पश्चिम बंगाल में कुर्मी संगठनों का आंदोलन।
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पश्चिम बंगाल में अनुसूचित जनजाति (एसटी) के दर्जे की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे कुर्मी संगठनों ने अपने प्रस्तावित रेल रोको आंदोलन को वापस ले लिया है। इससे दक्षिण पूर्व रेलवे और पूर्वी तट रेलवे क्षेत्र यानी पश्चिम बंगाल, झारखंड और ओडिशा में ट्रेन सेवाएं प्रभावित नहीं होंगी। अधिकारियों ने कहा कि ट्रेनें अपने निर्धारित मार्गों पर चलेंगी। दरअसल, कुर्मी संगठनों ने बुधवार से अनिश्चितकालीन रेल रोको आंदोलन का आह्वान किया था।
उन्होंने बताया कि रेल रोको आंदोलन को देखते हुए मंगलवार को झारखंड और ओडिशा में क्रमशः दक्षिण पूर्व रेलवे और पूर्वी तट रेलवे (ईसीओआर) के क्षेत्र में कम से कम 11 ट्रेनें रद्द कर दी गईं और 12 अन्य ट्रेनों का मार्ग बदल दिया गया। कुर्मी संगठनों की घोषणा के बाद ईसीओआर ने एक बयान में कहा कि उसने तत्काल प्रभाव से सामान्य मार्गों पर तय कार्यक्रम के अनुसार ट्रेनें चलाने का फैसला किया है, क्योंकि कुर्मी समाज का आंदोलन वापस ले लिया गया है।
रांची रेलवे डिवीजन के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी निशांत कुमार ने बताया कि पहले रद्द या डायवर्ट की गई सभी ट्रेनों को मुख्यालय के निर्देश के अनुसार उनके सामान्य मार्गों पर बहाल किया जा रहा है।
आदिवासी कुर्मी समाज के नेता अजीत महतो ने कहा कि हमने प्रस्तावित अनिश्चितकालीन रेल रोको आंदोलन वापस ले लिया है क्योंकि हमारे वरिष्ठ नेताओं को पुलिस द्वारा परेशान किया जा रहा है। हम 30 सितंबर को पश्चिम बंगाल के पुरुलिया में अगली बैठक में सामूहिक निर्णय लेंगे।
क्या है कुर्मी समुदाय की मांग
बता दें, आदिवासी कुर्मी समुदाय के लोग अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा और कुरमाली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर 20 सितंबर से झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा के नौ रेलवे स्टेशनों पर अनिश्चितकालीन रेल रोको आंदोलन का आह्वान किया था। कहा गया था कि पश्चिम बंगाल के आदिवासी कुर्मी समाज और ओडिशा की कुर्मी सेना सहित कई संगठन आंदोलन में भाग लेंगे।
हालांकि, झारखंड के प्रमुख कुर्मी संगठन टीकेवीएम के अध्यक्ष शीतल ओहदार ने दावा किया कि बुधवार से हमारा आंदोलन जारी रहेगा। ओहदार ने समुदाय के सांसदों से संसद के चल रहे विशेष सत्र के दौरान इस मांग को उठाने का आग्रह किया।
प्राचीन काल से आदिवासी हैं कुर्मी
आदिवासी कुर्मी समाज के प्रवक्ता हरमोहन महतो ने दावा किया कि ब्रिटिश शासन के दौरान 1913 में कुर्मियों को आदिवासी जनजातियों में सूचीबद्ध किया गया था। उन्होंने दावा किया कि जब भारत सरकार ने 6 सितंबर, 1950 को एसटी सूची अधिसूचित की, तो कुर्मियों को पश्चिम बंगाल, बिहार और ओडिशा में अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) की सूची में डाल दिया गया। महतो ने कहा कि प्राचीन काल से कुर्मी आदिवासी रहे हैं। उन्होंने दावा किया कि तीनों राज्यों में उनकी आबादी दो करोड़ से अधिक होने का अनुमान है।