भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) विधेयक में औपनिवेशिक युग के सीआरपीसी को बदलने का प्रयास किया गया है। इसमें आपराधिक न्याय करने की व्यवस्था में महत्वपूर्ण बदलाव का प्रस्ताव है, जिसमें भारत और विदेशों में घोषित अपराधियों की संपत्तियों की कुर्की और कुछ मामलों में व्यक्तियों की गिरफ्तारी के लिए हथकड़ी लगाने की अनुमति देने का प्रावधान शामिल है।
भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) विधेयक और भारतीय साक्ष्य (बीएस) विधेयक भी शुक्रवार को लोकसभा में पेश किए गए और वे भारतीय दंड संहिता, 1860 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की जगह लेंगे। प्रस्तावित तीनों विधेयकों को आगे की जांच के लिए संसदीय पैनल के पास भेजा गया है।
बताया गया है कि आपराधिक प्रक्रियाओं पर विधेयक केंद्र की डिजिटल इंडिया पहल के अनुरूप है और इसका उद्देश्य वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से ट्रायल की अनुमति देने वाली प्रौद्योगिकी के अधिक से अधिक उपयोग को बढ़ावा देना है। विधेयक में यह भी प्रस्ताव है कि यौन अपराध और तस्करी जैसे मामलों में किसी सरकारी अधिकारी पर मुकदमा चलाने के लिए किसी मंजूरी की आवश्यकता नहीं होगी।
इसमें कहा गया है, किसी लोक सेवक के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी देने या अस्वीकार करने का निर्णय सरकार को अनुरोध प्राप्त होने के 120 दिनों के भीतर करना होगा। यदि सरकार ऐसा करने में विफल रहती है, तो मंजूरी प्रदान की गई मानी जाएगी। बीएनएसएस में भारत के साथ शांति स्थापित करने वाले किसी विदेशी राष्ट्र की सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने के साथ-साथ ऐसे विदेशी देश के क्षेत्र में लूटपाट करने पर सात साल तक की जेल की सजा वाला अपराध बनाने के नए प्रावधान हैं।
बीएनएसएस विधेयक की धारा 151 कहती है, जो कोई भी भारत सरकार के साथ शांति स्थापित करने वाले किसी विदेशी राष्ट्र की सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ता है या ऐसा युद्ध छेड़ने का प्रयास करता है, या ऐसे युद्ध छेड़ने के लिए उकसाने पर आजीवन कारावास से दंडित किया जाएगा या जुर्माने के साथ या बिना जुर्माने के सजा की अवधि को सात साल तक बढ़ाया जा सकता है।
मुकदमें पर सुनवाई खत्म होने के बाद 30 दिनों के भीतन फैसला सुनाना होगा
विदेश में किसी घोषित अपराधी की संपत्ति की कुर्की के बारे में यह प्रावधान है कि पुलिस अधीक्षक या पुलिस आयुक्त अदालत में एक आवेदन करेंगे और उसके बाद वह अदालत पहचान के लिए अनुबंधित देश की अदालत या प्राधिकारी से सहायता का अनुरोध करने के लिए कदम उठाएगी। नए कानून के तहत 90 दिनों के भीतर आरोपपत्र दाखिल करना होगा और अदालत स्थिति को देखते हुए एजेंसी की जांच के लिए 90 दिनों का समय और बढ़ा सकती है। निचली अदालत में मुकदमा खत्म होने के 30 दिनों के भीतर फैसला सुनाया जाना होगा।
इन मामलों में किया जा सकता है हथकड़ी का उपयोग
हथकड़ी के उपयोग पर, इसमें कहा गया है कि पुलिस अधिकारी अपराध की प्रकृति और गंभीरता को ध्यान में रखते हुए, किसी ऐसे व्यक्ति की गिरफ्तारी करते समय हथकड़ी का उपयोग कर सकते हैं जो आदतन, बार-बार अपराधी है जो हिरासत से भाग गया है, जिसने संगठित अपराध का अपराध किया है, आतंकवादी कृत्य का अपराध, नशीली दवाओं से संबंधित अपराध, या हथियारों और गोला-बारूद के अवैध कब्जे का अपराध, हत्या, दुष्कर्म, एसिड हमला, सिक्कों और मुद्रा नोटों की जालसाजी, मानव तस्करी, बच्चों के खिलाफ यौन अपराध, देश के खिलाफ अपराध- जिसमें भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्य या आर्थिक अपराध शामिल हैं।
अपराध के आरोपी व्यक्ति पर उसकी अनुपस्थिति में मुकदमा चलाया जा सकता है
विधेयक में मजिस्ट्रेट के लिए प्रावधान है कि वह किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार किए बिना जांच के लिए उसके हस्ताक्षर, लिखावट, आवाज या उंगलियों के निशान के नमूने देने का आदेश दे सकता है। पुलिस द्वारा हिरासत में लेने के संबंध में विधेयक में प्रावधान है कि पुलिस निवारक कार्रवाई के हिस्से के रूप में दिए गए निर्देशों का विरोध करने, इनकार करने या अनदेखी करने वाले किसी भी व्यक्ति को हिरासत में ले सकती है या छोड़ सकती है। नए विधेयक के अनुसार, अपराध के आरोपी व्यक्ति पर उसकी अनुपस्थिति में मुकदमा चलाया जा सकता है और उसे दोषी ठहराया जा सकता है।