एएमयू
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आज की पीढ़ी को शायद ही इस बात का इल्म हो कि अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी का एएमयू से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ाव था। 29 अक्तूबर 1920 को महात्मा गांधी को एएमयू छात्रसंघ की मानद आजीवन सदस्यता दी गई थी। जिस विश्वविद्यालय ने अहिंसा के सबसे बड़े पैरोकार की तीन-तीन बार मेजबानी की हो, उसमें गुंडई और हिंसा की बार-बार घटनाएं हों तो यह इंतजामिया के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। सवाल यह भी है कि आखिर वे कौन लोग हैं जो एएमयू जैसे आलमी तालीमी इदारे को अराजक और हिंसक तत्वों का अभयारण्य बना रहे हैं।
एएमयू में लगातार हो रही हिंसक घटनाओं, यहां तक कि कुछ तत्वों के आतंकी गतिविधियों में शामिल होने की बातों की अनदेखी नहीं की जा सकती है। शुतुरमर्गी रवैया अख्तियार करके एएमयू इंतजामिया अपनी जिम्मेदारियों से नहीं बच सकता। तालीम के इस अजीम इदारे पर बदनुमा दाग लगाने वाली घटनाओं पर त्वरित कार्रवाई न करने से कई सवाल उठने लगे हैं।
एएमयू छात्र फैजान के खतरनाक आतंकी संगठन से संबंध होने पर देश की चोटी की जांच एंजेसी एनआईए ने एफआईआर दर्ज की और उसे गिरफ्तार भी कर लिया। उससे कई संगीन खुलासे भी हो रहे हैं। इंतजामिया है कि आरोपी छात्र के खिलाफ कोई कार्रवाई करने के बजाय हाथ पर हाथ धरे बैठा है। विश्वविद्यालय जैसी स्वायत्त संस्था को किसका इंतजार है। कौन आदेश देगा, कौन कहेगा कि आप आतंकी गतिविधियों में लिप्त पाए जाने के आरोपी छात्र पर कार्रवाई करें। इसका मतलब साफ है कि इंतजामिया अपना काम सही ढंग से नहीं कर रहा है।