पुलिस गिरफ्त में शातिर
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आगरा में ऑनलाइन सामान की खरीद-फरोख्त करने वाली वेबसाइट पर मोबाइल का विज्ञापन देने वालों से लुटेरे संपर्क करते थे। मिलकर देखने के बहाने लूटकर फरार हो जाते थे। एक सप्ताह में दो घटनाओं को अंजाम दिया। पुलिस ने लुटेरों को पकड़ने के लिए उन्हीं के अंदाज में जाल बिछाया। मोबाइल का विज्ञापन दिया। लुटेरे जैसे ही लूट करने आए, पकड़ लिए गए। इनमें एक इंटरमीडिएट तो दूसरा हाईस्कूल पास है।
एसीपी कोतवाली सुकन्या शर्मा ने बताया कि 28 अगस्त की शाम को भगवान टॉकीज पर लूट हुई थी। बीटेक छात्र आर्यन का आईफोन लूटा गया था। उन्होंने ओएलएक्स पर आईफोन का विज्ञापन दिया था। बुलट बाइक पर आए दो बदमाश देखने के बहाने आईफोन ले गए थे। पांच सितंबर को पुलिस लाइन रोड पर अधिवक्ता सिद्धार्थजी कर्दम से इसी तरह से लूट हुई थी। बाइक सवार बदमाश मोबाइल लूटकर ले गए। अधिवक्ता ने ऑनलाइन विज्ञापन दिया था।
40 हजार में खरीदना तय किया था आईफोन
एसीपी ने बताया कि बदमाश पहले विज्ञापन देखते थे। इसके बाद नंबर पर कॉल करते थे। मोबाइल बेचने वाले से कीमत तय करते थे। खुद को छात्र बताते थे। दर्शाते थे कि उन्हें मोबाइल की जरूरत है। मगर, रुपये कम होने की वजह से नहीं खरीद पा रहे हैं। कीमत तय करने के बाद देखने के बहाने बुलाते थे। लूट करते थे। पुलिस ने एक ही अंदाज में हुई वारदात करने वालों की धरपकड़ के लिए तरीका उन्हीं की तरह निकाला। छह सितंबर को ऑनलाइन साइट पर आईफोन का विज्ञापन दिया। इस पर एक कॉल आया। नंबर पुलिसकर्मी का था। उनसे कहा कि मोबाइल खरीदना है। बात करने के बाद आईफोन के 40 हजार रुपये तय किए। नार्थ ईदगाह पर पुलिस ने आरोपियों को बुलाया। उनके पहुंचते ही सादा कपड़ों में मौजूद पुलिसकर्मियों ने दोनों को पकड़ लिया।
खुद हुआ ठगी का शिकार तो करने लगा लूट
गिरफ्तार आरोपियों में सोहल्ला, सदर निवासी हितेश यादव और कृष्णा कुंज, रोहता निवासी मनीष गुर्जर हैं। उन्होंने पूर्व की दोनों घटनाओं को करना कबूल कर लिया। उनसे बाइक, कार, चार मोबाइल बरामद किए हैं। पूछताछ में पता चला कि हितेश इंटरमीडिएट पास है। दो साल पहले उसने ऑनलाइन एक मोबाइल मंगवाया था। इसके लिए 5 हजार रुपये दिए थे। मगर, मोबाइल आया नहीं। रुपये चले गए। वह कई दिन तक रुपयों के लिए भटकता रहा। उसने सोचा कि क्यों न खुद भी इसी तरह से लोगों के साथ करें। इसमें कोई पकड़ा भी नहीं जाता है। वह जिस जगह पर मोबाइल खरीदने के लिए बुलाते थे, वहां पहले खुद कार से पहुंचकर रेकी करते थे। आधा घंटे तक देखते थे कि पकड़े तो नहीं जाएंगे। सुरक्षित महसूस करने पर कार खड़ी करके बाइक से आते थे। लूट कर भाग जाते थे।