मैं ठीक हूं मां। हॉस्टल में हूं। मेस में नाश्ता किया है। अब कमरे में जा रही हूं। तबीयत कुछ ठीक नहीं है। आज मैं हास्टल में ही रहूंगी। थ्योरी और प्रैक्टिकल की क्लास अटेंड नहीं करूंगी। भाई और छोटी बहन कैसी है। कुछ इस तरह से एमबीबीएस छात्रा ने घटना से चार घंटे पहले मां से मोबाइल पर तकरीबन पांच मिनट बात की थी।
आखिरी बार उससे बात होने के बाद माता-पिता को यह अंदाजा नहीं था कि उनकी बेटी इतना बड़ा आत्मघाती कदम उठा लेगी। गुरुवार को सुबह पोस्टमार्टम हाउस पहुंचे पिता रेवन्यू इंस्पेक्टर प्रभुराम भार्गव ने बताया कि घटना से चार घंटे पहले आठ बजे सुबह बेटी ऊषा भार्गव का कॉल उसकी मां सरोज के मोबाइल पर आया था।
मेरी बेटी हौसले वाली…आत्मघाती कदम से हूं सदमे में
पिता प्रभुराम भार्गव ने बताया कि मेरी बेटी हौसले वाली थी। दिल्ली से अकेले संपर्क क्रांति ट्रेन से सफर कर बांदा आती-जाती थी। वह बहादुर थी। उसके आत्मघाती कदम से सदमे में हूं। जुलाई में वह घर आई थी। कुछ दिन रुकने के बाद उसे छोड़ने दिल्ली तक आए थे। संपर्क क्रांति एक्सप्रेस ट्रेन में उसे बैठाया था।
पिता बोले- जुलाई माह में आई थी घर
मेडिकल कॉलेज से फोन किया था कि वह सकुशल आ गई है। मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर और वार्डन बता रहीं हैं कि 15 अगस्त को वह मेडिकल कॉलेज में स्थित मंदिर में हुए सत्संग में शामिल हुई थी। उन्हें अभी भी यकीन नहीं हो रहा है उनकी बेटी ने खुदकुशी की है। एक अगस्त को उन्होंने उसके खाते में सात हजार रुपये भेजे थे।
तीन साल में कभी किसी तरह की परेशानी नहीं बताई
इसके बाद छह अगस्त को खाते में सात हजार रुपये और भेजे थे। घर में और कॉलेज में कोई समस्या नहीं थी। वह खुद नहीं समझ पा रहे हैं कि उसने ऐसा कदम क्यों उठाया। पिता प्रभुराम भार्गव, मां सरोज व छात्रा के फूफा बांदा आए थे। पोस्टमार्टम हाउस में सिर्फ पिता मौजूद रहे। पूछने पर पिता ने बताया कि मां को उन्होंने वापस भेज दिया है।
छात्राओं की आंखों में आए आंसू
एमबीबीएस छात्रा ऊषा भार्गव के खुदकुशी प्रकरण से सहपाठी छात्रा रंजना, निकिता और आस्था खासी व्यथित हैं। तीनों छात्राओं ने बुधवार से खाना भी नहीं खाया। रह-रहकर ऊषा को यादकर आंसू बहाने लगतीं हैं। उनकी हालत देख अन्य सीनियर और सहपाठी छात्राएं उन्हें संभालने में लगी हैं।
एक साथ आया जाया करते थे हम
ऊषा के पिता प्रभुराम भार्गव के गले से लगकर वह रोने लगीं। पिता के आंसू छलक पड़े तो छात्राओं ने उन्हें संभाला। छात्रा रंजना ने बताया कि वह भी राजस्थान की है। ऊषा और उसका चयन एक साथ हुआ था। कभी-कभी वह घर से ट्रेन द्वारा एक साथ बांदा मेडिकल कॉलेज आया-जाया करतीं थीं।