Aligarh News: एक किलो कस्तूरी की कीमत ढ़ाई करोड़, जिसके लिए मारे जाते हैं 300 मृग

Aligarh News: एक किलो कस्तूरी की कीमत ढ़ाई करोड़,  जिसके लिए मारे जाते हैं 300 मृग



कस्तूरी मृग
– फोटो : अमर उजाला

विस्तार


कस्तूरी कुंडल बसे, मृग ढूंढे बन मांहि, ऐसे घटि घटि राम हैं, दुनिया देखे नाहिं..। कबीरदास का ये चर्चित दोहा आज भी कस्तूरी मृगों के संरक्षण को लेकर जारी प्रयासों पर प्रासंगिक है। 50 वर्ष लंबे संरक्षण के बाद भी इनकी आबादी में इजाफा नहीं हुआ है। हां, संरक्षण से इनको विलुप्त होने से जरूर बचा लिया गया है। 

नर मृग की पूर्व ग्रंथि के स्राव से मिलने वाली सुगंधित कस्तूरी की प्राप्ति के लिए उनका अवैध शिकार हो रहा है। इस कस्तूरी का उपयोग बेशकीमती इत्र और महंगी दवाओं में किया जाता है। यही वजह है कि एक किलोग्राम कस्तूरी की कीमत लगभग ढ़ाई करोड़ रुपये है। जिसे इकट्ठा करने के लिए तकरीबन 300 वयस्क मृगों को मार दिया जाता है। 

सोमवार को एएमयू के वन्यजीव विज्ञान विभाग की डॉ. उरुस इलियास ने ‘आयुर्वेदिक फार्मास्यूटिकल्स में कस्तूरी का महत्व और चुनौतियां’ विषय पर आयोजित एक राष्ट्रीय सेमिनार में ‘कस्तूरी मृगः संरक्षण के 50 वर्ष’ पर ‘स्वर्ण जयंती व्याख्यान’ प्रस्तुत किया। डॉ. इलियास ने कहा कि दुनिया में कस्तूरी मृग की सात प्रजातियां पाई जाती हैं, उनमें से पांच प्रजातियां भारत में हैं। ये मृग कश्मीर से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक हिमालय की 2500 से 4500 मीटर की ऊंचाई पर पाए जाते हैं। 

क्षेत्रीय आयुर्वेदिक अनुसंधान संस्थान रानीखेत अल्मोड़ा द्वारा महरुरी बागेश्वर में इस मृग के संरक्षण के 50 वर्ष पूरे होने पर क्या क्या हुआ है। उन्होंने विस्तार से बताया। सेमिनार में इस मृग के अस्तित्व पर मंडरा रहे संभावित खतरों पर चर्चा की गई। इनको बचाने और गंभीरता से संरक्षित करने का आह्वान किया गया। 



Source link

Facebook
Twitter
LinkedIn
Pinterest
Pocket
WhatsApp

Related News

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *