Indus Waters Treaty: भारत ने पाकिस्तान को सुनाई खरीखोटी; स्थायी मध्यस्थता न्यायालय का फैसला किया खारिज

Indus Waters Treaty: भारत ने पाकिस्तान को सुनाई खरीखोटी; स्थायी मध्यस्थता न्यायालय का फैसला किया खारिज


भारत ने पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि को लेकर चल रहे विवाद में स्थायी मध्यस्थता न्यायालय के फैसले को खारिज कर दिया है। भारत ने गुरुवार को साफ किया कि हेग स्थित न्यायाधिकरण के फैसले के बाद उसे  किशनगंगा और रतले पनबिजली परियोजनाओं को लेकर स्थायी मध्यस्थता न्यायालय में चलाई जा रही अवैध कार्यवाही में भाग लेने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। 

सिंधु जल संधि पर भारत की दो टूक

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने गुरुवार को एक प्रेस कांफ्रेंस करके पाकिस्तान को दो टूक जवाब दिया। अरिंदम बागची ने कहा कि संधि को दर-किनार करते हुए अवैध और समानांतर कार्यवाही को मान्यता देने या उसमें भाग लेने के लिए भारत को मजबूर नहीं किया जा सकता है।

भारत का लगातार रहा है ऐसा ही रुख

गौरतलब है कि यह पहली बार नही है जब भारत ने इस मुद्दे पर ऐसा रुख अख्तियार किया हो। भारत हमेशा से कहता रहा है कि वह स्थायी मध्यस्थता न्यायालय में पाकिस्तान द्वारा शुरू की गई कार्यवाही में शामिल नहीं होगा। इसके पीछे भारत का तर्क है कि सिंधु जल संधि के ढांचे के तहत विवाद की जांच पहले से ही एक तटस्थ विशेषज्ञ द्वारा की जा रही है ऐसे में किसी भी मध्यस्थता न्यायालय में मुद्दे की सुनवाई की जरूरत नहीं है। बता दें कि तटस्थ विशेषज्ञ की आखिरी बैठक 27 और 28 फरवरी को हेग में हुई थी। वहीं, अगली बैठक सितंबर में होने वाली है।

क्या था स्थायी मध्यस्थता न्यायालय का निर्णय 

स्थायी मध्यस्थता न्यायालय के एक बयान में कहा गया है कि एक सर्वसम्मत निर्णय में कोर्ट ने भारत द्वारा उठाई गई प्रत्येक आपत्ति को खारिज कर दिया है। साथ ही यह तय किया गया है कि कोर्ट पाकिस्तान के मध्यस्थता अनुरोध में विवादों पर विचार करने और उनके निर्धारण में सक्षम है। फैसला सभी पार्टियों के लिए बाध्यकारी है और इसके खिलाफ अपील नहीं की जा सकती। साथ ही बयान में अदालत ने यह भी कहा था कि उसने इस संबंध में विश्व बैंक से भी चर्चा की है। विश्व बैंक दोनों देशों के बीच की इस संधि पर एक हस्ताक्षरकर्ता है।

भारत ने जारी किया था नोटिस

भारत का मानना है कि विवाद को सुलझाने के लिए दो समवर्ती प्रक्रियाओं की शुरुआत समझौते में निर्धारित तीन-चरणीय वर्गीकृत तंत्र के प्रावधान का उल्लंघन है। इससे पहले, जनवरी में भारत ने सितंबर 1960 की सिंधु जल संधि में संशोधन को लेकर भारत ने पाकिस्तान को नोटिस जारी किया था।  बता दें कि पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि को अक्षरश: लागू करने में भारत दृढ़ समर्थक, जिम्मेदार भागीदार रहा है। पाक की कार्रवाइयों ने सिंधु संधि के प्रावधानों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। इस्लामाबाद की हठधर्मिता को देखते हुए उसे ऐसा करना पड़ा था। 

नोटिस का ये है उद्देश्य

इस नोटिस का उद्देश्य पाकिस्तान को सिंधु जल संधि के उल्लंघन को सुधारने के लिए 90 दिनों के भीतर अंतर-सरकारी वार्ता में प्रवेश करने का अवसर प्रदान करना है। यह प्रक्रिया पिछले 62 वर्षों में स्थिति बदलने के अनुसार सिंधु जल संधि को अपडेट भी करेगी।

संधि के मुताबिक पूर्वी नदियों का पानी, कुछ अपवादों को छोड़ दें, तो भारत बिना रोकटोक के इस्तेमाल कर सकता है। भारत से जुड़े प्रावधानों के तहत रावी, सतलुज और ब्यास नदियों के पानी का इस्तेमाल परिवहन, बिजली और कृषि के लिए करने का अधिकार भारत को दिया गया। 2015 में पाकिस्तान ने भारतीय किशनगंगा और रातले पनबिजली परियोजनाओं पर तकनीकी आपत्तियों की जांच के लिए तटस्थ विशेषज्ञ की नियुक्ति करने का आग्रह किया था। 2016 में पाकिस्तान इस आग्रह से एकतरफा ढंग से पीछे हट गया और इन आपत्तियों को मध्यस्थता अदालत में ले जाने का प्रस्ताव किया। सूत्रों की मानें तो पाकिस्तान का यह एकतरफा कदम संधि के अनुच्छेद 9 में विवादों के निपटारे के लिए बनाए गए तंत्र का उल्लंघन है।

पाकिस्तान बार-बार सिंधु जल संधि पर चर्चा करने से करता रहा है इनकार

पारस्परिक रूप से सहमत तरीके से आगे बढ़ने के लिए भारत द्वारा बार-बार प्रयास करने के बावजूद, पाकिस्तान ने 2017 से 2022 तक स्थायी सिंधु आयोग की पांच बैठकों के दौरान इस मुद्दे पर चर्चा करने से इनकार कर दिया।पाकिस्तान के निरंतर आग्रह पर, विश्व बैंक ने हाल ही में तटस्थ विशेषज्ञ और कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन प्रक्रियाओं दोनों पर कार्रवाई शुरू की है। समान मुद्दों पर इस तरह के समानांतर विचार सिंधु जल समझौते के किसी भी प्रावधान के अंतर्गत नहीं आते हैं। 

जानें क्या है सिंधु जल समझौता?

दरअसल, सिंधु जल संधि के प्रावधानों के तहत सतलज, व्यास और रावी का पानी भारत को और सिंधु, झेलम और चिनाब का पानी पाकिस्तान को दिया गया है। भारत और पाकिस्तान ने नौ सालों की बातचीत के बाद 19 सितंबर 1960 में सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर किए थे, जिसमें विश्व बैंक भी एक हस्ताक्षरकर्ता (सिग्नेटरी) है। दोनों देशों के जल आयुक्तों को साल में दो बार मुलाकात करनी होती है और परियोजना स्थलों एवं महत्त्वपूर्ण नदी हेडवर्क के तकनीकी दौरे का प्रबंध करना होता है।



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