आदित्य एल1 की तस्वीरें
– फोटो : सोशल मीडिया
विस्तार
भारत का पहला सूर्य अभियान आदित्य एल-1 अंतरिक्ष में स्थापित एक वैधशाला की तरह काम करेगा। यह हमें सूर्य के भूत, वर्तमान और भविष्य को जानने में मदद करेगा। करीब 10 साल से अभियान से जुड़े सौर भौतिकी के प्रो. दीपांकर बनर्जी ने बताया कि इसके जरिये हमें कई नई जानकारियां मिलेंगी, जिन्हें पृथ्वी से सूर्य का अध्ययन करते हुए जानना संभव नहीं था।
दो सितंबर को भेजा जा रहा भारत का आदित्य एल-1 अभियान पृथ्वी से करीब 15 लाख किमी दूर सूर्य की ओर जाएगा और लैग्रेंज बिंदु पर स्थापित होकर हमारे निकटतम तारे पर अगले सवा 5 साल तक लगातार नजर बनाए रखेगा, कई प्रकार के अध्ययन व प्रयोग करेगा, इनका डाटा पृथ्वी पर भेजेगा। नैनीताल स्थित आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान के निदेशक प्रो. बनर्जी ने कहा, ‘हमारा अस्तित्व सूर्य से आने वाले प्रकाश व ऊर्जा पर निर्भर है। हमें पता रहना चाहिए कि क्या वह आज जैसी किरणें हमारी ओर हमेशा बिखेरता रहेगा, या उसमें कोई बदलाव आने वाले हैं? अगर वह आज जैसी ऊर्जा हमें कल न दे पाए, तो इसका पृथ्वी पर क्या असर होगा?’ उन्होंने कहा, यह जानने के लिए लैग्रेंज बिंदु एक बहुत अच्छी जगह है, यहीं हम अपना आदित्य एल-1 अभियान भेज रहे हैं। यह अभियान भारत में तारा भौतिकी और सौर भौतिकी क्षेत्र को बहुत आगे ले जाएगा।
सौर तूफान
हर 11 साल में सूर्य में कुछ बदलाव आते हैं। यह बदलाव उसकी चुंबकीय गतिविधियों में भी होते हैं, जिन्हें सौर चक्र कहा जाता है। कई बार चुंबकीय क्षेत्र में यह बदलाव आक्रामक होते हैं। इनसे सौर मंडल के वातावरण में ऊर्जा का शक्तिशाली विस्फोट होता है, जो सौर तूफान कहलाते हैं। भारत इनकी पूर्व सूचना देते हुए इनका अध्ययन कर पाएगा।
सीएमई
कोरोनल मास इजेक्शन (सीएमई) यानी सूर्य की बाहरी परत कोरोना से होने वाला ऊर्जा के भारी उत्सर्जन। कभी कभी यह सौर मंडल में सभी दिशाओं में सीएमई के रूप में उत्सर्जित होता है। यह हमारे लिए खतरनाक हो सकता है, पृथ्वी की परिक्रमा व अध्ययन के लिए भेजे उपग्रहों को नुकसान पहुंचा सकता है। उन्हें बचाने के लिए हमें पता होना चाहिए कि सीएमई कब हो रहा है।
पराबैंगनी किरणों का प्रवाह
सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र को पहली बार हम अंतरिक्ष में मौजूद उपकरणों से जान पाएंगे। इनसे निकलने वाली पराबैंगनी किरणों के प्रवाह पर निरंतर निगरानी संभव होगी। सौर पवन की विशेषताओं को जाना जा सकेगा। इनमें मौजूद तत्वों का हम विश्लेषण कर पाएंगे। यह सब अंतरिक्ष से पहली बार होगा।
पृथ्वी के हिम युग
पृथ्वी पर हिम युग का क्या इतिहास रहा है? इस छिपी जानकारी को सामने लाने में सौर गतिविधियों की समझ मदद करेगी। इनके पृथ्वी पर होने वाले असर का पता लगाकर इतिहास में आए हिम युगों के वजह, विस्तार और भविष्य में संभावनाएं वैज्ञानिक दे पाएंगे।