मुरादाबाद की ईदगाह हिंसा की गवाह
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मुरादाबाद में 13 अगस्त 1980 को शहर में हुए दंगे की साजिश एक माह पहले रची जा रही थी। इंदिरा चौक में बरात में ढोल बजाने के विवाद में पथराव हुआ था और पांच घंटे से ज्यादा बवाल चला था। जिसमें एक व्यक्ति की जान चली गई थी। इस विवाद की चिंगारी लगातार बढ़ती जा रही थी।
लल्ला बाबू द्रविड ने बताया कि उन दिनों मैं इंद्रा चौक में ही रहता था। 24 जुलाई को लज्जा नाम की युवती की बरात कुंदरकी के हाथीपुर गांव से आई थी। शाम करीब साढ़े चार बजे ढोल बजाया जा रहा था। इसी दौरान कुछ लोग आ गए और उन्होंने ढोल बंद करने के लिए कहा।
कुछ लोगों ने इसका विरोध किया। इसी बात को लेकर कहासुनी के बाद विवाद हो गया था। अचानक भीड़ आ गई और इंद्रा चौक के पास वाल्मीकि कॉलोनी को घेर लिया था। घरों में लूटपाट की गई थी। इस घटना में कई लोग घायल हो गए थे। जिसमें एक व्यक्ति की जान भी चली गई थी।
पांच घंटे बाद पुलिस ने मामले को शांत कराया था। इस मामले में कई लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया था। पुलिस आरोपियों की गिरफ्तारी को दबाव बना रही थी। इससे क्षेत्र में तनाव बढ़ता जा रहा था। वाल्मीकि समाज और पंजाबी समाज को फंसाने के लिए दंगे की साजिश रची गई थी।
लेकिन सिविल लाइंस में नहीं हुई थी कोई घटना
ईद गाह से शुरू हुई दंगे की आग पूरे शहर में फैल गई थी। गलशहीद, मुगलपुरा, कटघर, कोतवाली क्षेत्र में घरों दुकानों में आग लगा दी गई थी। दंगाइयों ने घरों में घुसकर लोगों पर हमला किया था। पूरा शहर जल गया था लेकिन सिविल लाइंस क्षेत्र में एक भी घटना नहीं हुई थी।
पुलिस ने लाशों को ट्रक में भरकर पुलिस लाइन भेजा
दंगे में घायलों हुए लोगों को उपचार के लिए डॉक्टर नहीं मिले थे। अधिक खून बह जाने के कारण घायलों ने दम तोड़ दिया था। पुलिस ने लाशों को ट्रक में भरकर पुलिस लाइन भेज दिया था। इसी दौरान सेना के एक अधिकारी ने देखा कि लाशों के बीच पड़े एक व्यक्ति की सांसें चल रही हैं। इसके बाद सेना ने घायल को अस्पताल भिजवाया कर उसकी जांच बचाई थी।