Vasundhara Raje Scindia, Shivraj Singh Chauhan
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मध्य प्रदेश और राजस्थान के दो कद्दावर नेता इन दिनों उलझनों के दौर से गुजर रहे है। एमपी के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को चुनाव की घोषणा से कुछ दिन पहले भावुक होते देखा गया। इससे साफ संकेत मिलता है कि राज्य में अगर सरकार की वापसी होती है तो शिवराज उसके कप्तान नहीं होंगे। ऐसे संकेत मिल रहे है कि चार के सीएम शिवराज को दिल्ली हाईकमान दूसरे के लिए रास्ता बनाने के लिए कह सकता है।
हाल ही में शिवराज ने अपने विधानसभा क्षेत्र बुधनी में एक रैली को संबोधित करते हुए लोगों से पूछा कि,क्या उन्हें चुनाव लड़ना चाहिए या नहीं। इससे पहले भी सीएम ने अपने गृह जिले सीहोर में एक सभा में कहा था कि,उनके जाने के बाद लोग उन्हें याद करेंगे। दरअसल, इस चुनाव में दिल्ली दरबार की बेरुखी के कारण शिवराज सिंह चौहान की बैचेनी बढ़ी हुई है। प्रदेश में चुनाव मैनजमेंट से लेकर टिकट वितरण सभी में हाईकमान की चल रही है। ऐसे में शिवराज परेशान नजर आ रहे है। हर चुनाव में निकलने वाली जन आर्शिवाद यात्रा में भी पहली बार वे मुख्य चेहरा नहीं था। पार्टी चुनाव भी उनके चेहरे के बजाए मोदी के चेहरे को आगे रख मैदान में उतरी है।
मध्यप्रदेश: सीएम चेहरे पर बना हुआ है सस्पेंस
भाजपा की दूसरी सूची ने भी चौहान की चिंता को बढ़ा दिया है। पार्टी ने तीन केंद्रीय मंत्री सहित चार सांसदों को मैदान में उतारा है। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, प्रहलाद पटेल, फग्गन सिंह कुलस्ते और सांसद गणेश सिंह, राकेश सिंह, उदय प्रताप सिंह और रीति पाठक चुनाव लड़ रहे है। जबकि इंदौर एक की सीट से पार्टी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय मैदान में है। कद्दावर नेताओं के मैदान में उतरने से यह अटकले तेज हो गई है कि पार्टी राज्य में नेतृत्व परितर्वन पर विचार कर रही है। पार्टी ने इन नेताओं को उतार कर न केवल शिवराज बल्कि जनता को भी संदेश दिया है कि 2023 में अगर पार्टी जीत हासिल करती है तो इन नेताओं में से ही किसी एक को सरकार का मुखिया बनाया जाएगा।
विधायकी का चुनाव लड़ रहे इन सभी दिग्गज सांसदों और उनके समर्थकों को उम्मीद है कि चुनाव के बाद उनके नेता को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। हालांकि पार्टी ने अभी तक सीएम फेस की घोषणा नहीं की है और न ही चौहान को दोबारा सीएम बनाने की कोई गारंटी दी है। ऐसे में चौहान अकेले लड़ाई लड़ते हुए दिख रहे है। शिवराज हर दिन कम से कम तीन से चार रैलियां करते हुए नजर आ रहे है। वे हर रैली में अपने 18 वर्षों के कार्यकाल के काम जनता को गिना रहे है। हाल ही में खंडवा जिले की एक रैली में उन्होंने कहा था कि, मैं भले की दुबला पतला दिखता हूं लेकिन डटकर लड़ता हूं। शिवराज इन दिनों हर सभा में मतदाताओं से भावुक अपील करते हुए दिख रहे है।
राजस्थान: वसुंधरा में अपने दम पर लड़ रही लड़ाई
भाजपा की एक और नेता राजस्थान की पूर्व सीएम वसंधुरा राजे सिंधिया भी ऐसी ही लड़ाई में फंसी हुई है। प्रदेश की पूर्व सीएम और कद्दावर नेता को अभी तक कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी नहीं दी गई है। बावजूद इसके राजे चुनाव से पहले ही अपने प्रचार अभियान में जुटी हुई है। वे लगातार अपने समर्थकों द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में भाग ले रही है। दो से तीन रैलियों में हिस्सा ले रही है।
लेकिन चुनाव में भूमिका तय नहीं होने से वसुंधरा चिंतित और नाराज भी हैं। इसका असर बीजेपी की परिवर्तन यात्राओं में भी देखने को मिला। इसके बाद पीएम मोदी की जयपुर, चित्तौड़गढ़ और जोधपुर में हुई सभाओं से एक बार फिर वसुंधरा और उनके समर्थकों की उम्मीदों को झटका लगा है। जब मोदी ने बार-बार इस बात को दोहराया कि राजस्थान में बीजेपी का चेहरा केवल ‘कमल के फूल’ का निशान होगा। मोदी ने बार बार यह बयान देकर साफ जाहिर कर दिया है कि राजस्थान में बीजेपी किसी के चेहरे पर चुनाव नहीं लड़ेगी। कहने का मतलब राजस्थान का चुनाव मोदी के चेहरे पर ही लड़ा जाएगा।
वसुंधरा को संबोधनों में भी नहीं मिल रही है जगह
पूर्व सीएम राजे के चेहरे पर बीजेपी की ओर से बेरुखी करने का तनाव साफ छलक रहा है। इसको लेकर राजनीतिक गलियारों में कई मायने निकाले जा रहे हैं। जयपुर, चित्तौड़गढ़ और जोधपुर में पीएम की सभाओं पर नजर डाली जाए तो, वसुंधरा को एक भी जगह पर संबोधन करने का समय नहीं दिया गया। पीएम मोदी की सभा में नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़, गजेंद्र सिंह शेखावत और सीपी जोशी ही संबोधित करते हुए नजर आ रहे हैं। यह बात बात वसुंधरा समर्थकों को काफी खटक रही हैं।
पीएम की सभाओं के दौरान वसुंधरा को साइड लाइन किए जाने का तनाव साफ देखा गया है। जयपुर में वसुंधरा का भाषण तक नहीं हुआ। इस दौरान भी मोदी ने वसुंधरा को पल भर के लिए भी नहीं देखा। इसके बाद से वसुंधरा के चेहरे पर लगातार चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रही है। गत दिनों अमित शाह और जेपी नड्डा जयपुर आए थे। इस दौरान वसुंधरा से काफी देर तक उनकी बातचीत हुई। हालांकि इस बैठक के बाद वसुंधरा काफी खुश नजर आई। इसको लेकर सियासत में कयास चला कि दोनों नेताओं ने वसुंधरा को मना लिया है। लेकिन एक बार फिर जोधपुर की सभा में साइड लाइन दिखी वसुंधरा को लेकर फिर बीजेपी की सियासत का पारा चढ़ गया है।