सुप्रीम कोर्ट
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सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने नौवें दिन अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की। इस दौरान पीठ ने कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 में स्पष्ट रूप से आत्म-सीमित चरित्र (सेल्फ लिमिटिंग कैरेक्टर) है। यह राष्ट्रपति को एक निश्चित प्रक्रिया के माध्यम से इसे निरस्त करने का अधिकार देता है। साथ ही शीर्ष कोर्ट ने यह सवाल भी किया कि भले ही जम्मू-कश्मीर के संविधान ने भारत संघ के साथ अपने रिश्ते को तय किया था, लेकिन अगर वे उस रिश्ते को भारतीय संविधान के मुताबिक नहीं मानते हैं तो 1957 के बाद से अब तक कैसे वे चल सकते हैं। पीठ ने कहा कि एक संघीय इकाई का संविधान, संघ के संविधान से कैसे ऊपर हो सकता है?
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं में से एक सोयब कुरैशी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने इस बात पर दबाव डाला कि जम्मू-कश्मीर संविधान सभा ने जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति को बरकरार रखने के लिए एक सचेत निर्णय लिया था। सोयब कुरैशी ने भी इस संवैधानिक प्रावधान को निरस्त करने के केंद्र के 5 अगस्त, 2019 के फैसले को चुनौती दी है। इस पर पीठ ने उनके कई सवाल किए।
पीठ ने कहा कि अनुच्छेद 370 के दो बिंदु हो सकते हैं। पहला, जनवरी 1957 में जम्मू-कश्मीर संविधान सभा के समापन के बाद और दूसरा, जब राष्ट्रपति जम्मू-कश्मीर विधानसभा की सहमति के बाद सांविधानिक प्रावधान को निरस्त कर सकते हैं। पीठ ने कहा, दिलचस्प बात यह है कि संविधान सभा के निर्णय लेने के बाद अनुच्छेद 370 पर कार्रवाई के बारे में चुप्पी है। यदि अनुच्छेद 370 पर पूरी तरह से चुप्पी है तो अनुच्छेद 370, संभवतः स्वयं ही कार्यान्वित हो गया है..ऐसी स्थिति में, हमारे पास दो विकल्प हैं। आपकी सोच यह होगी कि जम्मू-कश्मीर का संविधान शून्य को भर देगा और वह सर्वोच्च दस्तावेज होगा। संभवतः दूसरा दृष्टिकोण यह है – क्या किसी संघीय इकाई का संविधान कभी संघीय इकाई के स्रोत से ऊपर उठ सकता है?
शंकरनारायणन की इस दलील पर कि जम्मू-कश्मीर के संबंध में विशेष प्रावधान जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा के प्रति दिखाए गए सम्मान का परिणाम थे, पीठ ने कहा कि जम्मू एवं कश्मीर राज्य के लिए ऐसे किसी भी अधिकार को मान्यता देने के लिए भारतीय संविधान में कोई संबंधित प्रावधान नहीं था। पीठ ने कहा, संविधान का अनुच्छेद 370 जो स्वयं इसके आत्म-सीमित चरित्र की ओर इशारा करता है। लेकिन आपका तर्क यह है कि हमारे संविधान को इतना पढ़ा जाना चाहिए कि जम्मू-कश्मीर के संविधान को अधिभावी दस्तावेज माना जाए, यह कैसे हो सकता है?
इस दौरान, शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी, नित्या रामकृष्णन, संजय पारिख और पीसी सेन की दलीलें भी सुनीं। ये सुनवाई गुरुवार को भी जारी रहेगी। कल अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता केंद्र की ओर से अपनी दलीलें पेश करेंगे। साथ ही सीजेआई चंद्रचूड़ ने यह भी कहा कि सुनवाई की निरंतरता बनाए रखने के लिए संविधान पीठ 28 अगस्त (सोमवार) को भी बैठेगी।