Prayagraj News : इलाहाबाद हाईकोर्ट
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि वक्फ बोर्ड के मुतवल्ली लोक सेवक माने जाने के बावजूद सीआरपीसी की धारा 197 के तहत सुरक्षा पाने के हकदार नहीं हैं। सीआरपीसी की धारा में लोक सेवकों को सुरक्षा प्रदान की गई है। उन्हें हटाने के लिए केंद्र या राज्य सरकार की मंजूरी जरूरी है। यह आदेश न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल ने अबु तालिब हुसैन व अन्य की याचिका को खारिज करते हुए दिया।
कोर्ट ने कहा कि वक्फ अधिनियम 1995 की धारा-101 के एक मान्य प्रावधान द्वारा मुतवल्ली को लोक सेवक घोषित किया गया था लेकिन सीआरपीसी की धारा-197 की दूसरी शर्त को पूरा करने के लिए ’सरकार’ शब्द को वक्फ बोर्ड द्वारा प्रतिस्थापित नहीं किया गया। सीआरपीसी की धारा-197 की प्रयोज्यता के लिए सभी शर्तें पूरी नहीं की गईं हैं। इसलिए मुतवल्ली सुरक्षा पाने के हकदार नहीं हैं।
मामले में याची के खिलाफ मारपीट, धमकी देने सहित आईपीसी की चार धाराओं में सहारनपुर के कोतवाली नगर थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने समन आदेश जारी किया था। याचियों ने इसे रद्द करने की मांग की थी। कहा गया कि याची मुतवल्ली है। इसलिए वह लोक सेवक है। उस पर मुकदमा चलाने के लिए सरकार से मंजूरी लेनी चाहिए। दूसरे याची का कहना था कि वह मुतवल्ली का पिता है और सार्वजनिक कर्तव्य निर्वहन में याची की सहायता करता है।