गीतकार डॉ विष्णु सक्सेना
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हिंदी पर चिंता व्यक्त करते हुए हाथरस के सिकंदराराऊ निवासी गीतकार डॉ विष्णु सक्सेना ने कहा कि आज हमारे देश में हिंदी की बहुत दयनीय हालत है। हमारी हिंदी भाषा को सबसे अधिक हानि कॉन्वेंट कल्चर ने पहुंचाई है। अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में पढ़ने वाले हमारे बच्चों को हिंदी बोलने पर जुर्माना लगा दिया जाता है। वो रसखान को नहीं जानते, कबीर को नहीं जानते, तुलसी, सूर, मीरा को नहीं जानते। जो बच्चे अगर न तो इन्हें जानेंगे और न इनकी कविता में बसी भारतीय संस्कृति को जानेंगे वो अपनी संस्कृति से कट जाएंगे। जो देश अपनी संस्कृति और भाषा को भूल जाता है, वो धीरे-धीरे नष्ट हो जाता है।
उन्होंने कहा कि हमारी सरकारों को हिंदी भाषा को अनिवार्य करना होगा, तभी हमारी हिंदी को सम्मान मिल पाएगा। मैं जब काव्य पाठ करने पहली बार 1998 में अमेरिका गया तो हिंदी के कवियों को वरिष्ठ पीढ़ी तो सुनने आ जाती थी, लेकिन युवा पीढ़ी सुनने नहीं आती थी, क्योंकि उनके दिमाग में ये बात बैठी हुई थी कि हिंदी कविता बहुत मुश्किल चीज है, लेकिन जब उनके माता-पिता ने मेरे आसान और सरल प्रेम गीतों की कैसेट अपने बच्चों को सुनाई तो उन्हें बहुत अच्छा लगा। उन्हें लगा ये तो हिंदी फिल्मों के गीत जैसे ही हैं। उस वक्त यूट्यूब नहीं था, इसलिए उनके अंदर मुझे ही बार-बार सुनकर हिंदी कविता के प्रति रुचि जागृत हुई। फिर जब अगली बार 2002 में अमेरिका गया तो युवा श्रोताओं की संख्या अपेक्षाकृत बहुत अधिक थी।
डॉ विष्णु सक्सेना ने कहा कि यही हाल अन्य देशों में है संयुक्त अरब अमीरात, ओमान, हांगकांग, थाईलैंड, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में हिंदी कवियों के प्रति दीवानगी है। हमारे देश से प्रति वर्ष अनेक कवि अनेक देशों में काव्यपाठ के लिए जाते रहते हैं। मैं स्वयं 16 विदेश यात्राएं हिंदी कविता और हिंदी भाषा के संवर्धन को लेकर कर चुका हूं। कहने का मतलब यह कि हम संस्कृतनिष्ठ कठिन हिंदी न बोलकर आसान हिंदी में बात कहेंगे तो अधिक ग्राह्य होगी। केंद्र सरकार तथा राज्य सरकारों को भी चाहिए कि दलगत राजनीति से ऊपर उठकर अपनी भाषा के उत्थान के लिए ईमानदारी से काम करें। जैसे खेलों के प्रोत्साहन के लिए ध्यान दिया जाता है, वैसे ही हिंदी भाषा के संवर्धन के लिए बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। साथ ही हिंदी को रोजगार की भाषा बनाने के प्रयास करना होगा।
उन्होंने कहा कि कवियों कलाकारों को सम्मानित करना होगा, जिससे लोगो का नजरिया हिंदी के प्रति सकारात्मक हो सके। मुझे प्रसन्नता है कि अब मेडिकल और तकनीकी पढ़ाई भी हिंदी में हो सकेगी। ऐसा निर्णय लिया गया है। पहले से हम सुधार की तरफ अग्रसर तो हैं, लेकिन अभी इन सुधारों में तेजी लाने की आवश्यकता है।