सांकेतिक तस्वीर
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इन्सॉल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड (आईबीसी) के तहत डिफाल्टर कंपनियों पर देनदारी कम करने या खत्म करने का अधिकार जीएसटी आयुक्त के पास है। ये फैसला उन कंपनियों या फर्मों पर लागू होगा, जिनकी केस आईबीसी के तहत चला और सुनवाई के बाद सभी देनदारियों पर उन्हें अदालत से राहत मिली हो।
डिफाल्टर या दिवालिया कंपनियों की सुनवाई नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) में होती है। ट्रिब्यूनल ही फैसला देता है, इसमें कंपनी को या तो राहत मिलती है या नहीं मिलती। राहत के अंतर्गत उस पर अलग-अलग देनदारियों को घटा दिया जाता है या खत्म कर दिया जाता है।
ऐसी कंपनियों या फर्मों पर जीएसटी की देनदारी को लेकर संशय था। जीएसटी काउंसिल की बैठक में इस मुद्दे पर तकनीकी चिंता जताई गई। इसमें कहा गया कि दिवालियापन के तहत कॉर्पोरेट देनदार की राशि को राइट ऑफ यानी बट्टे खाते में डालने को स्वीकृति मिलनी चाहिए।
काउंसिल में कहा गया कि टैक्स की धनराशि को कम करने या न लेने के फैसले में राजस्व निहित है। इसे बट्टे खाते में डालने की वास्तविक शक्ति केवल सरकार के पास है। जीएसटी अधिनियम में इसका प्रावधान नहीं है। इस पर जीएसटी पॉलिसी विंग के आयुक्त ने स्पष्ट किया कि इस मुद्दे को पिछली जीएसटी परिषद की बैठक में भी उठाया गया था।