एएमयू
– फोटो : Amar Ujala
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अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय कुछ महीने पहले ही देश के चोटी के दस विश्वविद्यालयों में फिर शुमार हुआ है। कई राष्ट्रपति, नेतृत्वकर्ता, प्रशासक, कुशल इंजीनियर, वैज्ञानिक देने वाले एएमयू में एक अनोखी परंपरा स्थापित है। एएमयू के छात्र अपनी बौद्धिक और राजनीतिक चेतना के लिए जाने जाते हैं। विश्वविद्यालय परिसर में छात्र न सिर्फ देश-विदेश के किसी भी ज्वलंत मुद्दे पर चिंतन-मंथन करते हैं, बल्कि अपने विवेक से एक पक्ष का चयन करके उसकी हिमायत अथवा मुखालफत (विरोध) के लिए बाकायदा सड़कों पर भी उतरते हैं। यह परंपरा लंबे समय से चली आ रही है। इसका ताजातरीन उदाहरण हमास के इस्राइल पर हमले के बाद हमास के समर्थन में आगे आना है।
रोचक बात यह है कि एनडीए कार्यकाल में माना जाता है कि एएमयू इंतजामिया भाजपा का करीबी है लेकिन छात्र इससे बिल्कुल अप्रभावित हैं। अगर उन्हें लगता है कि किसी मुद्दे का विरोध या हिमायत करना जरूरी है तो उसे खुल कर अंजाम देते हैं। एएमयू छात्रों के विरोध प्रदर्शन के अपना तौर-तरीका है। अमूमन जुमे (शुक्रवार) की नमाज के बाद बाब-ए-सैयद ( एएमयू संस्थापक सर सैयद अहमद खां के नाम पर बने द्वार ) पर इकट्ठा होते हैं। उनके हाथों में ज्वलंत मुद्दों से संबंधित पोस्टर-बैनर होते हैं। वे बाकायदा नारेबाजी भी करते हैं। आमतौर पर छात्रों का प्रदर्शन शांतिपूर्ण ही रहता है। लेकिन इससे उनकी स्वंतत्र सामाजिक और राजनीतिक चेतना का प्रकटीकरण होता है।
आलोचना का शिकार भी होते रहे हैं छात्र
कई बार विवादास्पद मुद्दों पर अपनी राय जताने के लिए एएमयू छात्रों को आलोचना का भी शिकार होना पड़ा है। मौजूदा समय में हमास की इस्राइल में हिंसक कार्रवाई और फलस्तीन के समर्थन में उतरने की वजह से एएमयू छात्रों पर मुकदमा भी हुआ है। कई हलकों में उनकी आलोचना भी हुई है। दरअसल भारत के रुख से अलग रवैया अख्तियार करना भी उनकी आलोचना की वजह बना है। लेकिन यह भी सच है कि एएमयू छात्रों के विरोध और राजनीतिक चेतना का एक वर्ग हिमायती भी है।