Delhi: Abhishek Manu Singhvi
– फोटो : Amar Ujala/Sonu Kumar
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राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली क्षेत्र सरकार संशोधन विधेयक-2023 पर चर्चा के दौरान कई खुलासे हुए। कांग्रेस पार्टी के सांसद अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, भाजपा के पूर्व पीएम दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी और तत्कालीन गृह मंत्री एलके आडवाणी, दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने के पक्ष में थे। अब मोदी सरकार, इसका विरोध कर रही है। दूसरी तरफ प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू इसके खिलाफ थे। सरदार पटेल भी इसके समर्थन में नहीं थे। डॉ. बीआर अंबेडकर का कहना था कि भारत की राजधानी पर दिल्ली राज्य का अधिकार नहीं हो सकता है। दिल्ली को लेकर केंद्र सरकार ही कानून पास करेगी। इसमें राज्य का कोई दखल नहीं होगा। पीएम लाल बहादुर शास्त्री ने भी दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का समर्थन नहीं किया। प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव भी दिल्ली के संवैधानिक ढांचे के साथ छेड़छाड़ के पक्ष में नहीं थे। आप सांसद संजय सिंह के मुताबिक, भाजपा नेता और दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा ने विधानसभा में बयान दिया था, दिल्ली का मुख्यमंत्री होने से बेहतर है, खेत में फावड़ा चलाना। दिल्ली के पूर्व सीएम मदन लाल भी दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाना चाहते थे। अब मोदी सरकार, इस प्रस्ताव का विरोध कर रही है, जबकि वाजपेयी और आडवाणी चाहते थे कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा हासिल हो।
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दिल्ली में कानून बनाने का अधिकार, केंद्र के पास
दिल्ली में चार मुख्यमंत्रियों के साथ काम कर चुके पूर्व विधानसभा सचिव एवं संविधान विशेषज्ञ एसके शर्मा के अनुसार, डॉ. बीआर अंबेडकर ने बाकायदा संविधान में ही ऐसी व्यवस्था कर दी थी कि भारत की राजधानी में कोई भी कानून भारत की संसद ही बनाएगी। दिल्ली को लेकर कानून बनाने का अधिकार, केंद्र के पास है। दिल्ली में जितने कानून बने हैं, वे सब कानून संसद ने बनाए हैं। 1947 में जब स्वतंत्र भारत के लिए संविधान का निर्माण हो रहा था, तो उस वक्त दिल्ली को भी पूर्ण राज्य का दर्जा देने की बात सामने आई थी। संविधान सभा ने इस मामले में पट्टाभि सीतारमैया की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की थी। कमेटी की रिपोर्ट में दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने पर सहमति बनी। यह रिपोर्ट जब डॉ. राजेंद्र प्रसाद के जरिए डॉ. अंबेडकर तक पहुंची, तो उन्होंने इसे खारिज कर दिया। डॉ. अंबेडकर का कहना था कि भारत की राजधानी पर दिल्ली राज्य का अधिकार नहीं हो सकता है। दिल्ली को लेकर केंद्र सरकार ही कानून पास करेगी। इसमें राज्य का कोई दखल नहीं होगा। 1987 में दिल्ली को पूर्ण राज्य बनाने के लिए बालाकृष्णन कमेटी बनी। कमेटी ने कहा, कानून व्यवस्था में कोई बदलाव दिल्ली के हित में नहीं है।
भाजपा के घोषणा पत्र में पूर्ण राज्य के दर्जे की बात
जब अटल बिहारी वाजपेयी, प्रधानमंत्री थे तो उनकी सरकार में लाल कृष्ण आडवाणी, दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने के लिए बिल लाए थे। आप के राज्यसभा सांसद संजय सिंह के मुताबिक, दिल्ली में 1993 से 1998 तक भाजपा की सरकार रही थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा ने विधानसभा में बयान दिया था, दिल्ली का मुख्यमंत्री होने से बेहतर है, खेत में फावड़ा चलाना। ऐसा नहीं है कि वे अकेले ऐसे सीएम थे, जिन्होंने इस तरह की मांग रखी। दिल्ली के पूर्व सीएम मदनलाल खुराना भी इस प्रस्ताव के पक्ष में थे। साल 1998, 2005, 2008 और 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में पूर्ण राज्य का अधिकार दिलाने का वादा किया था। उसके बाद भाजपा को दिल्ली की सत्ता में आने का मौका नहीं मिला। अब केंद्र में भाजपा सरकार है। वह दिल्ली सरकार को लेकर अध्यादेश ले आई। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार की शक्तियां बहाल कीं, तो मोदी सरकार उसके खिलाफ अध्यादेश ले आई।
वाजपेयी-आडवाणी की मेहनत मिट्टी में मिला दी
आप सांसद राघव चड्ढा ने कहा, 1989 के भाजपा के घोषणा पत्र में पूर्ण राज्य का दर्जा देने का जिक्र किया गया था। 1999 में भी वही हुआ। लाल कृष्ण आडवाणी, संसद में दिल्ली को अधिकार देने के लिए बिल लाए थे। आज मोदी सरकार ने यह अध्यादेश लाकर अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी की दिल्ली को पूर्ण राज्य बनाने की 40 साल की मेहनत मिट्टी में मिला दी। चड्ढा ने कहा, जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं मिलना चाहिए। मैं केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से कहना चाहूंगा कि आप नेहरूवादी मत बनिए, आडवाणीवादी और वाजपेयीवादी बनिए। आपके पास दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का एतिहासिक मौका है, ये काम करिए। राघव ने कहा, भाजपा, 25 साल से दिल्ली में चुनाव हार रही है। अरविंद केजरीवाल के रहते, ये लोग (भाजपा) अगले 25 साल भी नहीं जीत पाएंगे। इसी वजह से भाजपा, दिल्ली की चुनी हुई सरकार को खत्म करने के लिए यह बिल लाई है। भाजपा, सारी शक्तियां, उपराज्यपाल को दे रही है। उन्होंने कौन सा चुनाव लड़ा है। क्या जनता ने उन्हें चुनकर भेजा है।