सीमा, रेखा और बिजेन्द्र
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पितृ पक्ष शुरू हो गए हैं। पूर्वजों के नाम से तर्पण-श्राद्ध और दान पुण्य का सिलसिला चल पड़ा है। इस बीच कुछ बुजुर्ग ऐसे भी हैं जिन्हें जीते-जी अपनी संतान से सम्मान और सुख प्राप्त नहीं हो रहा। परिवार होने के बावजूद वृद्धाश्रम में रहने को मजबूर हैं। हर माता-पिता का सपना होता है कि उसकी पहचान अपने बच्चों के नाम से हो। मगर, अपनों से दूर रामलाल वृद्धाश्रम में जिंदगी बिता रहे कई बुजुर्गों की आंखों के आंसू उनकी दर्दभरी कहानी बयान कर रहे हैं।
ऐसी भी संतानें हैं जो वृद्धाश्रम के रजिस्ट्रेशन फार्म में खुद को पड़ोसी लिखकर अपने माता-पिता को छोड़कर चली गईं। किसी ने फॉर्म में लिख दिया कि अब इनके परिवार में कोई नहीं है तो किसी ने हदें पार कर जीते-जी माता-पिता का पिंड दान करने की बात तक लिख डाली। पितृ पक्ष में एक तरफ लोग अपने पूर्वजों का तर्पण कर रहे हैं तो वहीं ऐसे भी लोग हैं जो आश्रम में रह रहे अपने बुजुर्गों से मिलने तक नहीं आते।