मुरादाबाद। तपती हुई जमीं है, जलधार बांटता हूं। पतझर के रास्तों पर मैं बहार बांटता हूं। ये आग का है दरिया, जीना भी बहुत मुश्किल। नफरत के दौर में भी मैं प्यार बांटता हूं। जिगर मंच से वरिष्ठ गीतकार डॉ. विष्णु सक्सेना ने जब ये पंक्तियां पढ़ीं तो मैदान श्रोताओं की तालियों से गूंज उठा। उन्होंने कहा कि मैं 1989 से मुरादाबाद आ रहा हूं। शहर-ए-जिगर की फिजा ही निराली है।
मौका था जिला कृषि विकास एवं औद्योगिक सांस्कृतिक प्रदर्शनी में आयोजित कवि सम्मेलन का। जहां शहर-ए-जिगर के बड़े रचनाकार मक्खन मुरादाबादी के संचालन और नवगीत के लिए यश भारती से पुरस्कृत साहित्यकार डॉ. माहेश्वर तिवारी की अध्यक्षता में जिगर मंच पर देश के नामचीन कवियों ने रचनाएं पढ़ीं। सरस्वती वंदना से कवि सम्मेलन की शुरुआत हुई। इसके बाद कवियों ने अपनी रचनाए पढ़ीं। आजादी के बाद जिले की पहली प्रदर्शनी में बाबा नागार्जुन कवि सम्मेलन में मुरादाबाद आए थे। उनके बाद दुष्यंत आदि बड़े कवि आने लगे। सोमवार को कवि सम्मेलन में डॉ. श्लेष गौतम ने अपनी रचनाओं से उन्हीं यादों को जीवंत करने की कोशिश की। उन्होंने पढ़ा कि छंदों के छल छंद रचा तुम पंत नहीं हो पाओगे, धर लो रूप भले साधु का, संत नहीं हो पाओगे। चरण वंदना और प्रशस्ति गान ही गाते फिरते हो, दरबारी तासीर लिए दुष्यंत नहीं हो पाओगे।
डॉ. माहेश्वर तिवारी ने पढ़ा कि बहुत दिनों के बाद लौट घर में आना। लगता किसी पेड़ का फूलों, पत्तों, चिड़ियों से भर जाना। मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि समर्थ पांव रेल, बस विमानों में नहीं रहते, खुली छत के शौकीन मकानों में नहीं रहते। इसी क्रम में डॉ. विष्णु सक्सेना ने पढ़ा कि मुरादाबाद के गीतकार मयंक शर्मा ने पढ़ा कि राम से कर जोड़ केवट ने कहा, बात सेवक की प्रभु सुन लीजिए। पार गंगा के उतारूं आपको, तार भव सागर कृपा कर दीजिए। रघुकुल की यह रीत है, निभे वचन हर हाल, वन को रघुवर चल दिए, वल कल तन पर डाल। कोट सा आए कवि कुंवर जावेद ने पढ़ा कि हर एक तख्त से हर ताज से लड़ जाती है। कोई भी राज हो हर राज से लड़ जाती है। हमारे देश की बेटी को कितना जानते हो, सुहाग के लिए यमराज से लड़ जाती है।
रतलाम की कवयित्री सुमित्रा सरल ने पढ़ा कि उल्फत बदलते रोज हैं लिबास की तरह। लोगों का दिल है या कोई बाजार हो गया। मुंबई से आईं कवयित्री सविता असीम ने पढ़ा कि मन में वृंदावन रहता है, मन कितना पावन रहता है। सीने में यादें रहती हैं, आंखों में सावन रहता है। मध्यम सक्सेना ने पढ़ा कि जान कहने से कोई जान नहीं होता है। इश्क में चीख कर ऐलान नहीं होता है। मेरे गरीब नवाज का मुल्क है ये दोस्त, यहां पर हिंदू-मुसलमान नहीं होता है। अभय निर्भिक ने सैनिक के परिवार का दर्द अपनी पंक्तियों में भरकर सबकी आंखें नम कर दीं। उन्होंने पढ़ा कि भारत माता का हरगिज सम्मान नहीं खोने देंगे। अपने पूज्य तिरंगे का अपमान नहीं होने देंगे। हास्य कवि शरीफ भारती ने पढ़ा कि प्यार से जब उसने देखा रिश्ते फाइन हो गए। हम भी उसके इश्क में कुछ और शाइन हो गए। जब कोरोना सी शक्ल लेकर ससुराल हम गए, सास-सुसर साली क्वारंटाइन हो गए। मुकेश गौतम ने अपनी हास्य रचनाओं से खूब गुदगुदाया। इनके अलावा प्रवीण राही, डॉ. नरेश कात्यायन, दीपक गुप्ता, मोहन मुंतजिर, मुकेश श्रीवास्तव, सौरभ कांत शर्मा ने कविताएं पढ़ीं।