CAPF: अर्धसैनिक बलों में ग्राउंड कमांडरों के लिए पदोन्नति की राह हुई लंबी; CRPF, BSF अफसरों पर सबसे ज्यादा असर

CAPF: अर्धसैनिक बलों में ग्राउंड कमांडरों के लिए पदोन्नति की राह हुई लंबी; CRPF, BSF अफसरों पर सबसे ज्यादा असर


केंद्रीय अर्धसैनिक बलों ‘सीएपीएफ’ में कैडर अधिकारी, खासतौर पर यूपीएससी की परीक्षा पास कर सीधी भर्ती के माध्यम से ज्वाइन करने वाले युवा अफसरों की पदोन्नति की राह लंबी होती जा रही है। बीएसएफ और सीआरपीएफ में पदोन्नति को लेकर, खासतौर पर युवा अधिकारी बेहद परेशान हैं। इन बलों में सीधी भर्ती के जरिए सहायक कमांडेंट की नियुक्ति पाने वाले अधिकारियों को पहली पदोन्नति मिलने में ही लगभग 15 साल लग रहे हैं। मौजूदा परिस्थितियों में यह दूरी कम होने की बजाए बढ़ने के ही आसार दिख रहे हैं। 

वजह, दोनों ही बलों के कैडर रिव्यू की फाइल आगे नहीं सरक रही है। केंद्रीय गृह मंत्रालय में एक जिम्मेदार व्यक्ति से जब इस बाबत पूछा गया तो उन्होंने कहा कि हो जाएगा। फाइलें चलती रहती हैं। सीआरपीएफ का पिछला कैडर रिव्यू 2016 में हुआ था। इसी तरह बीएसएफ के कैडर रिव्यू को 12 सितंबर 2016 को कैबिनेट की स्वीकृति प्रदान की गई थी। नियम है कि हर पांच वर्ष में कैडर रिव्यू हो, मगर अभी तक इन दोनों ही बलों में कैडर रिव्यू नहीं हो सका है।

लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने के बावजूद राहत नहीं

बता दें कि इन बलों में ‘समूह ए’ अधिकारियों की सेवाएं 1986 से संगठित हैं, मगर अधिकारियों को उसका लाभ नहीं मिल सका। 2006 के दौरान जब छठे केंद्रीय वेतन आयोग ने आईएएस, आईपीएस व आईआरएस सहित अन्य सभी संगठित समूह-ए सेवाओं ‘ओजीएएस’ के लिए गैर कार्यात्मक वित्तीय उन्नयन ‘एनएफएफयू’ योजना शुरु की तो कैडर अधिकारियों ने भी इसका लाभ देने की मांग की। 

हालांकि, तब ‘सीएपीएफ’ को संगठित समूह ‘ए’ सेवा के रूप में मान्यता देने से इनकार कर दिया गया। इसके बाद कैडर अफसरों ने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद 3 सितंबर 2015 के दिन अदालत ने अपने फैसले में सीएपीएफ को 1986 से ‘संगठित समूह ए सेवा’ घोषित कर दिया। दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। सर्वोच्च न्यायालय ने 5 फरवरी 2019 को दिए अपने फैसले में दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 3 जुलाई 2019 को अपनी एक घोषणा के जरिए ‘सीएपीएफ संगठित सेवा ए’ को मंजूरी प्रदान कर दी। अब कैडर अफसरों में भी यह उम्मीद जगी कि उन्हें एनएफएफयू के परिणामी लाभ मिल जाएंगे। 

रेल मंत्रालय ने दिया, मगर गृह मंत्रालय ने नहीं 

रेलवे सुरक्षा बल ‘आरपीएफ’ भी सीएपीएफ के साथ न्यायालय में सह-याचिकाकर्ता था। केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी के बाद रेल मंत्रालय ने न्यायालय के आदेश को अक्षरश: लागू कर दिया। आरपीएफ को संगठित सेवा का दर्जा मिल गया। उन्हें एनएफएफयू के सभी लाभ मिल गए और साथ ही उनकी सेवा का नाम बदलकर ‘आईआरपीएफएस’ कर दिया। कैडर अफसरों के मुताबिक, सीएपीएफ में पुराने सेवा नियमों की आड़ में खंडित एनएफएफयू को न्यायालय के आदेश की व्याख्या कर लागू किया गया है। 

नतीजा, इससे सीएपीएफ कैडर अफसरों की एक बहुत छोटी संख्या को ही उसका लाभ मिल सका। अधिकांश अफसरों की पदोन्नति से जुड़ी समस्याएं जस की तस बनी रही। एक ही न्यायालय के आदेश की विभिन्न मंत्रालयों द्वारा अलग-अलग व्याख्या कर दी गई। अधिकारियों के मुताबिक, जब तक ओजीएएस ‘संगठित सेवा’ पैटर्न के अनुसार, भर्ती नियमों/सेवा नियमों में संशोधन नहीं किया जाता है, तब तक ओजीएएस का लाभ नहीं दिया जा सकता। सीएपीएफ के अधिकारियों की मांग है कि ओजीएएस पैटर्न के अनुसार, संशोधित भर्ती नियम/सेवा नियमों के साथ कैबिनेट और सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पूर्ण कार्यान्वयन किया जाए। अनेकों बार मांग करने के बाद भी उनके सेवा नियम/भर्ती नियम संशोधित नहीं किए गए। 

न पदोन्नति मिली और न ही आर्थिक फायदा

कैडर अफसरों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी वे दोहरी मार झेल रहे हैं। सरकार ने सर्वोच्च अदालत के फैसले को मनमर्जी से लागू कर दिया है। एनएफएफयू का फायदा देने के लिए पदोन्नति का नियम लागू किया गया। जब पदोन्नति का लाभ नहीं मिल रहा था तो ही सरकार, एनएफएफयू लेकर आई थी। अब जिसकी पदोन्नति हो रही है, उसे ही एनएफएफयू दिया जा रहा है। कैडर अधिकारियों की ओर से सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना का नोटिस, सर्वोच्च अदालत में फाइल किया गया है। कैडर रिव्यू को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट का जो आदेश आया था, वह भी सुप्रीम कोर्ट में है। 

सर्वोच्च अदालत ने इन दोनों केसों को एक साथ क्लब कर दिया है। मौजूदा स्थिति में अधिकांश कैडर अफसरों को न तो एनएफएफयू का फायदा मिल सका और न ही समय पर उनका कैडर रिव्यू हो सका है। कैडर रिव्यू नहीं होने के कारण सीएपीएफ के ग्राउंड कमांडर व अन्य रैंक वाले अधिकारी पदोन्नति के मोर्च पर बुरी तरह पिछड़ गए हैं। सीधी भर्ती के माध्यम से विशेषकर सीआरपीएफ और बीएसएफ में आने वाले सहायक कमांडेंट को पहली पदोन्नति लगभग 15 वर्ष में मिल रही है। डिप्टी कमांडेंट तक पहुंचने में 22 साल तो कमांडेंट के लिए 27 साल लग रहे हैं। डीआईजी, आईजी व एडीजी के पद तक कैसे और कब पहुंचेंगे, इस बाबत अंदाजा लगाया जा सकता है। 

डीओपीटी नियमों के तहत नहीं हो रहा क्रियान्यवन

नियमानुसार, सीएपीएफ में हर पांच साल बाद कैडर रिव्यू होना जरुरी है। डीओपीटी ने कई बार कहा है कि रिव्यू प्रक्रिया जल्द पूरी करें। कैडर कंट्रोलिंग अथॉरिटी यानी गृह मंत्रालय कह देता है कि अभी तो कोर्ट में केस है। इसका सीधा असर कैडर अफसरों पर पड़ रहा है। उन्हें तय समय पर पदोन्नति नहीं मिल पा रही है। गलत तरीके से एनएफएफयू के क्रियान्वयन में विरोधाभास हो रहा है। किसी को इसका दोहरा लाभ तो किसी के हिस्से केवल मार आ रही है। कुछ पदों पर डीआईजी व उससे ऊपर के रैंकों में परमोशन होने पर एनएफएफयू का लाभ दिया जा रहा है। 

दूसरी ओर, जिनकी पदोन्नति नहीं हो रही है, उन्हें एनएफएफयू भी नहीं मिल रहा। खास बात है कि जिस पॉलिसी को पदोन्नति के साथ लिंक किया गया है, उसका डीओपीटी के नियमों के तहत क्रियान्यवन नहीं हो रहा। देश में बाकी की 54 ‘संगठित सेवाएं ग्रुप ए’ ओजीएएस में डीओपीटी के तहत लाभ मिलता है। वहां एनएफएफयू के लिए पदोन्नति का नियम नहीं लगता। सीएपीएफ में पदोन्नति का नियम अड़ा देते हैं। आईएएस व आईपीएस में टाइम बाउंड परमोशन मिलता है। इस सेवा के अफसरों को परमोशन व वेतन लाभ, दोनों फायदे मिलते हैं। आईएएस को तो दो साल पहले ही सभी फायदे मिल जाते हैं। एनएफएफयू के आदेश में कहा गया है कि एनएफएसजी और एनएफएफयू देसे से पहले ‘आरआर’ यानी रिक्रूटमेंट रूल्स को बदला जाए। उसके बाद इसका लाभ दें। एनएफएफयू के प्रावधानों में बदलाव करते वक्त इन्हें शामिल किया जाए, लेकिन आज तक ऐसा नहीं हुआ है।

संसद में पूछे गए सवाल का जवाब

संसद के बजट सत्र में यह सवाल पूछा गया था कि केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में सीधी भर्ती के जरिए ‘सहायक कमांडेंट’ बनने वाले युवा अधिकारी आखिर नौकरी क्यों छोड़ रहे हैं। लोकसभा सांसद रवनीत सिंह ने यह सवाल पूछा था कि हाल ही के वर्षों में सीमा प्रहरी बल, ‘आईटीबीपी’ में विशेषकर सहायक कमांडेंट ‘एसी’ के स्तर पर बड़ी संख्या में सैनिकों ने नौकरी छोड़ी है। 

इसके जवाब में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा था, आईटीबीपी में नौकरी छोड़ने वालों की संख्या अधिक नहीं है। पिछले दस वर्षों के दौरान नौकरी छोड़ने की औसत दर आमतौर पर एक समान रही है। यह देखा गया है कि अधिकारी बेहतर करियर के अवसरों का लाभ उठाने के लिए अथवा कुछ बाध्य करने वाली घरेलू परिस्थितियों के कारण त्यागपत्र देते हैं। रिक्तियों को सीधी भर्ती, सीमित विभागीय प्रतियोगी परीक्षा और पदोन्नति के माध्यम से नियमित तौर पर भरा जाता है। 

सीआरपीएफ का पिछला कैडर रिव्यू 2016 में हुआ था। बल के लिए कैडर रिव्यू कमेटी ‘सीआरसी’ की बैठक 15 दिसंबर 2015 को हुई थी, जबकि उसे 29 जून 2016 को कैबिनेट की मंजूरी मिली थी। इसी तरह बीएसएफ के कैडर रिव्यू को 12 सितंबर 2016 को कैबिनेट की स्वीकृति प्रदान की गई थी। डीओपीटी की 17 जुलाई की कैडर रिव्यू रिपोर्ट में सीआरपीएफ और बीएसएफ का नाम ही नहीं है। इनके रिव्यू की क्या स्थिति है, फाइल किसकी टेबल पर है, इसकी जानकारी तक नहीं दी गई है। नियमानुसार, दोनों बलों की कैडर रिव्यू प्रक्रिया गत वर्ष पूरी हो जानी चाहिए थी। 

सेवा को अलविदा कह रहे हैं कैडर अधिकारी

केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के युवा कैडर अधिकारी जॉब छोड़ रहे हैं। इसके पीछे कई वजह बताई जा रही हैं। बलों के शीर्ष नेतृत्व के दरबार में इन अधिकारियों की ठीक तरह से सुनवाई न होना, एक बड़ी वजह है। दूसरा कारण, युवा कैडर अफसरों का पदोन्नति के मोर्चे पर बुरी तरह पिछड़ना है। गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति ने अपनी 242 वीं रिपोर्ट में कहा है कि गत पांच वर्ष में सीआरपीएफ, बीएसएफ, आईटीबीपी, एसएसबी, सीआईएसएफ और असम राइफल्स में 50155 कर्मियों ने जॉब को अलविदा कह दिया है। जुलाई में आईटीबीपी के सहायक कमांडेंट सुमित शर्मा ने राष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र भेजा था। 

उन्होंने कई ऐसे कारणों का उल्लेख किया है, जिसके चलते उन्हें बल को अलविदा कहने जैसा कठोर कदम उठाना पड़ा है। गत वर्ष सीआरपीएफ के सहायक कमांडेंट सर्वेश त्रिपाठी ने भी त्यागपत्र दे दिया था। देश के सबसे बड़े केंद्रीय अर्धसैनिक बल में भी पांच वर्ष के दौरान लगभग डेढ़ सौ युवा कैडर अफसर, नौकरी छोड़ चुके हैं। पिछले दिनों आईटीबीपी में एक कमांडेंट ने अपने ही जूनियर अधिकारी यानी सहायक कमांडेंट की वार्षिक कार्य मूल्यांकन प्रतिवेदन ‘एपीएआर’ में 3.69 नंबर दिए। इसके बाद जब वह फाइल डीआईजी और आईजी के पास पहुंची तो नंबर ‘जीरो’ हो गए। दिल्ली हाईकोर्ट से जूनियर अधिकारी को राहत मिली। इसी तरह का मामला एसएसबी में भी सामने आया है। वह मामला भी हाईकोर्ट के समक्ष है।

आईटीबीपी के सहायक कमांडेंट ने राष्ट्रपति को भेजा त्यागपत्र 

आईटीबीपी के सहायक कमांडेंट (एग्जी) सुमित शर्मा ने राष्ट्रपति को भेजे अपने त्यागपत्र में लिखा, आईटीबीपी में कार्य की स्थिति ऐसी नहीं थी कि वे अपनी पत्नी के साथ न्याय कर पाते। वैवाहिक संबंधों में तनाव आने लगा। ड्यूटी की प्रकृति के चलते इतना ज्यादा तनाव रहा कि वे फेमिली प्लानिंग तक नहीं कर पा रहे थे। निजी जीवन के प्रति मेरे संगठन का अवहेलना पूर्ण रवैया रहा, जिसके चलते एक स्वस्थ वर्क लाइफ संतुलन नहीं बन सका। तय समय बाद भी पदोन्नति नहीं मिल सकी। पदोन्नति के मोर्चे पर पिछड़ना, इस बात से मेरे उत्साह और लग्न को गहरी ठेस लगी। इन परिस्थितियों में मेरे लिए करियर ग्रोथ और विकास, इस ओर सोचना बेमानी सा हो गया। ईएचए और एचए टेन्योर पूरा करने के बाद भी मुझे शांत इलाके में तैनाती नहीं दी गई। ये हालात तब बने, जब मैं इसके लिए सभी शर्तें पूरी करता था। ट्रांसफर पॉलिसी के औचक बदलाव ने मुझे निराश किया। आईटीबीपी के अंदर ट्रांसफर पॉलिसी का पारदर्शी न होना, इसने भी मुझे त्यागपत्र के लिए मजबूर किया। करुणामय आधार पर तबादले की अर्जी भी स्वीकार नहीं की गई। यहां तक कि केंद्र सरकार की सेवाओं में ‘युगल पोस्टिंग’ का आधार, यह नियम भी नहीं माना गया। इसके चलते सहायक कमांडेंट पूरी तरह से टूट गए। इसके बाद जब इन मुद्दों को लेकर बल के डीजी से बात करने के लिए समय मांगा गया तो टालमटोल कर दिया गया। बतौर सुमित, इन सब परिस्थितियों में मेरे लिए बल को अलविदा कहने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं था।



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