Genetically Modified crops
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ग्लोबल वार्मिंग के कारण दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में कीटों का हमला बढ़ता जा रहा है। एक अध्ययन के अनुसार, इन कीटों ने खुद को परिस्थितियों के अनुसार ढाल लिया है और अब यह ज्यादा आक्रामक तरीके से विभिन्न प्रकार की फसलों को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा रहे हैं। लगातार गर्म हो रही दुनिया में तापमान और आर्द्रता में परिवर्तन कीट और बीमारियों के फैलाव के दो बड़े चालक हैं। वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता बढ़ने से यह प्रवृत्ति और भी बढ़ जाएगी।
पबमेड सेंट्रल में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चलता है कि बढ़ती गर्मी (लाही, मांहू या चेपा) पर गहरा प्रभाव डालेगी। मुलायम शरीर वाले कीड़े जो पौधों का रस चूसकर पत्तियों और फूलों को खराब कर देते हैं, इन्हें लगभग 250 एफिड प्रजातियों के रूप में पहचाना गया है। मौसम के साथ अनुकूलन करके इन्होंने विभिन्न पौधों के परिवारों की कई फसलों को प्रभावित किया है। ये पौधों में विषाणु प्रसारित करने के लिए भी जाने जाते हैं। एफिड्स दुनियाभर में पाए जाते हैं और आमतौर पर बसंत व शरद ऋतु में 1300 किमी तक प्रवास की क्षमता रखते हैं। चूंकि ये परिवेश के तापमान में बदलाव के प्रति संवेदनशील हैं, इसलिए इन्होंने अपने जीवनचक्र में बदलाव कर लिया है और अब ये वर्षा ऋतु में भी प्रवास करने लगे हैं। इनका यह प्रवास फसलों के लिए बहुत नुकसानदायक है।
जर्नल इंसेक्ट्स में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में बताया गया है कि सर्दियों से पहले और शुरुआती सर्दियों में स्टोमाफिस प्रजाति की मादा वयस्क एफिड्स के जीवन में चार महीने का लंबा विस्तार हुआ है।
55 एफिड प्रजातियों का पहला प्रवास सामान्य से पहले
1964 से 2014 तक के डाटा विश्लेषण से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन के कारण 55 एफिड प्रजातियों का पहला प्रवास सामान्य से पहले हुआ और काफी लंबा रहा। छोटे जीवन चक्र वाले कीड़े अपने डीएनए को अनुकूलित और परिवर्तित करते रहते हैं। अनुमान है कि प्रत्येक दो डिग्री सेल्सियस की वृद्धि पर कीड़ों की एक पीढ़ी एक से पांच साल तक बढ़ सकती है।
वर्षा ने बढ़ाईं मुश्किलें
भारत दुनियाभर की 6.83 फीसदी कीट प्रजातियों का घर है। अध्ययन के अनुसार, भारत में टिड्डियों के अधिकांश हमले राजस्थान तक ही सीमित हैं। कभी-कभार ये पड़ोसी राज्यों से आगे भी प्रवेश कर जाते हैं। ये झुंड आमतौर पर मई में भारत में प्रवेश करते हैं और नवंबर तक वापस लौट जाते हैं, लेकिन जून माह में हुई रिकॉर्ड बारिश ने न केवल उनके अस्तित्व के लिए, बल्कि प्रजनन के लिए भी अनुकूलतम परिस्थितियां प्रदान करके प्रवास अवधि को बढ़ा दिया है। इससे पहले 2019 से 2021 के बीच टिड्डियों के हमलों ने दो लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र की फसलों को नुकसान पहुंचाया था।