरी मां, मेरा सिर दबाती रही तेरी मां’। गुलशनजी को तो जैसे काटो तो खून नहीं। तब हमने फैसला किया कि गानों में लय और शब्दों के चयन बदलने की जरूरत है।
फिर…?
मैंने एक हफ्ते का समय मांगा और संगीतकार आनंद मिलिंद से संपर्क किया। उनको मैने बताया कि ऐसे ऐसे गाने हैं। उन्होंने तमाम सवाल किए। मैंने कहा कि न तो फिल्म तय है, न हीरो हीरोइन, बस गाने तय हैं। फिर मजरूह सुल्तानपुरी साहब आए। उन्होंने पहला गाना लिखा, ‘क्या करते थे साजना तुम हमसे दूर रहके’, एक और गाना बना और उसी दिन गाने रिकॉर्ड करके अगले दिन सुबह इसे गुलशनजी ने विविध भारती के चित्रलोक कार्यक्रम में चलवा दिया। एक हफ्ते के अंदर गाना सुपरहिट। अगले 15 दिनों में हमने 10 गाने बना लिए। कैसेट रिलीज हुई तो हाथों हाथ बिक गई। फिर ‘जीना तेरी गली’ कैसेट तैयार हुआ। उसके बाद ‘फिर लहराया लाल दुपट्टा’ का।