नारी शक्ति वंदन अधिनियम 2023।
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
नए संसद भवन में पहले दिन की कार्यवाही के दौरान महिला आरक्षण विधेयक लोकसभा में पेश किया गया। लोकसभा में विधेयक पास होने के बाद गुरुवार को इसे राज्य में पेश किया जाएगा। इस विधेयक के पास होने और कानून बनने के बाद लोकसभा और विधानसभा में बहुत कुछ बदल जाएगा। हालांकि इस विधेयक के कानून बनने की राह इतनी आसान भी नहीं है। संविधान विशेषज्ञों का दावा है कि विधेयक को जमीन पर अमली जामा पहनाने के लिए कई बाधाओं को पार करना होगा। इनमें राजनीतिक सीमाओं से परे समर्थन और शीघ्र जनगणना और परिसीमन अभ्यास शामिल है।
पहले जानिए विधेयक में क्या?
सरकार ने इस बिल का नाम नारी शक्ति अधिनियम दिया है। महिला आरक्षण विधेयक में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी या एक तिहाई सीटें आरक्षित करने का प्रस्ताव है।
जमीनी हकीकत बनने में आएंगी ये बाधाएं
विशेषज्ञों का कहना है कि संविधान (128वां संशोधन) विधेयक के प्रावधान में यह साफ किया गया है कि महिला आरक्षण विधेयक के कानून बनने के बाद तब प्रभावी होगा, जबकि आगामी जनगणना के आंकड़ों के आधार पर परिसीमन या निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण कर दिया जाए। इसके अलावा, उनका ये भी कहना है कि संसद के दोनों सदनों से विधेयक के पारित होने के बाद इसे कानून बनने के लिए कम से कम 50 प्रतिशत राज्य विधानसभाओं से भी मंजूरी लेनी होगी। इसका कारण यह है कि इससे राज्यों के अधिकार प्रभावित होते हैं।
15 साल के लिए महिला आरक्षण का प्रावधान
विशेषज्ञों के मुताबिक, संविधान के एक सौ अट्ठाईसवां संशोधन विधेयक के कानून बनने के बाद की गई पहली जनगणना के प्रासंगिक आंकड़े प्रकाशित होने के बाद इस उद्देश्य के लिए परिसीमन की कवायद शुरू होगी, जिस के बाद यह प्रभाव में आएगा। बता दें कि मौजूदा बिल में महिला आरक्षण को 15 साल (आमतौर पर तीन चुनाव) के लिए लागू किया गया। इसके बाद संसद चाहे तो महिला आरक्षण को आगे बढ़ा सकती है। दिलचस्प ये है कि देश में जातिगत आरक्षण का प्रावधान भी दस साल के लिए लागू हुआ था, जो अब तक जारी है।
परिसीमन भी बनेगा बाधा
वहीं, 2002 में किए गए संविधान संशोधन के बाद संविधान के अनुच्छेद 82 के अनुसार, 2021 में होने वाली जनगणना के आंकड़ों के हिसाब से परिसीमन प्रक्रिया 2026 में होनी थी। वहीं, 2026 के बाद पहली जनगणना 2031 में की जानी है, जिसके बाद निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन या पुनर्निर्धारण किया जाएगा। इससे पहले, 2021 में जनगणना प्रक्रिया होनी थी, जिसे कोरोना महामारी के कारण स्थगित कर दिया गया था। इन स्थितियों को देखते हुए ये कहा जा सकता है कि 2029 के लोकसभा चुनाव से पहले महिला आरक्षण को हकीकत में बदलने के लिए सरकार को तेजी से काम करना होगा।
ये भी है एक चिंता
विशेषज्ञों द्वारा जताई गई एक और चिंता यह भी है कि क्या महिलाएं अपने पतियों के पास वास्तविक शक्ति होने के बाद भी प्रमुख बन सकती हैं। वकील शिल्पी जैन ने इसे लेकर कहा कि अगर कोटा के तहत चुने गए प्रतिनिधि उन्हीं परिवारों से होंगे जहां पुरुष सदस्य राजनीति में हैं तो ऐसे में महिलाओं के उत्थान के लिए बनाए गए इस कानून का उद्देश्य विफल हो जाएगा। उन्होंने कहा कि इसमें उन महिलाओं को चुनाव लड़ने के लिए प्रोत्साहित करने का प्रावधान हो सकता है जो राजनीतिक पृष्ठभूमि से नहीं हैं। अन्यथा आरक्षण का उद्देश्य विफल हो जाएगा।