सुप्रीम कोर्ट
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साल 2002 में हुए नीतीश कटारा हत्याकांड मामले में दोषी विकास यादव की याचिका पर शीर्ष कोर्ट तीन अक्तूबर को सुनवाई करेगी। मंगलवार को न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और संजय कुमार की पीठ ने सुनवाई करते हुए आदेश दिया। वह 2002 के सनसनीखेज नीतीश कटारा हत्याकांड में 25 साल की जेल की सजा काट रहे विकास यादव की याचिका में उसे छूट का लाभ देने से इनकार का मुद्दा उठाया गया है।
बता दें कि तीन अक्तूबर 2016 को, शीर्ष अदालत ने बिजनेस एक्जीक्यूटिव कटारा के अपहरण और हत्या में उनकी भूमिका के लिए उत्तर प्रदेश के विवादास्पद राजनेता डीपी यादव के बेटे विकास यादव और उनके चचेरे भाई विशाल यादव को बिना किसी छूट के जेल की सजा दी थी। इस मामले में अन्य सह-दोषी सुखदेव पहलवान को भी बिना किसी छूट लाभ के 20 साल की जेल की सजा सुनाई गई थी। बता दें कि विकास यादव और उनके चचेरे भाई विशाल यादव अलग-अलग जाति के होने के कारण अपनी बहन भारती यादव के साथ कटारा के कथित संबंध के खिलाफ थे।
शीर्ष अदालत में दायर अपनी याचिका में, विकास यादव ने यह निर्देश देने की मांग की है कि छूट का लाभ संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षित व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का हिस्सा है और इसे अदालतों की न्यायिक घोषणा द्वारा भी प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है।
इस मामले में मंगलवार को न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और संजय कुमार की पीठ के समक्ष सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान नीतीश कटारा की मां नीलम कटारा का पक्ष रख रहे वरिष्ठ वकील अपराजिता सिंह और वकील दुर्गा दत्त ने याचिका का विरोध किया। साथ ही उन्होंने इसे खारिज करने की मांग भी की। वहीं, याचिकाकर्ता के वकील ने पीठ को बताया कि विकास यादव बिना किसी छूट के 22 साल से जेल में है।
इस दौरान केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रही अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने भी याचिका खारिज करने की मांग की। भाटी ने कहा कि समय का इस तरह दुरुपयोग नहीं किया जा सकता।
बता दें कि याचिका में यह निर्देश देने की भी मांग की गई है कि उच्च न्यायालय या यहां तक कि शीर्ष अदालत सहित कोई भी आपराधिक अदालत ऐसी सजा नहीं दे सकती जो दंड संहिता में प्रदान नहीं की गई है। याचिका में शीर्ष अदालत से अनुरोध किया गया है कि वह यह माने कि विकास यादव उस पर लगाई गई सजा के निलंबन, छूट या कमीकरण के लाभ का हकदार है, जो उचित सरकार द्वारा दिया जा सकता है। इसके परिणामस्वरूप, संबंधित अधिकारियों को इस तरह के अधिकार पर विचार करने का निर्देश दिया जाए।