सागर की घटना ने भाजपा की चिंता बढ़ा दी है
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मध्य प्रदेश में दलित और आदिवासी समुदायों के खिलाफ अत्याचार की एक के बाद एक घटनाओं ने भाजपा की चिंता को बढ़ा दिया है। करीब दो दशक लंबे शासन के कारण पहले से ही सत्ता विरोधी लहर का सामना कर ही पार्टी की मुश्किलें इन घटनाओं के कारण बढ़ती दिख रही है। दलित-आदिवासी समुदायों के खिलाफ अत्याचार की घटनाएं पहले ही राज्य भर में सुर्खियां बटोर चुकी हैं, लेकिन चुनाव से महज डेढ़ माह पहले सागर में दलित युवक की पीटकर हत्या करने का मामला सामने आया है। इस मामले के आने के बाद भाजपा सरकार की टेंशन बढ़ गई है। भोपाल से लेकर लखनऊ तक की सियासत तेज हो गई है। उत्तर प्रदेश की पूर्व सीएम और बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने इस घटना पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। वहीं, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने भी इस मामले को लेकर शिवराज सरकार पर तीखा हमला किया है।
मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार के लिए सबसे अधिक चिंता की यह बात यह है कि आदिवासी-दलितों के ये मामले एक विशेष क्षेत्र विंध्य और बुंदेलखंड क्षेत्र से ही सामने आ रहे हैं। इससे पार्टी के लिए नया सिरदर्द पैदा हो गया क्योंकि चुनाव आचार संहिता लगने में महज 50 दिन का ही समय बचा हुआ है। दलित अत्याचार की ताजा घटना सागर जिले से सामने आई है। यहां दलित युवक की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई। आरोपियों से युवक को बचाने पहुंची उसकी मां को भी निर्वस्त्र कर पीटा गया। दरअसल, कुछ दिनों पहले मृतक की बहन के साथ आरोपियों ने छेड़छाड़ की थी, जिसका केस दर्ज हुआ था। आरोपी पीड़ित परिवार पर राजीनामा का दबाव बना रहे थे। घटना सामने आने के बाद पुलिस ने 9 नामजद और चार अन्य आरोपियों के खिलाफ हत्या समेत अन्य धाराओं में केस दर्ज किया। पुलिस ने मुख्य आरोपी समेत 8 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है। मृतक के परिजनों की मांग है कि आरोपियों के मकान पर बुलडोजर चलाया जाना चाहिए।
उज्जैन-इंदौर के बाद सबसे ज्यादा दलित सागर में
हाल ही में पीएम नरेंद्र मोदी ने सागर जिले में संत रविदास के भव्य स्मारक का भूमिपूजन किया था। सागर बुंदेलखंड का सेंटर पॉइंट भी माना जाता है। बुंदेलखंड में कुल 26 सीटें हैं। यहां सबसे अधिक दलित वोटर हैं। उज्जैन-इंदौर के अलावा सागर ही ऐसा जिला है, जहां 5 लाख से अधिक दलित वोटर हैं। बुंदेलखंड से ही दलितों के साथ भेदभाव की सबसे ज्यादा खबरें आती हैं। भाजपा को पता है कि सत्ता में लौटना है, तो दलित वोटरों को साधे बिना ये मुमकिन नहीं होने वाला है।
प्रदेश की एससी सीटों पर पकड़ रखने वाली भाजपा को 2018 के विधानसभा चुनाव में तगड़ा झटका लगा था। कांग्रेस भाजपा के कोर वोट बैंक में सेंध लगाने में सफल रही। 2013 की तुलना में कांग्रेस की सीटों में इजाफा हुआ। 14 से बढ़कर 17 हो गई। जबकि भाजपा 28 से घटकर 18 सीटों पर रह गई। इसी कारण से भाजपा 2018 में बहुमत से पीछे रह गई। BJP को 2020 में एक और झटका डबरा सीट पर लगा। यहां की विधायक इमरती देवी को पार्टी में शामिल करते हुए BJP ने उप चुनाव में उतारा था, पर दलित वोटरों ने इमरती की बजाय कांग्रेस प्रत्याशी का साथ दिया। प्रदेश में 35 आरक्षित सहित 54 सीटों पर भी दलित वोटर निर्णायक हैं। ये संख्या किसी को भी सत्ता में लाने या बाहर करने के लिए पर्याप्त है। यही कारण है कि भाजपा एससी वोटरों पर बड़ा फोकस कर रही है।
पीएम-खरगे और पीएम मोदी भी सागर जिले में कर चुके हैं रैली
मध्यप्रदेश की सियासत में विंध्य-महाकौशल के साथ बुंदेलखंड का इलाका बहुत अहम स्थान रखता है। सागर में पीएम मोदी की रैली के बाद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे भी जनसभा के लिए पहुंचे थे। इससे पहले सपा प्रमुख अखिलेश यादव भी रैली के लिए सागर पहुंच चुके है। इन सभी दलों के निशाने पर बुंदेलखंड क्षेत्र की 29 विधानसभा सीटें है। इनमें अनुसूचित जाति वर्ग के 22 फीसदी मतदाता महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। बुंदेलखंड क्षेत्र में सागर, छतरपुर, दमोह, टीकमगढ़, निवाड़ी और पन्ना जिले आते हैं। इन छह जिलों में 26 विधानसभा सीटें आती हैं। दतिया की 3 सीटों को और मिला लिया जाए तो यह 29 सीटें होती हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में इन 29 सीटों में से 19 सीटें बीजेपी, कांग्रेस के पास 8 और सपा-बसपा के पास 1-1 सीट हैं। बुंदेलखंड में जातिवाद जमकर हावी है। यहां 22 फीसदी मतदाता अनुसूचित जाति वर्ग के हैं। इसके अलावा 18 फीसदी सवर्ण, 26 फीसदी ओबीसी और 34 फीसदी अन्य मतदाता है।
प्रदेश के राजनीतिक जानकार कहते है कि, बीजेपी बुन्देलखण्ड क्षेत्र विशेषकर सागर जिले में अंदरूनी कलह से जूझ रही है। यहां शिवराज सरकार के तीन शक्तिशाली मंत्री हैं,जो एक-दूसरे को बौना दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। इसके विपरीत, कांग्रेस के पास बुन्देलखण्ड क्षेत्र में कोई शक्तिशाली और प्रभावी चेहरा नहीं है। लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के दौरे के बाद वह इस क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत बनाने का प्रयास कर रही है।
यह कहते हैं आंकड़े…
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ने 2021 में दलितों के खिलाफ अपराधों से संबंधित डेटा जारी किया था। इस डेटा ने मध्य प्रदेश को अनुसूचित जातियों के खिलाफ सबसे अधिक अपराधों वाले राज्य के रूप में उजागर किया था, यह स्थिति 2020 में भी कायम रही थी। 2019 में दलितों के खिलाफ अपराधों के मामले में राजस्थान पहले स्थान पर था, जबकि मध्य प्रदेश दूसरे स्थान पर था। 2021 में, भारत में अनुसूचित जातियों के खिलाफ अपराध की कुल 50,900 घटनाएं दर्ज की गई, जिनमें से अकेले मध्य प्रदेश में 7,214 मामले थे। इसके अलावा, साथ ही एससी/एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत मामलों में भी देश में ऐसी 45,610 घटनाएं दर्ज की गई, जिनमें मध्य प्रदेश में 7,211 मामले शामिल थे। मध्य प्रदेश में 2018 से 2021 तक दलितों के खिलाफ अपराध के दर्ज मामलों का विश्लेषण करने पर ये चीज सामने आई है कि इन तीन सालों में ऐसे मामलों में 51.7 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। बता दें कि राज्य में प्रति एक लाख की आबादी पर अनुसूचित जाति के खिलाफ 63 से अधिक अपराध हो रहे हैं।